न खिलती ये कलियाँ न उड़ते परिंदे
जो गुलशन में तुमसे मुतासिर न होते!
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बोलने से तेरे रंग बरसते हैं
हँसती जो हो तुम फूल महकते हैं
तेरी धड़कनों का प्रीत होना चाहता हूँ
मैं तेरा गीत होना चाहता हूँ
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1214शाम की हल्की धूप ने उन पर सुनहरी लकीरें खींच दी हैं। दूर क्षितिज में थकामाँदा सूरज उसमें उतरने के लिए मचल रहा है। सागर के वक्ष पर आसमान में छाई नारंगी रंग की परछाई ऐसे लग रही है- मानो किसी कोमलांगी ने लहरों पर रंगोली सजा दी हो। यह अद्भुत दृश्य मन को बाँधे जा रहा है। सूर्यास्त के एक-एक क्षण को कैमरे में उतार रही हूँ।*****सँभाल कर रखियेकिन्हीं एहसासों का नाम है ग़ज़ल,
उन एहसासों को सँभाल कर रखिये
ये ग़ज़ल नहीं रहेगी उम्र भर,
ये वहम भी मत पाल कर रखिये
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन