शनिवार, 10 मई 2025
विश्व प्रवासी पक्षी दिवस
बंधनमुक्त,धरा पर खींचीं सीमाओं से परे,
गगन में अपने पर फैलाये उड़ते,
वृक्षों में रहने वाले हमारी सृष्टि की खूबसूरत कृति है पक्षी।
मरे जीवों को साफ करने में,खुले में फेंके अनाजों की सफाई में,
खाद्य श्रृंखला में, पारिस्थितिकी संतुलन मे,बीजों के संवहन
जैसे अनेकों महत्वपूर्ण योगदान पक्षियों के पर्यावरण को
संतुलित करने में किया जाता है।
बदलते ऋतु में प्रतिवर्ष हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करके
प्रवासी पक्षी हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों को गुलज़ार करते हैं।
यहाँ एक निर्धारित समय व्यतीत कर,मुख्यतया प्रजनन
कार्य करते हैं और वापस लौट जाते हैं।
होते हैं रचनाओं से रूबरू
संकट में था
सिंदूर
सनातन, महाकाल.
हिमशिखर
पिघलने लगे
सिंधु में है उबाल.
तन गयी
भृकुटि मोदी जी
हैं रुद्रावतार,
फिर कुपित
राम की सेना
भोर के सुनहरे उजास के स्थान पर
युद्ध में हताहत
असंख्यों निर्दोष मासूम बच्चों
स्त्रियों और शूरवीर योद्धाओं के
रक्त की लालिमा दिखाई दे रही है
जो मन में अवसाद,
तन में सिहरन और
नैनों में कभी न सूखने वाली
नमी भर जाती है
हूँ एक प्रवासी पक्षी
समूह से बिछुड़ा हुआ
दूर देश से आया हूँ
पर्यटन के लिए |
बदले मौसम के कारण
राह भटका हूँ
कोई उदास था,
तो वह बुढ़िया,
जिसका प्रवासी पक्षी
इस साल भी
गाँव नहीं आया था.
१०० नम्बर डायल कर पुलिस से हेल्प माँगी ! उन्हें बताया कि यह लुप्तप्राय प्रजाति का संरक्षित पक्षी है और इस समय उसकी जान खतरे में है ! अगर तुरंत उसे बचाया नहीं गया तो बन्दर उसे मार देंगे ! मेरे स्वर की चिंता से फोन के दूसरे सिरे पर बात करने वाला व्यक्ति शायद कुछ प्रभावित हुआ ! सुखद आश्चर्य हुआ जब उसने न केवल मेरी समस्या को सुना बल्कि मुझे यह भी बताया कि इस सिलसिले में वन विभाग ही मेरी सहायता कर सकता है ! मेरे पास वन विभाग का कोई नंबर नहीं था ! यह भी आशंका थी कि मेरे कहने भर से ही कोई भला क्यों आ जायेगा मदद करने ! अत: मैंने उन्हीं सज्जन से वन विभाग को मेरी समस्या के बारे में सूचित करने के लिये कहा ! प्रत्युत्तर में ना केवल उन्होंने वन विभाग को फोन किया बल्कि मुझे भी बाद में कॉल बैक कर यह बता दिया कि उन्होंने मेरी प्रार्थना को सम्बंधित अधिकारी तक पहुँचा दिया है और वन विभाग का नंबर भी मुझे दे दिया ताकि आवश्यकता पड़ने पर मैं स्वयं भी उनसे संपर्क कर सकूँ!इसके लिये वे वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं !
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सिंदूर
वो ललाट की रेखा में जो लाल रंग है,
नारी के मन का विश्वास और संग है।
सजता है जब वह सिंदूर की धारा,
बनता है व्रत, बनती है वह रक्षा की प्रार्थना।
वो केवल श्रृंगार नहीं, एक वचन है,
पति की रक्षा का, जीवन-संचार का छन-छन है।
वो सिंदूर, जो है त्याग और शक्ति का प्रतीक,
हर भारतीय नारी के हृदय की संगीत।
आज उसी सिंदूर ने रूप लिया रण का,
बन गया है अब प्रतीक राष्ट्र-भक्ति प्रण का।
ऑपरेशन सिंदूर—वह नहीं केवल नाम है,
यह भारत की चेतना का उद्घोष वाक्यधाम है।
जहाँ प्रेम है, वहाँ प्रहार भी है तेज,
जो छेड़े सीमा को, वो पाता है गेज।
जैसे नारी रक्षक है अपने साजन की,
वैसे भारत बन गया प्रहरी अपने जन की।
सिंदूर अब है संकल्प, आतंक को मिटाने का,
शांति के दीप को फिर से जलाने का।
यह ललाट पर नहीं, अब है शौर्य की भूमि पर,
लिखी गई है यह रेखा पाकिस्तान की नींव पर।
फेसबुक से
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आज बस
सादर वंदन
बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन आज ! हार्दिक आभार आपका मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुखद आश्चर्य हो रहा है कि मेरा एक पुराना संस्मरणात्मक आलेख '१०० नम्बर भी कभी-कभी काम करता है' आज की हलचल में लिंक किया गया है ! हार्दिक धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार. सभी लिंक्स अच्छे. जयहिंद
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