नमस्कार ! आज पुनः सोमवार को उपस्थित हूँ आपके लिए कुछ लिंक्स सहेज कर .......... लिंक्स सहेजना वैसे मैं पूरे सप्ताह करती रहती हूँ और कभी कभी पुराने वर्षों की पोस्ट पर भी घूम कर जो मुझे पसंद आती है वो पोस्ट सहेज लेती हूँ , अपनी प्रस्तुति में देने के लिए ........ अब ये भूमिका किस लिए तो बताती हूँ कि सोमवार की प्रस्तुति के लिए सन्डे को ही ज्यादातर पोस्ट सहेजी जाती हैं .... ........ और सन्डे के क्या क्या नज़ारे होते हैं उनको पढ़िए इस पोस्ट में .....
सन्डे की सुबह .
सन्डे' की सुबह, 'पॉश-कॉलोनी' की
'बालकनी' में…… जो एक
लम्बा सन्नाटा
बिछ जाता है……
शनिवार की रात का
'साइड-इफेक्ट'
साफ नज़र आता है.
साइड इफेक्ट केवल सन्डे के ही नहीं बहुत चीज़ों के होते हैं ......... अब देखिये हम क्या सोच कर कुछ करते हैं और क्या से क्या हो जाता है ......
ज़िन्दगी की ड्रेजिडियत
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत…!
खुद से वादा कर
न्यूयॉर्क. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने बहुभाषावाद(multilingualism) पर एक उल्लेखनीय पहल की है। भारत के लिए यह गौरव की बात है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा(UNGA) के कामकाज में अब हिंदी भाषा को भी जगह मिलेगी। UNGA ने 10 जून को इस दिशा में एक उल्लेखनीय पहल करते हुए बहुभाषावाद (multilingualism) पर भारत की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव को पारित कर दिया। यानी अब UNGA के कामकाज में हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं को भी तवज्जो मिलेगी। बता दें कि अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश संयुक्त राष्ट्र की 6 आफिसियल लैंग्वेज हैं, जबकि अंग्रेजी और फ्रेंच UN सेक्रेट्रिएट की कामकाजी भाषाएं हैं।
बहुत पुरानी बात नही है , होगी तब की ,जब आदम -हव्वा कुछ समझने लायक भी नही हुए होंगे ।। रोती लड़की को देख ,लड़के ने पूछा "रोती क्यों है इतना ?"
लड़की ने सुबकते हुए कहा "मेरी माँ चली गयी उन सितारों के पास ,"😢
ओह!लड़का सुन कर कुछ परेशान हुआ , फिर बोला ," सुनो! अब जब भी रोना आये तो मेरा नाम लेना , रोना बन्द हो जाएगा |
माँ
माँ भर देती है डिब्बे में
पूरियाँ,भाजी और थोड़ा-सा अचार,
रख देती है थैले में पानी के साथ
और पकड़ा देती है मुझे जाते-जाते. |
लीजिये ..... हम तो यहाँ प्रेम की बात कर रहे हैं और लोग हैं कि चमचा बनाने की बात ले कर बैठे हैं ........ अब समझ नहीं आता कि दुष्यंत साहब के शेर को ले कर लोग इतने संजीदा क्यों हैं कि एक पत्थर उछालने की बात कही थी आसमान में ....... यहाँ तो बारिश हो रही ...... पढ़िए
कौन कहता है कि छलनी को फिर से चमचा नहीं बनाया जा सकता .....
अब कोई चमचा बने या नहीं लेकिन आज की तारिख में सब लेखक बन रहे हैं और खुद को व्यथित भी कर रहे हैं .....नहीं विश्वास ? चलिए हम पढवा रहे हैं .........
एक लेखक की व्यथा --
फिर एक दिन हिम्मत करके
पत्नी के गुल्लक से पैसे निकाले,
और कर दिए हिम्मत लाल प्रकाशक के हवाले।
सीना २४ इंच से बढ़कर २५ इंच का हो गया,
जब छपकर हाथ में आ गई किताब।
२४ इंच का सीना बस २५ इंच हुआ ? हमें तो लगा कि यहाँ भी ५६ इंच से कम क्या बात होगी ........ वैसे व्यंग्य तो ये भी ज़बरदस्त है जो लोग २४ इंच का सीना ले कर लेखक बने हैं वो भी विरोध में खूब बोलते हैं .....😅😅
और हम हैं कि विरोध की परवाह नहीं करते ......... अब भले
ही कोई कह दे कि आप ५ की जगह १० लिंक लगा देती हैं ......... अब क्या करें ? जो पसंद आता है सब समेट लेते हैं ...... फिर भी बहुत कुछ रह जाता है हर बार ....... तो भई गुजारिश है कि बंदिश न लगाना ..... कभी ये भी हो सकता है कि एक ही लिंक ले कर प्रस्तुति लगा दूँ... 😆
चलते चलते अभी अभी ज्ञान मिला कि हम सब कवि हैं जो कुछ भी करते हैं बस कविता हो जाती है ......
कविता ही तो है !
कहते और कहते रहने का प्रयास ,
तुम हम में बसी
आत्मा को जीवित रखने का प्रयास ,
और नहीं तो क्या ,
कविता ही तो है !!
आप लोगों का कुछ ज्यादा ही समय लेते हुए ......... अब समाप्त कर रही हूँ ........ मिलते हैं अगले सोमवार को कुछ नए लिंक्स के साथ ..... ..... तब तक के लिए ..... नमस्कार
संगीता स्वरुप
सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
सादर
शुक्रिया ।
हटाएंशुक्रिया इतनी सुंदर चर्चा के लिए और मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंखूबसूरत अंदाज़-ए -बयां और सुंदर लिंक्स संयोजन !!मेरी कृति को स्थान मिला उपकृत हूँ दी !!
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु आभार ।।
हटाएंहमारी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद । आप चर्चा मे शामिल करती है तो पढ़ने वालो की संख्या दो अंको मे हो जाती है । आपकी टिप्पणीयां ब्लॉग को सक्रिय रखने के लिए उत्साहित करती है ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद । ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का भी इंतज़ार रहता है ।
हटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सार्थक और पठनीय संकलन । कुछ रचनाएँ पढ़ीं । कुछ अभी पढ़ूंगी । ब्लॉग पर आपकी सक्रियता हम सभी को हमेशा उत्साहित करती है ।
जवाब देंहटाएंआपकोरा नमन ।
हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा । तुम्हारी सक्रियता प्रेरित करती है ।
हटाएंसादर नमस्कार दी🙏
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी की बातों से मैं भी सहमत हूं, आप की उपस्थिति सोये ब्लॉग जगत को जगाने में सक्षम है। बहुत ही सुन्दर अंदाजे बयां है आपका, और लिंक चयन के क्या कहने। इस श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए सत सत नमन आपको 🙏
तहेदिल से शुक्रिया कामिनी ।।तुम लोग ही अभी ब्लॉग को जिलाये हुए हो ।।सराहना हेतु आभार ।
हटाएंहिन्दी जिंदाबाद
जवाब देंहटाएंज़िंदाबाद 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार कविता जी ।।
हटाएंआपकी लगन और मेहनत को नमन संगीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही आकर्षक प्रस्तुति लग रही है, शीध्र ही सभी लिंक्स पर भ्रमण होगा।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सादर सस्नेह।
आभार कुसुम जी । आप जैसे ब्लॉगर और पाठक नया हौसला देते हैं ।
हटाएंसुगढ़,सकारात्मकता से भरपूर प्रस्तुति का रहस्य आपकी सप्ताह भर की मेहनत है।
जवाब देंहटाएंकितनी सहजता से एक रचना के शब्दों का रस निचोड़कर उसके भावों की खुशबू दूसरी रचना के साथ सम्मिलित कर मनमोहक सुगंध फैलाती और पराग छिड़कती जाती हैं।
अलग-लअग फूलों को एकसाथ इतनी सुगढ़ता से पिरोकर बहुत सुंदर माला तैयार की है आपने।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं-
तो बात शुरू करें
समाचारों से
संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं में हिंदी सम्मिलित,
झूठ की प्राणप्रतिष्ठा कर
कौन कहता है कि छलनी को फिर से
चमचा नहीं बनाया जा सकता
संडे की सुबह
ज़िंदगी की ड्रेजिडियत सोचते हुए
ख़ुद से वादा करते हुए
उसने कहा था
मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
सोचती हूँ ..
एक लेखक की व्यथा
कविता ही तो है
माँ की मन्नतों जैसी...।
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अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में-
सप्रेम
प्रणाम दी।
सादर।
कुछ ज्यादा ही प्रशंसा नहीं हो गयी ?
हटाएंवैसे प्रशंसा की पात्र तो तुम हो जो हर बार लिंक्स को जोड़ एक रचना सृजित कर देती हो ।।
सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
बहुत अच्छा संजोई हैं .. आभार कि मुझे भी जोड़ दीं..
जवाब देंहटाएंआभार । मैं तो इंतज़ार में थी कि आप कब ब्लॉग पर कोई पोस्ट डालें । रोज़ मर्रा के जीवन पर आपका अवलोकन हमेशा आकर्षित करता है ।।
हटाएंसंगीता जी हमेशा कुछ नया लाती हैं अपने क्रिएटिव माइन्ड से ।इस बार सन्डे के नजारे खूब दिखाए- सन्डे की सुबह का नजारा देखने के चक्कर में खुद की चाय ठंडी हो गई मृदुला प्रधान जी की तो, ज़िंदगी की ट्रेजिडियत में मज़ेदार स्यापा भी देखने मिला…हमारी पोस्ट मन के हारे…लेने का पुन: शुक्रिया…खुद से वादा कर…बढ़िया नसीहत गौरव कुमार जी की…इसके अतिरिक्त झूठ की प्राणप्रतिष्ठा…संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं में हिन्दी सम्मिलित…सबको बधाई…रन्जु भाटिया की पोस्ट हमेशा की तरह बहुत रोचक…शीर्षक से चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की याद आ गई…माँ कविता माँ ने माँ के हाथ के खाने की याद दिला दी…छलनी को चमचा बनाती पोस्ट भी रोचक है तो…डॉक्टर दराल ने लेखक की व्यथा खूब लिखी है…अनुपमा जी कविता, कविता ही तो है…कोशिश की सब पर कमेन्ट करूँ परन्तु कुछ पर असमर्थ रही…सभी लिंक ज़बर्दस्त, संगीता जी व सभी रचनाकारों को बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंआज तो उषाजी आपने क्लीन बोल्ड कर दिया है । पूरी चर्चा की सुंदर और सार्थक समीक्षा ही कर दी है ।।हृदय तल से आभार ।
हटाएंवाह लाजबाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार भारती
हटाएंबहुत सुन्दर और लाजवाब सूत्रों से सजी खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मीना ।
हटाएंहमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, कमाल की तारतम्यता , सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा ,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया । प्रस्तुति पसंद आई मुझे संतुष्टि मिली ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति.शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंआभार 🙏
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