नमस्कार ! दो दिन बाद ही फिर आपके सामने हाज़िर हूँ .......... आप भी सोच रहे होंगे कि ये तो उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ रही हैं ....... सप्ताह में एक ही दिन बहुत है झेलने के लिए ......खैर .... छोडिये , मैं किसी की बातों पर कान नहीं धरती .................आप भी सोच रहे होंगे की आज ये कहावतों और मुहावरों में क्यों बात कर रही हैं ......... तो बता दूँ कि आज आपके लिए लायी हूँ देसिल बयना -------- ये इस ब्लॉग का अपने ज़माने में विशेष रुचिकर वक्तव्य हुआ करता था ..... और कोई भी कहावत कैसे चलन में आई उस पर एक कहानी बताई जाती थी ....... हाथ कंगन को आरसी क्या ...... आप खुद ही पढ़ें ......
"छोड़ झार मुझे डूबन दे !" ई कहावत हमने बचपन में सुना था, बडगामा वाली भौजी के मुंह से. अब का बताएं... बडगामा वाली भौजी जब इस्टाइल में हाथ झटक-झटक के ई कहावत कह रही थीं तो हमरे तो हंसी का ठिकाना नहीं रहा ! हंसते-हंसते दोबर होय गए हम। लगता है आप भी गुदगुदा गए हैं... तो 'देसिल बयना' में आज चलिए हमरे गाँव। आपको ई कहावत का जड़ वहीं मिलेगा।
आपके समक्ष ये देसिल बयना लगातार प्रस्तुत करना चाहती हूँ , यदि आपको पसंद न आये तो मुझे सूचित करें ...... अपना ये विचार आप लोगों की फरमाईश पर छोड़ सकती हूँ .
रही छोड़ने की बात तो छूटता तो सभी कुछ है ... ....... अंत समय शायद अपने जीवन की विवेचना करने का समय भी नहीं मिलता ....... लेकिन पितामह भीष्म ही ऐसे थे जिनको अपनी मृत्यु का पता था और वो अपने जीवन का विश्लेषण कर सके होंगे ......उनकी सोच को शब्दों में बंधना सरल तो नहीं ..... फिर भी आप ये रचना पढ़ें ......
मैं भीष्म
वाणों की शय्या पर
अपने इच्छित मृत्यु वरदान के साथ
कुरुक्षेत्र का परिणाम देख रहा हूँ
या ....... !
अपनी प्रतिज्ञा से बने कुरुक्षेत्र की
विवेचना कर रहा हूँ ?!?
यहाँ तो भीष्म विवेचना में लीन हैं ....... लेकिन दूसरी ओर आज के समय की तुलना महाभारत और रामायण से की जा रही है .....
सबको होता है दुख और रंज ,
चाहे वो राजा हो या रंक ,
पर अपना वचन निभाने के लिए ,
बड़ों की आज्ञा सर सजाने के लिए ,
भगवान भी भटके हैं वन वन ,
चाहे महाभारत हो या रामायण ।
जहाँ महाभारत की बात हो और वहां कृष्ण न हों , ये तो हो ही नहीं सकता ....और ज़रूरी तो नहीं न कि केवल कृष्ण की बात हो , आज तो उनकी प्यारी बहन सुभद्रा की भी बात ले कर आई हूँ .......... जी हाँ जगन्नाथ रथ यात्रा तो शुरू होने ही वाली है ......... लेकिन उससे पहले पढ़िए ये रचना ....
बलदाऊ के संग में बैठी,
बहन सुभद्रा प्यारी भी,
हर्षित जन है पुलकित मन है,
बीती रात अंधियारी की .
मंद-मंद होठों पर हंसी है,
एक तरफ हम जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का वर्णन पढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर एक बेचैन आत्मा ने पहली बार की बारिश देख अपने अनुभव को साझा किया है .....
एक घर के बाहर
खुले में रखे बर्तन
टिपटिपाने लगे
घबड़ाई अम्मा चीखीं...
अरी छोटकी !
बर्तन भींग रहे हैं रे !
मेहनत से मांजे हैं
मैले हो जायेंगे
दौड़!
रख सहेजकर।
बारिश का इससे ज्यादा सटीक चित्रण क्या होगा भला ......... और जब बारिश नहीं होती ...... सूखा हो जाता है ..... हरियाली भी कहीं नहीं दिखाती ...... पेड़ ठूँठ हो जाते हैं .......कोई ऐसी तस्वीर दिखती है कि संवेदनशील व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाता है .....बानगी देखिये ....
यह तस्वीर मौजूदा दौर की सबसे खरी अभिव्यक्ति है, हममें से हरेक इसी तरह तो जी रहा है.
एक तरफ ये पंछी धैर्य धारण किये हैं तो दूसरी ओर पूर्ण समर्पण की भावना लिए एक नायिका कितना सुन्दर गीत गुनगुना रही है ..... पढ़िए ........ पढना ही पड़ेगा सुनाई तो देगा नहीं .. ........
तेरी लग्न में मस्त-मगन,
मैं एक प्रेम दीवानी हूँ।
अटूट स्नेह की डोर बंधी,
मैं तो तेरी रानी हूँ।।
एक तरफ तो नायिका बिलकुल समर्पित भाव लिए गीत सुना रही थी और अब देखिये दूसरी ओर जीवन की सच्चाई से रु - ब - रु करते हुए कहा जा रहा की लड़ लो ...... शिकायत कर लो लेकिन खामोश रह कर रिश्तों को न उलझाओ .....
खाई भी गहरी सी है,
तुम पाट डालो उसे.......
सांझ ढलने से पहले,
बाग बना लो उसे.........
नन्हींं नयी पौध से फिर,
महक जायेगा घर-बार .........
लौट आयें बचपन की यादें....
लौट आये फिर कहीं प्यार....?
इन शिकवे गिलों के बीच बताया जा रहा की जीवन एक खेल के सामान है ....... मदारी बन इस खेल को चलाता रह ...... हम तो ये समझे की जीवन तो एक बन्दर है जिसे मदारी नचा रहा है ......
आप भी शामिल हों इस खेल में ....
अनायास तू अब मत समझा
बजी दुंदुभी टूटे मेखड़ बैंड बजा ।
सात सुरों के साज बीन में बजें सभी
ताल में ताल भिड़ा हाथों से आज सजा ॥
चले मदारी चाल नाचते पले पलाए
नाच उन्हीं की ताल
नई धुन बुनता जा ॥
मैंने अक्सर देखा है की सब अपने अनुभवों का पिटारा ले कर उसके आधार पर ही कुछ लिखते हैं ........ कभी जीवन खेल हो जाता है तो कभी दुरूह ....... कभी अकेलापन होता है तो कभी खुद अकेले होते हैं ...... ख़ास तौर से भारतीय स्त्रियाँ तो दादी - नानी बन कर खाली पोते -पोतियों या धेवते -धेवतियों तक ही सीमित हो जाती हैं ....... लेकिन ये पहले ज़माने की बात थी ...... आज भले ही घर में अकेली हों लेकिन वो कतई अकेली नहीं हैं ......अब ज्यादा यहाँ नहीं लिखूँगी ..... आप खुद ही पढ़िए
ये कल की साठ साला औरतें,
घर तक ही सीमित रहीं,
बहुत हुआ तो
मंदिर, कीर्तन और जगराते में,
पहन कर हल्के रंग की साड़ी,
चली जाती थीं,
चटक-मटक अब कहाँ शोभा देगा उन्हें |
मुझे तो बहुत मज़ा आया पढ़ कर क्यों कि एक खुशनुमा सच्चाई लिखी है , इंटरनेट ने हज़ार परेशानियाँ दी हों , लेकिन बहुत अच्छे मित्र और अपनी पहचान भी दी है ....... उम्रदराज़ स्त्रियों ने खूब लिखा है और क्या खूब लिखा है ......... मेरा नाम भी इसमें शामिल समझिये .....
चलते - चलते यदि गीता ज्ञान भी मिल जाये तो जीवन का आनंद ही कुछ और है ....... बहुत सी समस्याएँ खुद ब खुद समाप्त हो जाएँ . ......
क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...
भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है
और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है
(पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार में ले लेना)
समापन करते हुए बस एक गुजारिश ........ जो यहाँ लिंक्स दिए जाते हैं उन पर जा कर अपने हस्ताक्षर अवश्य करें ...... लिखने वालों का और लिंक्स लगाने वालों का हौसला बढ़ता है ........... आपके ब्लॉग तक कोई आ कर प्रतिक्रिया देता है तो उसके ब्लॉग तक ज़रूर जाएँ ........ ये तो सामजिक नियम है ........ एक हाथ दे एक हाथ ले ........लीजिये कहावत से ही शुरू हुई थी आज की प्रस्तुति और कहावत पर ही ख़त्म ......
फिर मिलते हैं अगले सोमवार ....... इसी मंच पर कुछ नए - पुराने लिंक्स के साथ .....
नमस्कार
संगीता स्वरुप .
अब वृद्धस्य तरुनी भार्या... तो प्राणों से भी प्रिय होती हैं। ऊपर से तीसरी लुगाई.... भूल गए हैं तो रामायण याद कीजिये
जवाब देंहटाएंपुराना चांवल भी बर्तन छोड़ भागने लगता है
शानदार अंक
सादर नमन
आभार
हटाएंआभार। आपका श्रम वंदनीय है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेंद्र जी ।
हटाएंबहुत बहुत आभार आपका...। मेरी रचना को स्थान देने के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर संकलन के साथ उतनी ही सुंदर प्रस्तुति, संगीता दी।
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु आभार ।
हटाएंबहुत बहुत आभार , हम साठ साला औरतों के नये रूप को शामिल किया। वैसे सच यही है कि समय के साथ जीवन दर्शन बदल रहा है।
जवाब देंहटाएंबदलते जीवन दर्शन को तो पढ़ाना ही था । धन्यवाद ।
हटाएंसुरूचिपूर्ण प्रस्तुति..सभी भावों को समेटे हुए।
जवाब देंहटाएंआभार।
सराहना हेतु धन्यवाद ।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार सराहना के लिए ।
हटाएंबढ़िया लिनक्स
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ।।
हटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती ।।
हटाएंआज का अंक पूरा पढ़ा। बहुत सुंदर सराहनीय विविधता से परिपूर्ण है । नई पुरानी सभी रचनाएँ कुछ न कुछ संदेश देती हुई ।
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ी बात काफी पुराने ब्लॉग्स पर जाना और "छोड़ झार मुझे डूबन दे" जैसी पोस्ट पढ़ना । इन पोस्ट्स से मुझे कई कहानियों तक जाने में प्रेरणा मिलेगी आगामी लेखन में । क्योंकि मेरे जेहन में भी ऐसी कई मजेदार कहानियां हैं, ऐसे ब्लॉग्स से परिचय कराने के लिए आपका बहुत आभार दीदी ।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया । सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐👏
प्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंलिखना है तो ज्यादा पढ़ना पड़ेगा .... मैंने एक सुझाव माँगा था कि क्या आप देसिल बयना की और पोस्ट पढ़ना चाहेंगे ?
यदि पाठक स्वीकृति देंगे तभी आगे इसकी पोस्ट लगाऊँगी ।
तुमको प्रस्तुति पसंद आई इसके लिए हृदय से आभार ।
झार मुझे डुबने दे मजेदार था ।
जवाब देंहटाएंअंशु माला जी ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
जी दी,
जवाब देंहटाएंआप को झेलते नहीं है आपसे सीखते हैं। वैसे एकबात तो बिल्कुल सही कही आपने जिसे जो.सोचना है सोचे, हमारे मन को जो सही लगे वही करना चाहिए।
नयी पुरानी सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है।
विविध विषयों को सुगढ़ता से सहेजकर रोचकता से प्रस्तुत करना आपकी रचनात्मक विशेषता है।
रचनाओं के लिए क्या कहें सभी बहुत अच्छी हैं-
जीवन एक खेल है
मैं भीष्म करना नहीं भूलता
आत्मविश्लेषण,
प्रसंग अगर महाभारत हो
प्रतीक्षा रहती है
रथ निकले नंद दुलारे की,
पहली बारिश में भींग रहे
एक वृक्ष चार पंछी
जिन्हें देखती
ये साठ साला औरतें सोचती रहती हैं
तू कविता है या गीतिका
लौट आये फिर कहीं प्यार
और...कहते है घोटाले वाले
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
मूलमंत्र यही बूझन दें
छोड़ झाड़ मोहे डूबन दें।
------
अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
सप्रेम प्रणाम दी
सादर।
जी दी, एक बात लिखनी भूल गये,देसिल बयना जरूर पढ़ना चाहेंगे।
हटाएंप्रिय श्वेता ,
हटाएंदिए गए सभी लिंक्स को पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया को बेहतरीन रचना के रूप में पेश करना काबिले तारीफ है । इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार ।
देसिल बयना के लिए किसी ने उत्सुकता नहीं दिखाई । खैर .... देखते हैं । तुम्हारी पसंद नोट कर ली है ।
सादर नमस्कार दी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका से सुसज्जित बहुत ही सुंदर लिंको का चयन किया है आपने दी,मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद।
आपकी प्रस्तुति की सबसे बड़ा आकर्षण होता है "पुराने ब्लोगर्स को ढूँढ लाना,जिन तक शायद हम कभी नहीं पहुंच पाते। अभी तो सबको पढ़ा नहीं क्योंकि आज मेरी भी प्रस्तुति बनाने का दिन है और कम्बख्त ये नेट परेशान कर रखा है। खैर,"देसिल बयना" को पढ़ना वाकई सुखद है। आप से बहुत कुछ सिखने को मिलता है। और सबसे जरूरी बात "अब साठ साल की औरते बूढी नहीं है बल्कि यंग जनरेसन के लिए एक मिशाल है,इस उम्र में भी नई तकनीक को सीखना आसान नहीं है। और आप सभी जैसी गुणी रचनाकार तो हमारी प्रेरणा स्रोत है। सादर नमन आपको और आपकी श्रम को भी
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
हटाएंआदरणीय संगीता मेम ,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना प्रविष्टि् " चाहे महाभारत हो या रामायण" की चर्चा सोमवार (27-6-22) को "पांच लिंको के आंनद में" शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं ।
सादर ।
बहुत शुक्रिया दीपक जी ।
हटाएंसुंदर अंक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआभार रंजू ।
हटाएंहमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय साथ ही विविधता पूर्ण भी ।
मेरी इतनी पुरानी भूली बिसरी रचना को ढूँढ़कर मंच प्रदान करने हेतु तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद आपका।
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
हटाएंबहुत कुछ भूला - बिसरा है जिसे हम याद करते रहते हैं ।बस आप लोग ब्लॉग को न भूल बिसर जायेगा । वैसे आप लोगों ने ब्लॉग फेसबुक आने के बाद बनाया है , इसलिए मुझे नहीं लगता कि आप ब्लॉग से नाता तोड़ेंगे । हमारे साथ के लोग नई चमक दमक के पीछे अपने ब्लॉग को भूल सा गए हैं । कुछ हैं जो फिलहाल ऊनी पोस्ट ब्लॉग पर डाल रहे हैं । मुझे तो इसमें भी संतुष्टि लगती है कि अपनी डायरी मेंटेन करते रहें । पुनः आभार
प्रिय दीदी, एक अत्यंत भाव-पूर्ण और उत्कृष्ट अंक सजाने के लिए हार्दिक आभार। सभी रचनाओं को पढ़ा और असीम आनन्द मिला।अभी समयाभाव के कारण टिप्पणी नहीं कर पाई पर कल जरुर कोशिश करतीहूँ।खासकर लेखों का चयन बहुत शानदार है
जवाब देंहटाएं।सभी रचनाकर निसन्देह बधाई के पात्र हैं।सभी के सार्थक लेखन की कामना करती हूँ।🙏🌹🌹🌺🌺
प्रिय रेणु ,
जवाब देंहटाएंसमयाभाव के चलते भी तुम सारी रचनाओं पर गयीं , इसके लिए दिल से शुक्रिया । प्रस्तुति की सराहना और मेरी हौसला अफजाई लिए आभार ।
आप जिस तरह मुझे खास रचनाओं के साथ यहाँ लाती हैं, वह मेरे लिए गर्व की बात है
जवाब देंहटाएंरश्मि जी ,
हटाएंआपकी रचना यहाँ लाना मेरे लिए गर्व की बात है । आभार ।
सादर नमस्कार दी,
जवाब देंहटाएंइस श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आप को अभिनन्दन, मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ।देसिल बयना को पढ़ना वाकई सुखद होगा। आप की प्रस्तुति का सबसे बड़ा आकर्षण है कि आप वहां लेकर जाती है जहां पहुंचना हमारे लिए थोड़ा मुश्किल होता।दी मैंने शाम को ही प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया थी लेकिन वो प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही है इसलिए मैं फिर दुबारा कर रही हूं।इन दिनों पता नहीं तकनीकी रूप से क्या दिक्कत हो रही है कि बहुत सी प्रतिक्रिया स्पैम में चली जा रही है।एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद आपको 🙏
प्रिय कामिनी ,
हटाएंतुमको दो बार लिखना पड़ा , इसके लिए अफसोस है । तुम मेसेज दे देतीं कि स्पैम देखिये तो चेक कर लेती ।
लिंक्स तुमको अच्छे लगे इसके लिए आभार । देसिल बयना का हम तो बहुत बेसब्री से इंतज़ार करते थे । ये उस समय की बात है ....