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शुक्रवार, 24 जून 2022

3434 / अथ श्री बुलडोज़र कथा .....

 


शुक्रवारीय अंक में 

आप सभी का स्नेहिल अभिवादन |

******************

आज 

हर स्त्री के मन की बात 

*************

सोते हुए ही 

किसी भी स्त्री का 

रुकता है सोचना ,
 
वरना तो पल पल 

कुछ भी करते हुए 

स्वयं से ही 

चलता रहता संवाद 

विषय कोई भी हो 

करती रहती है 

स्वयं की स्वयं से बात ,


कभी अतीत की गलियाँ 

घूम आती है  

गूँथते हुए आटा ,

तो कभी भविष्य 

सोचते हुए 

चिंतित मन के आगे 

खिंच जाता सन्नाटा । 

संगीता स्वरुप 

*************************

अब  आज की रचनाओं का आनंद लें .......


अब बहुत हो गयी श्वेता की नक़ल ......... कोशिश कर रही थी कि उसके जैसी प्रस्तुति लगा सकूँ ....... लेकिन सबका अपना ही तरीका होता है ...... एक जैसा तो नहीं हो सकता  , तो भई मैं आ जाती हूँ अपने ही अवतार में ......
बात अवतार की चली है तो  डॉक्टर रश्मि ठाकुर हिंदी लेखन में अवतरित हो रही हैं ...... पढ़िए और उत्साहित कीजिये ......... वैसे उन्होंने हम सब लिखने वालों के मन की बात कह दी है .... 

कभी भावनाओं से बुहारती हूँ,
कभी आंसूओं से पखारती हूँ,
कभी इतना कोलाहल करते हैं,
कि चुप कराना मुश्किल,
कभी ऐसे चुप,
कि बोलवाना मुश्किल।
ये मेरे दोस्त हैं, मेरे हमनवा,
जो आते हैं, कहीं मन के कोने से,
जब मैं अकेली होती हूँ।

शब्द कभी भी आपको अकेले नहीं रहने देते ........... ऐसे ही बड़े बुजुर्ग भी अपने बच्चों का सदा ध्यान रखते हैं ........ लेकिन क्या जिस तरह आप शब्दों को  पकड़ कोई नयी रचना बुन लेते हैं वैसे ही क्या बुजुर्गों का हाथ पकड़ते हैं ?   ....... एक लघु कथा जो मन को छू गयी ..... 

बाबू जी की उमर


वो तो ..वो तो.. ऐसे ही..वो बाबू जी को अचानक देख
शालिनी हड़बड़ा गई ।
उसने जल्दी से अपना आँचल ठीक किया और पैरो में झुकते हुए बोली..चरण स्पर्श बाबू जी ।
बाबू जी ने उसके शीश पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी । सानंद रहो, भगवान तुम्हें लंबी उमर दें ।

हर जगह विसंगतियाँ  दिखाई देती हैं ........  वो चाहे परिवार की बात हो या समाज की .अब आलम ये है  कि सब कुछ अच्छा ढूँढने  का प्रयास कर रहे हैं .......

इस कंक्रीट के जंगल में मकान तो बहुत हैं

पर घर कहाँ हैं।

मकानों में, हवेलियों कमरे तो हैं अनगिनत

पर उनमें रहने वाले अपने कहाँ हैं।


यही सब कहाँ है ढूँढते हुए पहुँच गए ऐसे घर में जहाँ पितृ दिवस पर बच्चों से कुछ चित्र बनवाए गए थे ....... परिणाम आप लघु कथा पढ़ कर जानिये .......

पितृ दिवस _ लघुकथा


बच्चों के चित्रों में विविधता थी ! किसीमें पापा बच्चों के लिए घोड़ा बने हुए उन्हें सवारी करा रहे थे,

 किसीमें बच्चों को चॉकलेट और गुब्बारे दे रहे थे, किसी में बच्चे पापा के कंधे पर सवार थे तो किसीमें

 बच्चों को पापा किताब से कहानी सना रहे थे !

अब इस कथा के परिणाम से तो आप परिचित हो गए .....लेकिन देखिये नशा और क्या क्या गुल खिलाता है ......  पढ़ते  हैं एक और लघु कथा ......


मँहगाई


मगरू मन ही मन बुदबुदाया- साली पैसे भी ऐसे गिनकर देती है, जैसे खुद कमाती हो। फिर सब्जी वाले से बोला-अबे ठीक लगा ले चाचा। पीछे 20 का किलो दे रहा है, और तुम तो सीधे 50 पे पहुँच गए! ज़्यादा नहीं तो 20 का किलो लगा ले चाचा..

इसमें स्त्री के लिए गाली का प्रयोग हुआ है ...  यानि कि हमेशा ही  हमारे देश में नारी को दोयम दर्ज़ा ही मिला है ...... लेकिन आज हर क्षेत्र में जहाँ नारी आपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है वहीँ  अपने काम में निपुण भी है ...... इसी को आप पढ़िए इस लेख में ..... 

पायलट मोनिका खन्ना: एक 'beauty with brain' 

कुछ लोग कहते है कि महिलाएं कमजोर और डरपोक होती है। महिलाओं को अच्छे से गाड़ी भी चलाना नहीं आती। जो महिलाएं सुंदर है वे बुद्धिमान नहीं होती और जो महिलाएं बुध्दिमान है वे सुंदर नहीं होती। उन लोगो को अपनी बुध्दिमानी और बहादुरी से पायलट मोनिका खन्ना ने करारा जवाब दिया है . 

एक सैल्यूट मोनिका खन्ना को तो बनता है  ......... और आगे के लिए शायद आप इनको भी सैल्यूट करें .......... जिनका नाम देश के राष्ट्रपति पद के लिए चयनित किया गया है ......... थोड़ी जानकारी उनके बारे में .... 


 संघर्षशील और जुझारू महिला आदरणीया द्रौपदी मुर्मू मैडम जी के नाम से लोकप्रिय हैं।ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर से आने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू यानी मैडम जी की भगवान शिव में गहरी आस्था है।मैडम जी प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय मिशन से जुड़ी जनजातीय समाज से पहली महिला हैं जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद हेतु राजग प्रत्याशी बनाई गई हैं | 

 मेरी निजी इच्छा तो यही है  कि द्रोपदी जी ही इस पद की गरिमा को   बढ़ाएँ  ....... आगे देखिये होता है  क्या ........ क्या फैसला आता है ......... और रही फैसले की बात तो चलिए पढ़िए एक लघु कथा .... 

एक फैसला ऐसा भी…,


तभी घूँघट मे रोती नाथूराम की पत्नी अपनी बेटी को दोहत्थड़ जड़ते हुए चिल्लाई - “करमजली ! सास थी तेरी

 दो लात मार भी दी तो मर तो नहीं गई थी तू ! घर से बाज़ार तो कभी गई नहीं , सकूल का मुँह माथा देखा नहीं और चल पड़ी 

सीधी दिल्ली ।”


 मैं तो इस फैसले के साथ हूँ  और आप ?  बेचारी के मन में कुछ अरमान थे , अभिलाषा थी ........अब चाह तो कोई भी ,कुछ भी कर सकता है ....... ऐसे ही एक चाह आप पढ़िए यहाँ ...... 


कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं हो
चाहे जैसे रहूँ चाहे जो भी सहूँ !
कभी तुझसे कोई..

अब जब ऐसी अभिलाषा कर ली तो फिर क्या शिकायत ?    वैसे आज कल शिकायतों का बड़ा दौर चल रहा है ........ राजनैतिक गलियारे में तो विशेष रूप से ...... खैर हम राजनीती की बात तो करते ही नहीं बस अपने मन की बात करते हैं ......... अरे मन की भी नहीं करते वरना कह देंगे लोग कि  मोदी  भक्त हैं ........चलिए सीधे सीधे ले चलते हैं एक व्यंग्य पर ......


चेतावनी: इस पोस्ट में योगी जी का न तो हाथ है न ही दिमाग इसलिए कृपया MYogiAdityanath योगी जी जैसे अनुभवहीन को इससे जोड़ कर न देखा जाए।🤭🤪
समय के साथ सोच, शब्द, भावनायें और उनकी परिणति ही नहीं बदली बल्कि तेजी से बदलते समय, मशीनीकरण और मानसिकता से प्रेम भी अछूता नहीं रहा है। अभी तक शब्दों और भावनाओं का मानवीयकरण हो रहा था पर आज यहां शब्दों, भावनाओं और मुहावरों का मानवीयकरण न होकर मशीनीकरण होगा। आज के घोर मशीनीकरण और घनघोर टीवीकरण के कर्कश, कर्णकटु स्वर 🥺🥺के प्रदूषण से उपजी एक अनोखी, अनहोनी सी प्रेम कथा .....

लीजिये .... आप आनंद उठायें इस प्रेम कथा का ....... और अब मुझे दें इजाज़त ......... अरेएएएएए ...................... ओह , इतनी लम्बी पोस्ट ............. . मैं तो भूल ही गयी थी कि ये पोस्ट तो श्वेता की थी .......खैर अब झेलिये मुझे ....... ... और रहिये तैयार सोमवार को मेरे मन की बात सुनने के लिए ......

तब तक के लिए ......... नमस्कार

संगीता स्वरुप ...


31 टिप्‍पणियां:

  1. ताज़्ज़ुब..
    नहीं यह स्वप्न नहीं..
    मानदार,शानदार अंक
    आभार..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति । प्रस्तुति रूपी पुष्प गुच्छ में एक फैसला ऐसा भी …, को सम्मिलित करने के लिए असीम आभार । सादर सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गुलदस्ते का हर पुष्प अपनी अलग महक लिए हुए है ।एक अच्छी लघु कथा को सामने लाने के लिए रचना को लेने का फैसला तो लेना ही था ।

      हटाएं
    2. हृदयतल से हार्दिक आभार आ . दीदी !

      हटाएं
  3. विशेष शब्दों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति.. सभी रचनाकारों को बधाइयाँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. यहाँ सन्नाटा नहीं खिंचा है| यहाँ है हलचल शब्दों की, बाबूजी की चहलकदमी ,एक फैसला ,एक अभिलाषा इस सुन्दर प्रस्तुति और उसमें मुझे स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार संगीता दी

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति संगीता दी। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. इतने सुंदर सार्थक और श्रमसाध्य अंक की रचनाएँ पठनीय और रोचक हैं ।कुछ पढ़ीं, कुछ अभी पढ़नी है । समग्रता लिए इस अंक का हिस्सा बनकर अभिभूत हूं। आपने मेरे लेखन को अपनी सार्थक टिप्पणियों और प्रोत्साहन से हमेशा नया आयाम दिया है, आपकी तहेदिल से आभारी हूं। सुंदर रचनाओं के लिंक तक पहुंचाने के लिए आपका विनम्र धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचनाएँ पसंद आयीं , इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

      हटाएं
  8. ब्लॉग जगत का अंश बनाने के लिए धन्यवाद और आभार।रचनाओं का चयन और प्रस्तुति उत्कृष्ट है...विविध और रोचक।

    जवाब देंहटाएं
  9. ब्लॉग जगत के तो आप अंश में पहले से थीं क्यों कि इंग्लिश में तो आप लिखती ही थीं , हाँ हिंदी लेखन में भी आप आ रही हैं ये प्रसन्नता की बात है । मन में भाव हों और भाषा पर पकड़ तो कुछ भी मुश्किल नहीं है । आपकी रचना बेहतरीन रचनाओं में से एक है ।
    सराहना हेतु धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह वाह ! कमाल की हलचल ! और इस हलचल में तो हमारी लघुकथा भी दिख रही है ! क्या बात है संगीता जी ! आपका दिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! बहुत प्यार के साथ सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  11. जी दी,
    सबसे पहले बहुत-बहुत आभारी हूँ आपकी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आपने मेरे एक बार कहने से ही आज का अंक अपने प्रेम के रंगों से इंद्रधनुषी बना दिया है।
    शब्द से लेकर.बुलडोजर तक सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं।
    नये और पुराने साथियों के बीच की कड़ी हैं आप दी, सबको पढ़ना जानना अच्छा लग रहा है।
    विविधापूर्ण सुंदर रचनाओं से सुसज्जित आपके स्नेह और अपनेपन की गंध बिखेरती मनमोहक प्रस्तुति दी।
    बात करें आपकी लिखी भूमिका की-
    -----
    स्त्री मन की गुत्थी सुलझना
    रहस्यमयी भावनाओं के
    धागों में उलझ जाना
    टटोलते हुए स्वयं का अस्तित्व
    रिश्तों की भीड़ में
    अपनेपन की मरीचिका में
    नितांत तन्हा ही पाना।
    ------
    प्रस्तुति का दिन भले श्वेता का हो पर पेज़ तो आपका है न। आप ऐसे ही हँसते-खिलखिलाते आते रहिये।
    सप्रेम
    प्रणाम दी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रस्तुति के लिए आभार व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है । इस प्रस्तुति का बदला सूद सहित ले लूँगी आखिर बनिया हूँ 😆😆😆.
      भूमिका पर तुम्हारी नज़र पड़ी और उस पर सटीक और सार्थक टिप्पणी मिली , इसके लिए अभिभूत हूँ ।
      प्रस्तुति की सराहना हेतु शुक्रिया ।

      हटाएं
  12. आपकी प्रस्तुति सराहनीय होती है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुंदर अंक है आदरणीया दीदी। रचनाएँ पढ़ ली हैं। रश्मि ठाकुर जी की हिंदी रचना पढ़कर यही लगता है कि बहुत जल्दी हिंदी ब्लॉगिंग में भी वे एक सशक्त नाम बनकर उभरेंगी। इन दिनों स्वास्थ्य ठीक ना होने से अधिकतर रचनाओं पर प्रतिक्रिया नहीं लिख पा रही। सभी से क्षमा चाहती हूँ। ब्लॉग जगत पर इतनी निष्क्रिय होने पर भी जब मेरी रचना पाँच लिंकों में चुनी जाती है तो हृदय भावुक होकर धन्यवाद भाव से भर उठता है।
    पुनः पुनः आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      अपना ध्यान रखें । ब्लॉग जगत ऐसा ही है कि आप निष्क्रिय रहें तब भी लोग आपके ब्लॉग को पढ़ते हैं ,भले ही वहां टिप्पणी नहीं मिलेगी ।रचनाएँ पढ़ ली हैं तो तुम्हारी तरफ से पुरस्कार मिल गया । आभार ।

      हटाएं
  14. सुंदर सखद सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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