।।प्रातः वंदन ।।
भोर का बावरा अहेरी!
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ,
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथ..!!
अज्ञेय
जीवन की आपाधापी के बीच कल्पना में डूबना बड़ा अच्छा लगता है.. और जब बात हो खास ख्याल से तो फिर ... लिजिए आज की पेशकश में..✍️
मेरा भी जी तितलियों पर मचल जाए तो क्या कहिए ..
कोई छूने से आबे हैवाँ जल जाए तो क्या कहिए
किसी की आरज़ू में दम निकल जाए तो क्या कहिए
निगाहे लुत्फ़ उसका है मेरी जानिब, हूँ किस्मतवर
पर इस पल ही मेरी किस्मत बदल जाए तो क्या कहिए..
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ओस के मोती
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मिट्टी की गागरी
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परवाज़...संध्या शर्मा
अच्छी तरह याद है मुझे ....
जब मैंने पहली बार
तुम्हारे घर की देहरी पर
कच्चे चावल से भरा कलश
दाहिने पांव से छुआ था
कितने प्यार से सहेजा..
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।।इति।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
अज्ञेय जी से अंक का आगाज
जवाब देंहटाएंस्तरीय रचनाओं का गुलदस्ता
आभार..
सादर.....
सुंदर सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ उम्दा हैं। बड़ा आदमी का लिंक नहीं मिला ।
यहां आकर पता चला मेरी भी रचना प्रकाशित हुई है।बहुत आभार पम्मी जी । सादर शुभकामनाएं 💐💐👏
बड़ा आदमी का लिंक
हटाएंhttps://adigshabdonkapehara.blogspot.com/2022/05/blog-post_28.html
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक संजोए हैं ।।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं