सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
यूँ तो हर दिन महत्त्वपूर्ण होता है
लेकिन कोई खास दिन हो जाता है
जब विशेष तिथि पर हम कोई कार्य कर रहे होते हैं
14 सितम्बर महत्त्वपूर्ण है तो 1 सितम्बर भी खास है
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साभार bhartdiscovery.org
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
पियूष मिश्रा
फिर मिलेंगे...
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का चौंतीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
'बैरी'
...उदाहरण...
बह गया
रिम-झिम, रिम-झिम,
गहन घन-संताप
सजल हुआ बैरी उर फिर
सुनकर क्यूँ मेघ मल्हार ?
-दीपा जोशी
उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है
अंतिम तिथि :: आज शनिवार 01 सितम्बर 2018
प्रकाशन तिथि 03 सितम्बर 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
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शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
एक और यादगार प्रस्तुति
साधुवाद
सादर
सुप्रभात सुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रेरक हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा हलचल
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या दी:),
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहद सराहनीय प्रस्तुति👌👌
सुंदर अंक , शुभ रात्रि
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पखवाड़े का आरंभ सबके चहेते साहित्यकार दुष्यंत कुमार जी की चर्चा से. साहित्य की सभी विधाओं में दख़ल रखने वाले दुष्यंत कुमार अपनी ग़ज़लों के साथ अत्यधिक लोकप्रिय हुए. उनकी जयंती पर सादर नमन. पेश है उनका एक शेर-
जवाब देंहटाएं"वो घर में मेज़ पे कुहनी टिकाए बैठे हैं
थमी हुई है वहीं उम्र आज-कल लोगो"
आदरणीया विभा दीदी को सार्थक प्रस्तुति के लिये बधाई.
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनमन है दुष्यंत जी को🙏🙏🙏
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी-- आज के विशेष लिंक संयोजन में दुष्यंत कुमार का स्मरण बहुत ही अनभावन है और मन को
जवाब देंहटाएंछूने वाला है | बहुत ही बेहतरीन रचनाएँ ढूंढी आपने जिनके लिए कोई भी आभार कम है |
वैसे उनका स्मरण क्या ? वो तो कभी भुलाए ही नहीं गये | उनके निधन के 45 सालों बाद भी
उनकी लेखनी का जादू हर काव्य -रसिक के सर चढ़कर बोलता है | सरल और भावना -प्रधान लेखन से ,
साहित्य में हमेशा उनका स्थान अटल रहेगा | उनकी एक रचना मेरी पसंद की जो मुझे बहुत पसंद है ---
सरे राह कुछ भी कहा नहीं, कभी उसके घर में गया नहीं
मैं जनम-जनम से उसी का हूँ, उसे आज तक ये पता नहीं
उसे पाक़ नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो, कभी मैंने उसको छुआ नहीं
ये ख़ुदा की देन अज़ीब है, कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा वो मिल गया, जिसे मैंने चाहा वो मिला नहीं
इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं, मुझे उनका कोई पता नहीं!!!!!!!!!
ये रचना मैंने साभार कविता कोष से ली है |
सादर ---- आभार और नमन !!!!!!
thank you too.
हटाएंआपने भी एक अच्छी रचना का स्वाद लेने का मौका प्रदान किया।
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आप हार बार कुछ नया सिखा जाते है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Marathi Motivation