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बुधवार, 22 जून 2022

3432 ..नाम कभी मिटा नहीं..

 ।।प्रातः वंदन ।।

"पौ फटी....

चुपचाप काले स्याह भँवराले अंधेरे की घनी चादर हटी..

मग़रूर आँखों में गई भर जोत

जब फूटा सुनहला सोत.. 

सिंदूरी सबेरा बादलों की सैंकड़ों स्लेटी तहों को 

चीरकर इस भाँति उग आया 

कि जैसे स्नेह से भर जाय मन की हर सतह..!! "

 जगदीश गुप्त

सुबह की नर्म, उमस भरी बढ़तीं धूप संग चल रहा बहुत कुछ आजकल,  जब भी नई कुछ बात होतीं है...चलिए ये तो हुई जमाने की बात  हम बढ़ते हैं ब्लॉग की दुनिया में..कि हमें...✍️






इश्क -ओ - की बंदिशों में बंधकर रहना नहीं आता..

ये दायरे, ये बंदिशें

किसी और पर थोपो


मैं हवा का झोंका हूं

मुझे आवारगी पसंद है.

🔴

पलटन: नाम, नमक और निशान 


 मेरा नाम कभी मिटा नहीं, 
मेरी कहानियाँ मशहूर थी।
 यादों का जो सिलसिला था,
 वो पीढ़ियों का ग़ुरूर थी ।

जो फ़क़्र था एक हिस्से का, 
सबके ह्रदय का मीत था।
लक्ष्य पाया किसी एक ने ,
सब का वो आशीष था। 

🔴








 काश के तुमने 
 दिए होते जल को नेत्र
 तो देख पाता कि 
 उसके तीव्र वेग में
 समा हुए खेत,
 गहने गिरवी रख कर
 बनाया गया 

 कच्चा मकान,..

🔴

योग कर निरोग हों 











जल,अग्नि,भू, नभवायु

का इस हृदय में संयोग हो 

आइए नित भोर संग 

हम योग कर निरोग हों 


ये सृष्टिये धरतीगगन..

🔴

खाली बन्द मुट्ठियाँ

वह मुस्कान जो आँखों और   
ओठों से बाहर आकर  
अपने अस्तित्व से विभोर करने से पहले ही  
इर्द-गिर्द की रेखाओं में..

🔴

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️



6 टिप्‍पणियां:

  1. दिलखुश गुप्त जी की रचना से आगाज
    मन प्रसन्न हुआ..
    आभार..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सराहनीय और सामयिक अंक ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार पम्मी जी ।
    सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचनाओं का चयन आदरणीय पम्मी जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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