सादर अभिवादन
कुछ सोच .....
आह भरी होगी,
किसी ने भी न सुनी होगी।
अंदर अंदर मर रहा था ,
कुछ सोच रहा था वो।
अच्छा हुआ नहीं आने उसने दिया दुनिया में,
आकर भी तो क्या देखता इस बेरहम,असभ्य दुनिया में।
मत शोक मनाना मेरे मरने का,
बस ढोंग मत करना अपनी सभ्यता का।
होते हैं रचनाओं से रूबरू
अनसुना राग
ऐसे ही किसी रोज़
सारी बत्तियां बुझा दो,
चुपचाप सुनो..
मौन बहुत बोलता है,
पर करता नहीं शोर ।
बिना देखे करो बात
तो वो सुनाई देता है,
जो रोशनी में अक्सर
नहीं आता नज़र ।
ऑपरेशन सिंदूर
वक्त गया, ज़ो सकता था तू पकड़,
उठा है तो गिरेगा, ही धड़ाम-धड़ाम,
गिरेगा तो चीरेगा ही चड़ाम-चड़ाम।
सहानुभूति के ओट मे
“वरवो की काकी -कनियावो की काकी की भूमिका प्रबल कभी-कभी सफल हो जाती है। चलो डाँट ही लेना, बात बता ही देता हूँ! आप जो तीन तस्वीर दी थीं, उस पर मुझे भी कहानी लिखनी है, शानदार कथानक सूझा है।”
“तुमने तो कहा था कि, “एक तस्वीर पर तो कहानी लिखी नहीं जाती है, तीन-तीन तस्वीरों पर कोई कैसे कहानी लिखेगा. . .!” चलो अच्छा है! लिख लो। कम से कम आगे से यह तो नहीं कहोगे कि खलिहर खुराफात करती है. .! ख़ुद तो लिखना नहीं होता है, बच्चे की जान साँसत में डालती हैं. . .!”
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका और साधुवाद
जवाब देंहटाएंसुप्रभात और धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज ह्रदय में केवल एक प्रार्थना मात्र ।
दुष्टता नष्ट कर चैन से जिये मानव समाज ।।
सुप्रभात ! जय भारत, समसामयिक, सुंदर प्रस्तुति !
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