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सोमवार, 20 जून 2022

3430.. / क्या यार पापा .... मनोज मुन्तशिर .

 


नमस्कार ........  आज जब ये पोस्ट बना रही हूँ  तो आज का दिन पिता के नाम समर्पित है ........ कल हमने   पाँच लिंकों के आनंद पर  पिता पर लिखी कुछ पुरानी और बेहतरीन पोस्ट्स पढ़ीं ....... आज प्रारंभ करते हैं    आत्ममुग्धा  की एक बहुत  प्यारी पोस्ट से .... 

 पिता  और चिनार  

बस यूँ ही 
पतझड़ और बसंत को जीते हुए,
हम सब को सीख देते हुए
अडिग रहते हैं हमेशा
 चिनार और पिता .

एक ओर जहाँ बेटी अडिग पिता की तुलना चिनार से  कर रही है वहीँ एक और बेटी पिता से  कह रही है कि वो अपने  संस्कारों  के प्रति तो अडिग है लेकिन समय के साथ चलना चाहती है ....... 

कि बेटी चाहती है अब !


वहाँ मैं संस्कारों का

तुम्हारे मान रक्खूँगी 

मूल्य का निज के जीवन में

नित्य अवधरण कर लूँगी 

मगर मिथ्या अनर्गल 

बात पर मुझको नहीं झुकना  |



ये तो था पिता और बेटी का प्यार ......... बेटियों के मन की   भावनाएँ ....... अब पढ़िए एक भाई का अपने भाई के प्रति प्रेम की एक झलक .......... क्या नायब तोहफा देता है एक भाई अपने भाई को .... 


सबसे नायाब ........


जहाँ से इस तोहफे को उठा लायी हूँ  वहाँ ज़बर  ताला लगा हुआ है ....... इस लिए आप वहीँ जा कर इस पोस्ट का आनंद लें ........ झलक के लिए कुछ नहीं दिखा पाऊँगी यहाँ  . 


तोहफे की बात चली है  और  मौत से जूझते हुए ज़िन्दगी की बात ........ तो एक किस्सा पढ़ते हैं  कि ज़िन्दगी रहते हुए भी लोग अपने क्रिया क्रम का क्या और कैसा इंतजाम कर लेते हैं ........ है न बड़ी दिलेरी की बात ..... और ये एक सच्ची कथा है .......


पाँच मेल की मिठाई ..


भरी तिजोरी की स्वामिनी अपनी जिया की यह फ़रमाइश कंजूसड़े लाला जी को पूरी करनी ही पड़ी और हमारी जैन-जैसवाल बिरादरी के इतिहास में पहली बार किसी बुजुर्गवार के जीते जी उनकी तेरहवीं हुई.
बिरादरी के सैकड़ों लोग इस अजीब सी अग्रिम तेरहवीं में शामिल हुए और एक ऊंची कुर्सी पर बैठ कर ख़ुद को पंखा झलती बूढ़ी अम्मा ने अपनी अग्रिम तेरहवीं के भोज का सुपरविज़न किया.

तू डाल -डाल मैं पात - पात को चरितार्थ कराती ये पोस्ट रोमांचित कर गयी ....... और रोमांच का आना निश्चित है जब भीषण गर्मी के बाद आषाढ़ के माह के पहले दिन का इतना खूबसूरत वर्णन हो ....... बस एक जिज्ञासा कि ये पत्नीटॉप है या पटनीटॉप ........... खैर आप तो कविता पढ़ें जिसमें प्रकृति का खूबसूरत नज़ारा शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है ......


 दिन ओढ़े  आषाढ़ के,

बादल ऊपर चढ़ आए।

मानों यक्षी की पाती का,

हर हर्फ  वे पढ़ आए।


इस खूबसूरत रचना के साथ ही  आज लिंक्स की चर्चा यहीं  समाप्त  करती हूँ .......... और इस समापन के साथ  मनोज मुन्तशिर  की कुछ रचनाएँ ...उनकी ही ज़ुबानी ........  पितृ दिवस  पर विशेष पेशकश ......





अब इजाज़त दीजिये ............ मिलते हैं अगले सोमवार कुछ नयी - पुरानी रचनाओं के साथ ...
नमस्कार

संगीता स्वरुप


26 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार संग्रहणीय अंक..
    आभार..
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत मोहक, मर्मस्पर्शी और भाव प्रवण रचनाओं का रुचिकर संग्रह है यह अंक। पटनीटॉप, पत्नीटॉप और पत्नीतोप नाम से उच्चरित इस रमणीक स्थान का पत्नी टॉप नाम ही मुझे ज्यादा पसंद आया। कारण स्पष्ट है, समझदार को इशारा काफी😄
    https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%AA
    अत्यंत आभार और सुंदर संग्रह की बधाई!🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. विश्वमोहन जी ,
      आपने मेरी शंका का इतनी खूबसूरती से समाधान करते हुए इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया । 😄😄
      आभार ।

      हटाएं
  3. बहुत ही सुंदर और सराहनीय अंक.. हर रचना पर गई, सब एक से बढ़कर एक, अद्भुत संयोजन। "सबसे नायाब"कहानी एक नया आयाम दे गई, भाई का दिसंबर में कैंसर का ऑपरेशन हुआ था कुछ ऐसे ही मनोभाव में थे, जैसा कि इस कहानी में वर्णित है सोचा कि उन्हें शेयर कर दूं। पर सच वहां जबर ताला है। उनको पढ़ाया बहुत प्रेरक कहानी लगी । आपका चयन मेरे लिए सार्थक रहा ।
    आपके श्रमसाध्य प्रस्तुति की तहेदिल से सराहना करती हूं। आपको मेरा नमन और वंदन।
    मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत आभार ।
    सादर अभिवादन सहित सभी के लिए मेरी सादर शुभकामनाएं 🌹🌹❤️❤️

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      सराहना हेतु आभार ।
      सबसे नायाब पढ़ कर जो तुमने लिखा तो प्रस्तुति सच ही सार्थक हो गयी ।

      हटाएं
  4. जी दी,
    बेहतरीन रचनाओं के सीमित सूत्र आपके आत्मीय स्पर्श से और निखर गये हैं।
    सभी रचनाएँ बेहद मर्मस्पर्शी है।
    पिता के लिए क्या लिखें–
    समयचक्र पर आपकी बातें,
    स्मृतियाँ विह्वल कर जाती है
    काँपती जीवन डोर खींच
    प्रत्यंचा मृत्यु चढ़ाती है
    संबल,साहस,संघर्ष का ज्ञान
    आपकी सीख, मैं कभी भूल न पाती
    मैं कभी भूल न पाती
    -------
    बेटी चाहती है
    पिता और चिनार की छाँव,
    सबसे नायाब सौंदर्य है
    पटनी टॉप का,
    पाँच मेल मिठाई का स्वाद
    आजीवन नहीं भुलाय जा सकता।
    -------
    मुंतशिर साहब को सुनकर मन भावुक हो गया।
    ----
    अगले सोमवारीय अंक की प्रतीक्षा में-
    सप्रेम
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय श्वेता ,
    समयचक्र पर आपकी बातें,
    स्मृतियाँ विह्वल कर जाती है
    काँपती जीवन डोर खींच
    प्रत्यंचा मृत्यु चढ़ाती है
    संबल,साहस,संघर्ष का ज्ञान
    आपकी सीख, मैं कभी भूल न पाती
    मैं कभी भूल न पाती।
    पिता की सीख कम से कम बेटियाँ तो नहीं ही भूल पातीं ।।पूरी प्रस्तुति इतने मनोयोग से पढ़ने और मुन्तशिर साहब को सुन कर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उषा किरण जी यहाँ टिप्पणी नहीं कर पा रहीं ----
    सराहनीय अँक …
    संगीता जी फादर्स डे पर बहुत भावपूर्ण लिंक्स लगाए आपने-
    आत्ममुग्धा की -चिनार और पापा
    जिज्ञासा की - कि बेटी चाहती है अब
    सबसे नायाब-एक सच्ची कथा
    अद्भुत तेरहवीं , पाँच मेल की मिठाई
    विश्वमोहन की पत्नि टॉप
    मनोज मुन्तजिर की- क्या यार पापा….सभी रचना बहुत बढ़िया…संगीता जी और सभी रचनाकारों को बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर अंक ,बहुत बढ़िया पोस्ट पढ़ने को मिलीं। धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. अत्यंत सुन्दर पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय दीदी, बहुत ही सादगी से, भावपूर्ण रचनाओं से सजा आज का अंक बहुत अच्छा लगा।गोपेश जी के बतरस ने बहुत आनंदित किया तो कैन्सर पीडित भाई को उम्मीद से भरने के लिए बड़े भाई का प्रयास बहुत भावुक कर गया।पिछ्ले साल हमारे ननदोई जी को भी इस भयावह रोग ने अपनी गिरफ्त में ले लिया तो सबसे बड़ी बात उनके भीतर उम्मीद जगाने की थी।उसी जगी आशा के बूते वे आज स्वस्थ हैं।दुआ और दवा के साथ मन की उम्मीद हरी रहे तभी उत्तम स्वास्थ्य को पाया जा सकता है। पिता के विराट व्यक्तित्व को शब्दों में सहेजती आत्म मुग्धा जी की भावपूर्ण रचना हृदयस्पर्शी है।जिज्ञासा जी की रचना आज की शिक्षित और संस्कार बेटी की आवाज है जो स्वाभिमान के साथ जीने के लिए प्रतिबद्ध है।इस रचना ने मुझे बहुत प्रभावित किया।यही है सार्थक नारी विमर्श जिसे प्रिय जिज्ञासा ने बहुत ही सुघड़ता से शब्दबद्ध किया है।और पत्नी टॉप हो या पटनी टॉप,आदरनीय कविराज को पत्नी को टॉप पर रखने की अधिकार है।और मुन्तजिर के अंदाजे बयां का क्या कहना और वो भी तब जब विषय पिता हो।आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए।सभी रचनाकार सराहना और बधाई के पात्र हैं।🙏🌺🌺🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय दीदी, मेरे ब्लॉग के फॉलोवर घट रहे हैं, कारण नहीं जान सकी 🙁🙁🙏

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति हमेशा की तरह।
    सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय
    बस मनोज मुन्तशिर जी को सुना बचा है कल सुनुँगी...सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय रेणु ,
    हर लिंक के विषय में अपनी विशेष वक्तव्य से जो सराहना की है उसके लिए दिली शुक्रिया ।
    इस तरह की प्रतिक्रियाओं से ही चर्चाकार का हौसला बना रहता है । पुनः आभार ।।

    जवाब देंहटाएं
  14. हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति
    सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय ।
    कल रात की मेरी टिप्पणी दिखाई नहीं दे रही स्पैम हो शायद ।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार । कुछ लोगों का अपनी प्रस्तुति पर आने का इंतज़ार करती हूँ । उनमें से एक नाम तुम्हारा भी है ।😄

      हटाएं
  15. लिजिए दी देर से ही सही मैं भी आ ही गई, आप से मिलने की प्रतीक्षा तो सबको होती है, मैं भी खुद को कहा रोक पाती हूं, बस लेट लतीफ़ हू थोड़ी देर हो जाती है, लेकिन कसम से दी मैं देर करती नहीं देर हो जाती है जिसके लिए दिल से क्षमा चाहती हूं☺️,आपके श्रम को तो मेरा हमेशा नमन है, ऐसे ही तो नहीं कहते लोग " old is gold"एक से बढ़कर एक रचनाएं संजो लाईं है आप, सभी को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी ,
      देर हो जाये तो कोई बात नहीं , बस भूलना मत 😄 ।
      पता नहीं इतनी प्रशंसा की हकदार हूँ या नहीं लेकिन इतना प्यार मिलता है तो निश्चय ही भाग्यशाली तो हूँ ।
      सस्नेह
      आभार ।।

      हटाएं

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