आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आओ साथ मेरे
बढ़ते तापमान से
न घबराओ
दया,ममता,परोपकार
के अभाव से झुलसती,बंजर होती
धरती पर
आओ न मिलकर
अपना स्नेह युक्त स्वेद बहाये
ढेरों क्यारियां बनाये
बारिश के पहले
बोये प्रेम के असंख्य बीज,
इनसे फूटने वाले प्रेम के
पुष्प ही
ही आख़िरी आस है
ठूँठ,उदास,जलती धरती की
ज़हरीली होती हवाओं में
स्नेह सुगंध भर
नवजीवन प्रदान करने के लिए।
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आज की रचनाएं -
धरकर सूरज को
अपनी पीठ पर
करती है वो
नमक पैदा
और भर देती
है स्वाद
आज बंजर सी धरा कर
कष्ट के सब बीज बोते।
मारती लू जब थपेड़े
चैन के मधुमास खोते।
दंड कर्मों का दिलाने
काल तब करता दलाली।
मेटती सुख....
उनका टकराना
एक दुर्लभ खगोलीय घटना न थी
जिसके लगाया जा सके
भविष्य का अनुमान
समय रहते ही
कोई जो पूछ ले
पास बैठे अनमने
अपरिचित का हाल,
तो हो सकता है
टल जाए वह
आत्मघाती घङी,
जब धक्के खा-खा कर
आदमी का चिंतन
हो जाता है चेतना शून्य ।
और चलते-चलते पढ़िए
कद काठी के होते हैं लेकिन घर के पेड़ों के फलों की मिठास की बात ही कुछ और होती हैं। पपीते के पेड़ को भी केले के पेड़ की तरह ही ज्यादा पानी की जरुरत होती है। इसलिए इन पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, वर्ना इसकी पत्तियां एक-एक कर सूखती चली जाती हैं।
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में
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बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आपका बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंवाह , सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआओ साथ मेरे
बढ़ते तापमान से
न घबराओ
दया,ममता,परोपकार
के अभाव से झुलसती,बंजर होती
धरती पर।
स्नेह रूपी संस्कृति को बचाने के लिए किया गया सार्थक आह्वान , लेकिन जहाँ धार्मिक कृत्य के बाद बच्चों के हाथ में पकड़ा दिए जाते हैं पत्थर क्या वहाँ की धरती पर स्नेह के फूल खिलेंगे ?
फिर भी आशान्वित होना अच्छा है । लेकिन भ्रम में न जियें
बढिया संकलन धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबङा प्यारा-सा गुलदस्ता । सरल, सजग, गागर में सागर जैसी रचनाएँ । इसमें "वह एक क्षण" को भी जोङने का शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंआपकी कवितामय भूमिका बहुत अच्छी लगी ।स्नेह युक्त स्वेद ही नींव को पक्की बनाता है ।
जवाब देंहटाएंअविस्मरणीय अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक 💐💐
जवाब देंहटाएंस्नेह युक्त रस छलकाती भुमिका।
जवाब देंहटाएंसभी सूत्र आकर्षक पठनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंबोये प्रेम के असंख्य बीज,
जवाब देंहटाएंइनसे फूटने वाले प्रेम के
पुष्प ही
ही आख़िरी आस है
सत्य कथन
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