हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
एक ही भभकती लालटेन
अपने शीशे के और काले होते जाने पर
सिर धुनती निष्प्रभ पड़ी है।
जब भी अपने गाँव जाता हूँ, चाचा की बखारी में रखा हुआ वो मुआ हल सचमुच मुझे "किसी दुबके हुए जानवर की तरह लगता है" जो अभी एक लम्बी छंलाग लगा कर गायब हो जायेगा। "हल" और "भूसे" को छूकर निकलता हुआ अचानक से दोस्तों की "गालियाँ" सुनकर ठिठक जाता हूँ। सचमुच कितने पराये लगेंगे दोस्त ना अगर नहीं देंगे गालियाँ।
जब मैंने वैली स्कूल में जूनियर स्कूल को पढ़ाना शुरू किया तो मैंने बच्चों को भाषा का रसास्वादन देने के लिए कुछ लोकप्रिय कविताएँ इकट्ठी कीं । वही कविताएँ मैंने आपके साथ बाँटने के लिए यहाँ लिखी हैं ताकि कोई अध्यापक या अध्यापिका या फिर माता-पिता अपने बच्चों को सिखाने के लिए इन कविताओं का उपयोग कर सके
कैसे पढ लेते हो मनोभाव
कवि खुश नही, शर्मिंदा होता है
कि कविता में लिखना पड़ा उसे वह सब
जो उसके संसार की कड़वाहट है
अमज़द अहसास जोधपुर के युवा कवि-चित्रकार हैं. शिवराम की कविता पुस्तकों के लोकार्पण के अवसर पर वे उनकी कविताओं पर कुछ पोस्टर्स बनाकर लाए और कोटा में इनकी प्रदर्शनी लगाई गई थी. उन्हीं के कुछ छायाचित्र प्रस्तुत हैं…
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्त्री
जवाब देंहटाएंप्रेम तलाशती है
और मछली सी बन्द हो जाती है एक्वेरियम में
अपना आकाश अपनी जमीन अपना समन्दर छोड़ आई स्त्री की आंख से
हजारों कविताएँ टपकी हैं
समन्दर के खारे होने के नही पकड़े गए होंगे सूत्र
एक्वेयिम का खारा होना तो सामने की घटना थी।
-----
सभी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं दी।
हमेशा की तरह अनूठे सूत्र सजोये हैं आपने।
प्रणाम दी
सादर।
पोस्टर और स्त्रियाँ रचना अच्छी लगी । कविताएँ बहुत लंबी फेहरिस्त है ।।लिंक्स का चयन शानदार है ।।
जवाब देंहटाएंसदाबहार अंक...
जवाब देंहटाएंसादर नमन
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं