डोली चाहे अमीर के घर से उठे, चाहे गरीब के,
चौखट हर एक बाप की सूनी होती है....
चौखट हर एक माँ की ?
सुनकर कितने गाली, ताने,
रक्षा करे, न बनाए बहाने !
धूप , बारिश , जाड़े से नहीं डरता,
अपना काम बखूबी करता ।
लोग माने न माने!
यह बिल्कुल बुरा न माने।
पैर पटक हैं आते हैं जाते,
तेरे बिना आंगन भी अब तो बेगाना सा लगता है।
खाली कमरा तेरा अब काटने को दौड़ता है।
अब तो सिर्फ यादें तेरी दिन रात आया करती है।
तेरे छड़ी की वो टक टक की आवाज घर में गूंजती है।
हर पल तेरे चलने फिरने की आहट आया करती है।
मां की हालत भी अब तो कुछ ठीक नही लगती।
स्वतंत्रता के पश्चात भी भारतीय समाज की विपन्नता के लिए वे निरंतर चिंतित रहे ।बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की पत्रिका ‘परिषद-पत्रिका’ के, अप्रैल १९७० के अंक में, उन्होंने लिखा – “आज हमारे देश में अन्न की कमी के कारण, भारत के स्वतंत्र हो जाने पर भी, क्षुधा से क्लांत साधारण जनता स्वतंत्रता के लाभ को अनुभव नही करती। हम अपनी उस गौरवपूर्ण कहावत को भूल-सा गए हैं, जो वैदिक-काल से प्रतिष्ठित है- ‘उत्तम खेती, मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान’।
चूने और तम्बाखू की गन्ध
धूप में सूखती हुई धोती
रक्तचाप की गोलियों से भरा डिब्बा
पते लिखी हुई पुरानी डायरियां
ऐसी अनेक चीज़ें हो सकती हैं दुर्लभ
किसी दिन के बाद!
तुम हमारे सब अभावों की
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
मुक्ति देते ही रहे हमको
स्वयं दुख के जाल में फँसकर
तुम स्वर, नए स्वर के
नित नये संकल्प निर्झर के
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा की तरह..
आभार..
सादर नमन..
उत्तम खेती, मध्यम...बाबा की याद आ गई। ले अक्सर कहा करते थे🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी दी,
जवाब देंहटाएंसांवलिया बिहारी लाल वर्मा के विषय में जानकारी उपलब्ध करवाने कए लिए आभारी हूँ दी।
पिता पर आधारित रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
चौखट ने मन छू लिया।
हमेशा की तरह अनजान लेखकों की सुंदर रचनाओं के सूत्र संजोया हैं आपने।
बेहतरीन अंक।
प्रणाम दी
सादर।
सुंदर सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं दीदी🌹🌹