सादर अभिवादन
कुछ सोच .....
इतने खामोश भी रहा न करो
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
कुछ न होगा गिला भी करने से
ज़ालिमों से गिला किया न करो
अपने रूत्बे का कुछ लिहाज़ 'मुनीर'
यार सब को बना लिया न करो
- मुनीर नियाजी
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समय से पूर्व
और आवश्यकता से अधिक
जब मिलने लगे
जो भी ज़रूरी है
तो मानना चाहिए कि
ऊपरवाला साथ है
और कृपा बरस रही है !
चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे
ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे
बलूचियों को यह भी लगता है कि पाकिस्तान ने अपने बदहाल आर्थिक तंत्र को दुरुस्त करने के लिए चीनियों को उनके इलाके में बुला लिया है। चीन ने 62 अरब डॉलर का भारी निवेश किया है और वह बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को संचालित करता है। चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपैक) के तहत इस बंदरगाह से चीन जहां दुनिया से जुड़कर अपना माल बेचने की राह आसान करता है, वहीं बलूची मानते हैं कि यह उनकी आज़ादी में दख़ल है और उनकी ज़मीन पर कब्ज़े की साज़िश है। चीन का विस्तारवादी अतीत भी उन्हें ऐसा सोचने पर मजबूर करता है। बलूचिस्तान न केवल पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बल्कि प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा, रेडियम जैसे कई महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार भी वहां हैं। पहले-पहल सिंगापुर की एक कंपनी इसका संचालन कर रही थी, फिर चीन ने इसे अपने ही देश की कंपनी को दे दिया।
पिता जी, मैं आपके लिए अमरफल लेकर आया हूं। व्यापारी पिता ने चौंकते हुए कहा कि क्या कह रहे हो? अमरफल जैसा कुछ होता भी है?
बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि पिता जी, जब मैं बाजार पहुंचा, तो फल की सभी दुकानें देखी। तरह-तरह के फल बाजार में बिक रहे थे। मैं सोचने लगा कि क्या लूं? तभी मेरी नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी। वह भूख से तड़प रहा था। मैंने फल के पैसे से खाना खरीदा और उस बुजुर्ग को खिला दिया।
खाना खाने के बाद उस बुजुर्ग ने जिस तरह सच्चे मन से मुझे आशीर्वाद दिया, वह मुझे किसी अमरफल से कम नहीं लगा। अब आप बताइए, मैंने कोई गलत किया। पिता ने गदगद होकर कहा, बेटा, तुमने बहुत अच्छा काम किया।
बदला बना ऐसा नजीर
सटीक निशाने पर थे सब तीर
छोड़ा बनाकर दुश्मन को फकीर
धन्य धन्य भारत के सैन्य वीर ।
आंख उठाकर अब देखा अगर
तो भारत मचायेगा ऐसा कहर
टूट टूटकर सब जायेगा बिखर
दुश्मन न आयेगा नक्शे में नजर ।
"क्या फर्क पड़ता है,
कुछ देर बरसेंगे फिर गायब" ...
कुछ देर को ही सही
उनके बरस जाने से फैली
सौंधी गंध के लिए हम
उनके शुक्रगुजार नहीं होते
शुष्क चट्टान की तरह
अपने चोचलों में मग्न रहते हैं
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आज बस
सादर वंदन
आदरणीय सर, भारत के शौर्य पर लिखी मेरी रचना "भारत ने खेल ,खेल दिया" को इस मंच पर स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस अंक में सभी संकलित रचनाएँ बहुत ही उम्दा है सभी आदरणीय को बहुत बधाइयाँ ।
सादर । जय हिन्द जय भारत ।
शानदार अंक!
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