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बुधवार, 15 जून 2022

3425 ...क़त्लो गारत, संगसारी, सिर क़लम करना कहाँ की मज़हबी यह रीत है

 सादर अभिवादन.....
पम्मी जी आज नहीं हैं
सफर पर गई हैं
मैं हाजिर हूँ....

भारतीय नूपुर ऐसी बजी के आवाज नूपुर की
विश्व के 57 देशों में सुनाई पड़ी और अब तक पड़ रही है
अरबों का इनाम रख दिया नूपुर की ज़बान का,गले की ,सिर का
बिना किसी प्रयास के प्रचार...

मुफ्त में पब्लिसिटी......


खुद से प्यार करने के लिए शादी जैसे आडंबर का महिमामंडन करना गैर जरूरी सा लगता है। क्षमा का फैसला एक पब्लिसिटी स्टंट होने की संभावना ज्यादा लगती है क्योंकि कुछ दिनों पहले तक क्षमा को कोई नहीं पहचानता था और आज पूरा देश उसे पहचान रहा है! लेकिन यदि सोचा जाए तो आइडिया उसका...पैसा उसका...फैसला उसका...इसलिए यदि उसके फैसले से किसी को नुकसान नहीं हो रहा है.




चलो माना फ़क्र हो अपने अक़ीदे पे यह ठीक है
पर और के ईमान पे उँगली उठेगी सोचा न था

क़त्लो गारत, संगसारी, सिर क़लम करना कहाँ की मज़हबी यह रीत है?
ऐ खुदा तेरी इबादत का यही अंजाम होगा सोचा न था

इन्ही उपन्यासों को पढ़कर लोग कतल,बलात्कार के सीन को रिक्रिएट करते हैं
आमतौर पर थ्रिलर फिल्में या उपन्यास अपनी तेज़ रफ़्तार में आपको सोचने..समझने का मौका दिए बिना अपने साथ..अपनी रौ में बहाए लिए चलते हैं। मगर सुखद आश्चर्य के रूप में यह उपन्यास अपने लॉजिक..अपने तर्कों के साथ आपको दिमाग़ी कसरत करने एवं ज़हनी घोड़े दौड़ाने के अनेकों मौके देता है।



पर मैंने संभाल कर रख दी
उचित जगह पर
मेरे बच्चों की नाक
समय आने पर साहेब
मिलवा दूंगा कभी मैं
अपने बच्चों की
नाक से
आपकी ऊँची रौबीली नाक



साजिश से जीतेगा, छी
ये बिल्कुल अच्छा नहीं है

हेर फेर तू जितना भी कर
हिसाब उसका कच्चा नहीं है




मित्र , लेकिन..
सिखा दो मुझे पहले
अपनी तरह
तुम ये चलना
मुझे भी
यहाँ से वहाँ ..


माह मे मात्र एक....
कुछ एक दिन की एक कविता कर चुक जाते हैं
कुछ बस कविता जी लेते हैं कुछ कविता सी लेते हैं
कुछ कविता उड़ा ले जाते हैं पतँग की डोर से
कुछ कविता जिता ले जाते हैं कविता दौड़ में  
.....
आज बस
सादर

6 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए बढिया संकलन

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा संकलन। मेरी रचना पांच लिंको का आनन्द में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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