हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
आज ही के दिन (04 जून 1937 में) पहली रंगीन 'किसान कन्या' फिल्म का नमूना पेश किया गया था...हिंदी फिल्म इंडस्ट्री सौ साल से ज्यादा पुरानी हो गई। इस इंडस्ट्री ने आजादी से पहले और बाद मनोरंजन की बदलती दुनिया का लम्बा दौर देखा है। समय के साथ फिल्मों ने भी अपने आपको बदलने में देर नहीं की। आज ये इंडस्ट्री जिस स्थिति में है, वहां तक आने में इसने कई उतार-चढ़ाओ देखे! बेआवाज और ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों से लगाकर बोलती और रंगीन फिल्मों तक का सफर काफी लम्बा और संघर्ष से भरा रहा!
निधन से कुछ समय पहले शिवाजी पार्क- दादर स्थित उनके घर पर हुई मुलाक़ात के दौरान प्रमिला ने बताया था कि उस फ़िल्म में काम करने का उनका तजुर्बा अच्छा नहीं रहा था। उनका कहना था, ‘मैं भले ही खुले और आधुनिक माहौल में पली-बढ़ी थी लेकिन थी तो एक हिंदुस्तानी औरत ही।
आँधियाँ तूफान इनके हर तेज से भयभीत होते।
पग में छाले, हाथ काले, जख़्मों के ये मीत होते।
जो धूप इस तन को छुए वह स्वयं सौभाग्य पाती।
और पसीने की चुअन हर खेत को पावन बनाती।
भूखो दुर्बल देखि नाहिं मुँह मोड़िये,
जो हरि सारी देय तो आधी तोड़िये I
दे आधी की आध अरध की कोर रे,
हरि हाँ, अन्न सरीखा पुन्य नाहिं कोइ और रे।
गंगा बचाओ
राशि, राखी, मीनाक्षी, बबीता चौधरी, अर्चना शर्मा, पल्लवी ने प्रतियोगिता का अवलोकन किया। प्रतियोगिता में प्रथम नरगिस ,द्वितीय दीपिका त्यागी तथा तृतीय स्थान निदा चौधरी को मिला। कार्यक्रम का संचालन चित्रकला विभाग कि प्रवक्ता प्रीति गौतम ने किया। निर्णायक मण्डल में डीएल शर्मा, अनिल नीम, प्रदीप सिंह ने दायित्व का निर्वहन किया।
सदाबहार अंक..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
मनहर प्रस्तुति । आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार अंक
जवाब देंहटाएंफिल्मों के इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिली । आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी मिली |सादर धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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