शीर्षक पंक्ति: युवा कवयित्री आँचल पाण्डेय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के सूत्रों के साथ हाज़िर हूँ।
शुक नासिका उदार लिए स्वर्ण नथनिया।
रतनार है कपोल शिशिरयामिनी चली।
है मंद हास रेख अधर पर खिली खिली।
वो रूपसी सुहास चटक दामिनी चली।
वैसे रात का एहसास भी रौशनी के जाने से नहीं
अंधेरे के आने से होता है
क्या सो रहे हैं देश के
बुद्धिजीवी लोग सब?
या जागता है वीर कोई
ज्ञान-चक्षु खोलकर?
है धन्य-धन्य भारती की
बंद क्यों अब आरती?
चलते-चलते एक लघुकथा-
.....बेटी पढ़ाओ...बेटी बहाओ! (लघुकथा)
विविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।
जवाब देंहटाएंहर रचना पठनीय ।
सादर आभार आपका।
सुप्रभात! श्रम से सजायी बेहतरीन रचनाओं की महफ़िल, आभार!
जवाब देंहटाएंमनोहारी प्रस्तुति , पठनीय आकर्षक रचनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
लिंक्स संयोजन बढ़िया रहा । आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक, सभी रचनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग। रचना शैली एवं विषयों की विविधता उल्लेखनीय। सादर।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं