क्यों बैठ जाते हो
हाथ पर हाथ रखकर
जुटे रहो समन्वय के सूत्र तलाशने में
सोचो कैसा समाज सौंपकर जाओगे अगली पीढ़ी को...... ?
आइये अब आपको सृजन संसार की सैर पर ले चलें-
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जर्मनी और राज भाटिया -सतीश सक्सेना
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हमारे देश में अब अतिथि सत्कार दिखावा और बीते दिनों की बात हो चली है , मगर देश से इतनी दूर , भाटिया दम्पति ने जिस प्यार से विशुद्ध भारतीय भोजन कराया वैसा बहुत कम ही नजर आता है ! भोजन अच्छा तभी लगता है जब वह प्यार से कराया जाय इस मायने में श्रीमती भाटिया साक्षात् अन्नपूर्णा सी लगीं यूँ भी जर्मनी में किसी भी भारतीय घर में, भारतीय भोजन की उपलब्धता होना आसान नहीं,
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जैसे मैं हूँ वैसे तुम कौन हो?
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हर क़दम पर पीती रही,
हम-क़दम के पैंतीसवें क़दम
का विषय...
यहाँ देखिए....
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
कल की प्रस्तुति - आदरणीया श्वेता सिन्हा जी
रवीन्द्र सिंह यादव
ज्वलंत सामयिक प्रश्न
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसम-सामयिक प्रस्तुति
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएं सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आपकी हलचल कमाल है
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह हलचल का पिटारा सबसे अलग होता हैं।सदर आभार।
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति.. बेहतरीन रचनाएँ
जवाब देंहटाएंआभार।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसही प्रश्न है कि कल क्या देकर जायेंगे अलगी पीढ़ी को, बहुत ही शानदार अंक बेहतरीन लिंक चयन सभी रचनाकारों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रश्न उठाती विचार मंथन को प्रेरित करते शब्द के साथ,बेहद उम्दा रचनाएँ हैं। आदरणीय रवींद्र जी को बधाई इस शानदार संकलन के लिए।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत ही सुन्दर, सार्थक, पठनीय सूत्र आज की हलचल में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंआपने मेरी रचना को प्रस्तुति में जगह दी
सादर