नव प्रवेश
निवेदिता दिनकर जी की कलम से प्रसवित....
यह जो
तुम
मुझे
छंद बंद
में बाँधते हो ...
या रस,
अलंकार में डूबोते हो
डॉ. कौशलेन्द्रम की कलम से....
चिंतनशून्य हुए जब-जब तुम
तर्कशून्य हुए तब-तब तुम
रीति उपेक्षित
सागर मंथन की
नहीं वासुकी नहीं मंदराचल
चहुँ ओर व्याप्त तुमुल कोलाहल
हो रहा क्रंदन ही क्रंदन ।
ज़फ़र की कलम से
ज़िन्दगी आग हैं पानी डालते रहिये
हर मोड़ पर दिल का सिक्का उछालते रहिये,
दिखने लगी हैं नमी,हसींन आँखों में
अल्लाह उसका काजल सँभालते रहिये,
पुरुषोत्तम सिन्हा जी की कलम से...
थमती ही नहीं, बूँदों से लदी ये घन,
बरसकर टटोलती है, रोज ही ये मेरा मन,
पूछती है कुछ भी, रोककर मुझे...
थमती ही नहीं, रिमझिम बारिश की बूँदें.....
नूपूर जी कहती है....
कुछ भी तो नहीं था,
तन के नाम पर।
पर मन भर
असीम आकाश था।
जिसमें जीवट नाम का
प्रखर सूर्य चमकता था।
प्रीति सुराना जी की कलम से निकली पीड़ा..
हाँ!
ओढ़े रखती हूँ
दुख का दुशाला
और बना रखा है
पीड़ा का परकोटा
अपने आसपास,...
उलूक सर के पन्ने से....
सारे के सारे
सोये कबूतरों को
कबूतर पकड़ने वाले
जाबाँज बाज बनायेगा
लिखते लिखाते
पढ़ते पढ़ाते
किसी एक दिन
‘उलूक’ भी
संगत में
कबूतरों की
कबूतरबाजी
थोड़ा बहुत तो
सीख ही ले जायेगा
एक अंतिम जवाबदारी
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का छत्तीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
क्षितिज
उदाहरण..
आओ
चलो हम भी
क्षितिज के उस पार चले
जहाँ
सारे बन्धन तोड
धरती और गगन मिले
जहाँ
पर हो
खुशी से भरे बादल
और
न हो कोई
दुनियादारी की हलचल
बेफिक्र
जिन्दगी जहाँ
खेले बचपन सी सुहानी
जहाँ
पर नही हो
खोखली बाते जुबानी
खुले
आकाश मे
पतन्ग की भान्ति
उडे
और लाएँ
एक नई क्रान्ति
जो मेहनत
को बनाएँ
सफलता की सीढी
आशा सच
उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है
अंतिम तिथिः शनिवार 15 सितम्बर 2018
प्रकाशन तिथि 17 सितम्बर 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
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दिग्विजय
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी बहुत बहुत आभार इतनी अच्छी अछि रचनाओ को इकट्ठा कर हम लोगो तक पहुचने के लिए।जफ़र को भी स्थान देने के लिए धन्यवाद।
वाह...
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर
सुंदर संकलन के मध्य अपनी रचना को पाकर प्रसन्नता हुई । सभी रचनाकारों को बधाई ।सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंझटपट से उम्दा संकलन बना लेने का महारत हासिल है आपलोगों को
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के कबूतर के जोड़े को स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंदिग्विजयजी,हार्दिक धन्यवाद.सभी रचनाकारों को बधाई !
जवाब देंहटाएंमेरे नाम की वर्तनी ठीक कर दीजिएगा ....नूपुर ....
ज़फ़र साहब ने सिक्का उछालने की बात खूब कही !
नतीजा चित हो या पट ..
सिक्का उछालते रहना चाहिए !
जी सही कहा अपना
हटाएंहार जीत जो भी हो मैं बिना लड़े क्यों गिरु
आभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह विविधता लिऐ मनभावन अंक।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सुंदर रचनाऐं सभी रचनाकारों कणो बधाई ।
अच्छी रही प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी -- बहुत अच्छी प्रस्तुति के लिए सादर आभार | डॉ कौश्लेंद्र्म और जफर जी को पढना अपने आप में बहुत ही अलग अनुभव रहा | सबपर लिखना संभव ना हो पाया पर सभी लिंक सराहनीय लगे | सभी रचनाकारों को सस्नेह बधाई और शुभकामनायें | सादर --
जवाब देंहटाएंरेनू जी बहुत बहुत आभार अपने रचना को सराहा
हटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति श्रेष्ठ रचनाओं का सुंदर संकलन सादर आभार आपका 🙏
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