अज्ञः सुखमाराध्यः सुखातारामाराध्यते विशेषज्ञः| ज्ञानलवदुर्विदग्धम ब्रह्मापि तं न रंजयति ||
भावार्थ – अज्ञानी व्यक्ति को सहज ही समझाया जा सकता है, विशेष ज्ञानी को और भी आसानी से समझाया जा सकता है. परन्तु लेश मात्र ज्ञान पाकर ही स्वयं को विद्वान् समझने वाले गर्वोन्मत्त व्यक्ति को साक्षात् ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते।
वह तो संगीत है जैसे बिना कहे बहने वाली पहाड़ी नदी का संगीत इस संगीत को कब सुना है कान वालों ने इसे तो सुनती है तलछटी में रहने वाली चंचल मछलियां अपनी सांसों के जरिए।
सारी बात का लब्बोलुआब यह है कि जब हम उस ऊपर वाले को अपनी खुशी का जिम्मेदार नहीं मान सारा श्रेय खुद ले लेते हैं तो दुःख में उसे उलाहना क्यों देना ! उसके द्वारा उत्पन्न की गईं तरह-तरह की परिस्थितियां, हालात हमें खुद को परखने, निखरने का मौका देते हैं ! इंसान की फितरत है कि उसे कभी संतोष नहीं होता ! किसी ना किसी चीज की चाह हमेशा बनी ही रहती है ! पर एक सच्चाई यह भी है कि आप अपनी जिंदगी से भले ही खुश ना हों पर हजारों ऐसे लोग भी हैं जो आप जैसी जिंदगी जीना चाहते हैं ! इसलिए जो है उसी में संतुष्ट हो ऊपर वाले को धन्यवाद दीजिए !
जहाँ तक मैं अनुभव करती हूँ कि अज्ञानी बने रहना ज्यादा सुख कर है । और मैं स्वयं को इसी श्रेणी में पाती हूँ । आज की सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं । सर्वेश्वर जी की कविताएँ बाद इन सुनूँगी । एक नए ब्लॉग से परिचय हुआ इसलिए यह प्रस्तुति मेरे लिए सार्थक है । आभार ।
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सुंदर संगीत मय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
अद्धभुत प्रस्तुति होती है छुटकी आपकी बनाई
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
बहुत सुंदर रचनाओं से सजी सुरमई प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद और सुकून दे जाती हैं ये लाजवाब रचनाएँ।आभार सखी
🌹❤️
वाह! दिल से धन्यवाद श्वेता इतनी खूबसूरत रचनाएँ साँझा करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मैं अनुभव करती हूँ कि अज्ञानी बने रहना ज्यादा सुख कर है । और मैं स्वयं को इसी श्रेणी में पाती हूँ ।
जवाब देंहटाएंआज की सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं । सर्वेश्वर जी की कविताएँ बाद इन सुनूँगी ।
एक नए ब्लॉग से परिचय हुआ इसलिए यह प्रस्तुति मेरे लिए सार्थक है । आभार ।
बहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रेरक प्रस्तुति
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