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गुरुवार, 9 जून 2022

3419...क्या सो रहे हैं देश के बुद्धिजीवी लोग सब?

शीर्षक पंक्ति: युवा कवयित्री आँचल पाण्डेय जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के सूत्रों के साथ हाज़िर हूँ।

रूपासी

शुक नासिका उदार लिए स्वर्ण नथनिया।

रतनार है कपोल शिशिरयामिनी चली।

है मंद हास रेख अधर पर खिली खिली।

वो रूपसी सुहास चटक दामिनी चली।

एहसास ...

वैसे रात का एहसास भी रौशनी के जाने से नहीं

अंधेरे के आने से होता है

छुए जाता है पवन ज्यों

व्यर्थ ही हम जूझते हैं

बह चलें सँग धार के यदि,

ऊष्मा भाव की खिल के

मुक्त होगी निज व उनकी!

जल रहा है देश मेरा।

क्या सो रहे हैं देश के

बुद्धिजीवी लोग सब?

या जागता है वीर कोई

ज्ञान-चक्षु खोलकर?

है धन्य-धन्य भारती की

बंद क्यों अब आरती?

चलते-चलते एक लघुकथा-

.....बेटी पढ़ाओ...बेटी बहाओ! (लघुकथा)

गुरुदेव की गीतांजली से गीतांजलि बोकरती रेत-समाधि तक। दुनिया के टीले को अपनी ओढ़नी से तोप दिया। आला इनाम, उनके नाम! सबने दुलारा। सबने सराहा।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


6 टिप्‍पणियां:

  1. विविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।
    हर रचना पठनीय ।
    सादर आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! श्रम से सजायी बेहतरीन रचनाओं की महफ़िल, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. मनोहारी प्रस्तुति , पठनीय आकर्षक रचनाएं।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर अंक, सभी रचनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग। रचना शैली एवं विषयों की विविधता उल्लेखनीय। सादर।

    जवाब देंहटाएं

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