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सोमवार, 17 सितंबर 2018

1158...हम-क़दम का छत्तीसवाँ क़दम... क्षितिज


देवताओं के वास्तुकार और धरती के प्रथम शिल्पकार माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयन्ती हर वर्ष 17 सितम्बर को बड़ी धूम-धाम से मुख्यतः कर्नाटक,असम,पश्चिमी बंगार,बिहार,झारखंड, ओड़िसा और त्रिपुरा में मनायी जाती है। 
 कल-कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष रुप से की जाती है।

अंबरांत,अंबरांरभ,आकाश-रेखा,उफ़ुक,दिशा-मंडल,शफ़क या क्षितिज।
धरा,गगन के मिलन की भूल-भूलैय्या में दृग को उलझाता है।
भ्रमित मन का वह आभासी संगम "क्षितिज" कहलाता है।
हमक़दम के विषय "क्षितिज" पर उकेरी गयी क़लम की कूची से  रचनाकार चित्रकारों की अनुपम इंद्रधनुषी कलाकृतियाँ सच में सराहनीय है।  आपकी कलाकारी को हृदय से प्रणाम करती हूँ। किसी भी विषय पर सहजता से लिख जाना आपकी व्यापक दृष्टिकोण और रचनात्मक क्षमता का अपूर्व सुखद आभास करवाता है।
आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है।

आइये आज की रचनाओं का आस्वादन करते हैं-
आदरणीया मीना जी


एक विनती मान लेना,
संग चलना उस क्षितिज तक,
देख लूँ नयनों से अपने,
मैं धरा से गगन मिलते...
लेख नियति ने लिखा यह,
क्यों मिटाना चाहते हो ?
दूर जाना चाहते हो ?

★★★★★

जुल्म न झूठ का कोई स्थान होगा
हरेक जाति धर्म एक सामान होगा
मनुष्य बस मानव धर्म निभायेगा
इंसान बस इंसा कहलायेगा
हर विचार को जुबान मिलेगी
हर कली निर्भीक खिलेगी
नैतिकता ही नीति का आधार होगा
तेरे मेरे मन का नगर क्षितिज के पार होगा
★★★★★

आदरणीया सुधा जी की क़लम से

कली खिली फिर फूल बनी,
खुशबू महकी फ़िज़ा में मिली।
फ़िज़ा में महकी खुशबू से ही
कुछ खुशियाँ चुराया करता था।
वह दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
बस प्रेम निभाया करता था ......

★★★★★

 आदरणीया कुसुम जी

अधोमुखी हो झुकता पुष्कर
एक दृष्टि सीमा तक जा रुकता नभ
धुमिल उच्छवास उठ सारंग तक
महि का हृदय आडोलित हतप्रभः

यही पावन मिलन एक रेख सा
अंकित सुनहरी लाल मनभावन
बन क्षितिज लुभाता सदा हमे
कितना मनोरम कितना पावन।
★★★★★
आदरणीया साधना वैद जी

दूर क्षितिज तक पसरे
तुम्हारे कदमों के निशानों पर
अपने पैर धरती
तुम तक पहुँचना चाहती हूँ !
सारी दिशाएँ खो जायें,
सारी आवाजें गुम हो जायें,
सारी यादें धुँधला जायें,
मेरी डायरी में लिखे
तुम्हारे पते की स्याही
वक्त के मौसमों की मार से
भले ही मिट जाय
★★★★★
आदरणीया एस. नेहा जी


क्षितिज के उस पार 
जहाँ  मेरी जाने के ख्वाहिश हैं

वहां न ख्वाहिशों की  बेड़ियाँ हैं 
और न ही रिश्तों का दोहरापन 
वहाँ न ही उम्मीदें हैं 
और न ही किसी प्रकार का सूनापन 
★★★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम जी

मन के क्षितिज पर,
गर कहीं चाँद खिला होता,
फिर अंधेरों से यहाँ,
मुझको न कोई गिला होता!

अनसुना ना करता,
मन मेरे मन की बातें सुनता,
बातें फिर कोई यहाँ,
मुझसे करता या न करता!
★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की तीन रचना
प्राची दिशा में
क्षितिज पर
छाई लालिमा
छटने लगी कालिमा
आ गए अरुण
ले दिनकर का रथ
वसुधा पर फैली उर्मियां
★★★
उस अनिर्वचनीय 
सौंदर्य में
देखती मेरी निगाहें
उल्लास का अतिरेक
जब दूर क्षितिज पर 
मिलते अवनि अंबर 
करते प्रेम का इजहार 
तब लहराती तरंगे
छू लेना चाहती आकाश
★★★
अवनि अंबर का
जहां होता मिलन
जहां मिल कर झूमें
धरती गगन
सुनती हूं वहां है
खुशियों का चमन
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है
★★★★★
आदरणीया अनुराधा चौहान जी की दो रचना

कभी सुनी थी
बचपन में
एक कहानी
क्षितिज के पार
एक दुनिया सुहानी
सुंदर सुंदर
बाग बगीचे
उड़ते सब और
उड़न खटोले
कल कल करती
नदियां बहती
★★★

अनुराधा चौहान
रात देखा एक स्वप्न
क्षितिज पर मचा था
तारों का क्षितिज बंद
छोड़कर चमकना
सबका हुआ गठबंधन
सुनने समस्याओं को
मौजूद सभी देवगण
एक एक समस्याओं
का करके निदान
★★★★★
आदरणीया नीतू ठाकुर जी

क्षितिज के पार देखो , चांदनी आंसू बहाती है 
तेरा साया जहाँ पड़ता , सिसकती भोर आती है 

ये टूटे आशियाँ आँखों में , बिखरे ख्वाब बाकी हैं 
दिए सौगात में आंसू , बता तू कैसा साकी है 
★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना जी 

परम प्रेम का आगाज़ होगा
जीवन तभी सार्थक होगा
दूर क्षितिज तक कभी
शायद ही कोई पहुंचा होगा
पर हमें न कोई रोक सकेगा
वहीं हमारा घर होगा |
★★★
आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया 
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
 आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।


अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ



21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर संकलन है श्वेता जी।
    आप सहित सभी रचनाकारों को विश्वकर्मा जयंती की शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात ....
    क्षितिज को परिभाषित भी कर सकते हैं...
    हम धरातल पर ही तो खड़े हैं..
    सीधे चलते रहें तो वापस अपनी जगह पर आ ही जाएँगे...वाकई भ्रम है क्षितिज..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. भगवान विश्वकर्मा के वास्तु शिल्प में प्रकल्पित प्रस्तावना से परिपूर्ण विचार और भाव के क्षितिज को स्पर्श करता सुंदर संकलन। साधुवाद, आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाएं भावप्रवण है मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका आभार प्रिय श्वेता संकलन एवं प्रस्तुति सदा की तरह बेहतरीन है

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर संकलन सभी रचनायें मनभावन अतिसुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा रचनाएं पढवाने के लिए धन्यवाद |बढ़िया संकलन |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. सुप्रभात
    इतनी अच्छी अच्छी रचनाये पड़ने को मिली बहुत बहुत धन्यवाद आपको ।आपने सबको ये मंच उपलब्ध करवाया।सच कह तो इतने अच्छे रचनाकारों के आगे अपने आपको बहुत छोटा पाता हूं।और गौरवान्वित भी महशुस करता हूँ।
    सदर आभार आपका जो इस क्षितिज पर हम सबका एक पेज हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर प्रस्तुति बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई सभी रचनाएं बहुत ही बेहतरीन हैं

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  12. हमकदम का ३६ वां कदम निश्चित रूप से आगे चल कर ६३ वां हो जाएगा; शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत प्यारी रचनाएं आज की हलचल में ! सभी चयनित रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन एवं सभी को हार्दिक बधाइयाँँ ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  14. लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    आप सभी को विश्वकर्मा दिवस की शुभकामनाएं
    मेरी रणना को मंच पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार।....

    जवाब देंहटाएं
  15. एक विनती मान लेना,
    संग चलना उस क्षितिज तक,
    देख लूँ नयनों से अपने,
    मैं धरा से गगन मिलते...

    क्षितिज को अपनी उत्तंग परिकल्पनाओं से मुट्ठी में समेट लेने को आतुर कवियों-कवियत्रियों की अनुपम रचनाओं मुग्ध कर देने वाली हैं। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  16. उम्दा संकलन एक ही विषय पर
    मेरी रचना शामिल करने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  17. अत्यंत सुंदर रचनाएँ....सृजन के इस क्षितिज पर मिलते रहें हम सब,यही दुआ करती हूँ। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद। देर से उपस्थित होने के लिए क्षमाप्रार्थी।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुर ही लाजवाब रचनाओं के साथ सुंदर भूमिका से सजा ये अंक बहुत ही अविस्मरनीय है प्रिय श्वेता | क्षितिज की इतनी परिभाषाओं को पढ़ मन आहलादित है | सभी रचनाकारों की कल्पना को नमन | सभी को बधाई | देर से आने के लिए क्षमा पार्थी हूँ | पर पढ़ उसी समय लेती हूँ | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं

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