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शनिवार, 17 मई 2025

4491...ये वहम भी मत पाल कर रखिये...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय नीलांश जी की रचना से। 
सादर अभिवादन। 
शनिवारीय अंक में पढ़िए पसंदीदा रचनाएँ-

न खिलती ये कलियाँ न उड़ते परिंदे 

जो गुलशन में तुमसे मुतासिर न होते! 

*****


इस युद्धक माहौल में एक कहानी ये भी---
बहुत समझाने पर पहला वाला तैयार हुआ कि फ्रंट अटैक में वो नहीं रहेगा। पीछे वाली टीम में रहेगा। दूसरे वाले ने पाकिस्तानी चौकी पर हमले से पहले सिर मुंडा लिया। क्यों मुंडाया, ये किसी को आजतक नहीं पता चल पाया। क्योंकि उस हमले में उनकी शहादत हुई। मौत से पहले कई पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काटी थी उस महावीर ने। उस हमले में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी दौड़ा-दौड़ा कर मारा था।*****मैं तेरा गीत होना चाहता हूँ

बोलने से तेरे रंग बरसते हैं 

हँसती जो हो तुम  फूल महकते हैं 

तेरी धड़कनों का प्रीत होना चाहता हूँ 

मैं तेरा गीत होना चाहता हूँ 

*****

1214शाम की हल्की धूप ने उन पर सुनहरी लकीरें खींच दी हैं। दूर क्षितिज में थकामाँदा  सूरज  उसमें उतरने के लिए मचल रहा है। सागर के वक्ष पर आसमान में छाई नारंगी रंग की परछाई ऐसे लग रही है- मानो किसी कोमलांगी ने लहरों पर रंगोली  सजा दी हो। यह अद्भुत दृश्य मन को बाँधे जा रहा है। सूर्यास्त के एक-एक क्षण को कैमरे में उतार रही हूँ।*****सँभाल कर रखियेकिन्हीं एहसासों का नाम है ग़ज़ल,

उन एहसासों को सँभाल कर रखिये

ये ग़ज़ल नहीं रहेगी उम्र भर,

ये वहम भी मत पाल कर रखिये

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


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