तराजू के
एक ओर सामान
दूसरी ओर तौल
वजन बराबर
पर दाम समान नहीं
बराबर होते हुए
बराबरी करने लायक नहीं
बराबर होना
और बराबर दिखना
बराबरी का एक छल है
छल प्रायः
मन के कोलाहल का कारण है~सुरजन परोही
सन 1881, में
बिहार पहला राज्य बना ,
जहाँ हिंदी को अाधिकारिक भाषा के रूप में
स्वीकार किया गया
आप सभीको यथायोग्य
प्रणामाशीष
परबचन में माहिर हम
क्या अपनी भूमिका के प्रति सचेत हैं
कुछ दिनों तक और मचा रहेगा
साल-छह महीने बाद किसी को डरते-डरते सुनाया भी जाए तो सिर्फ मरी हुई प्रतिक्रिया हासिल करने और दुखी होने के लिए। ऐसा बिल्कुल न होता अगर कुछ घटनाओं ने मुझे अपने इस पारंपरिक परिवेश से छिनगा कर अलग न कर दिया होता। लेकिन एक बार यह हो गया तो कविता एक विरोधी, विद्रोही, अंडरग्राउंड किस्म की हरकत की तरह मेरे भीतर पैदा हुई और एक बार पैदा होकर फिर कभी नहीं गई।
दरअसल अगर हम आज की हिंदी कविता को देखें तो यहां शोरगुल ज्यादा कविता को लेकर संजीदगी कम दिखाई देती है । इस वक्त हिंदी कविता को संजीदगी की ज्यादा जरूरत है कोलाहल की कम क्योंकि कोलाहल से जो कलह हो रहा है उससे हिंदी कविता का और हिंदी के नए कवियों का नुकसान संभव है ।
एक कन्या की जन्म जन्मान्तर की सहराई प्यास है बुझकर भी नहीं बुझती. औरत का एक जन्म नहीं होता, ज़िंदगी के सफर में हर पड़ाव पर एक नया जन्म होता है. वह औरत ही होती है जो मिट्टी से जुड़कर सेवा करती है. फिर भी समाज में पुरुष सत्ता के मान्यता के दायरे में कई कट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं. कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई करते करते हार जाती है, पर उसकी आवाज़ चीख बनकर अब ध्वनित व् प्रतिध्वनित हो रही है. ‘गुड़िया-गाय-गुलाम’ नामक यह कविता उसीकी तर्जुमानी है.
‘कल तुमने मुझे अपने खूंटे से गाय समझकर/ मेरे पैरों में रस्सी बाँध दी आज तुमने मुझे /अपने हुक्म का ग़ुलाम समझकर/ गरम सलाख से मेरी जीभ दाग़ दी है/और अब भी चाहते हो/मैं शिकायत न करूं?
कोलाहल
अब तो
आदमी का ख़ून
बाज़ार की मंहगाई
खादी का भ्रष्टाचार
संसद का हंगामा
ग्लोबलवार्मिंग
प्रदूषण
और कन्याओं की भ्रूण हत्या ही हावी है मानस पटल पर
हमें पता है आप इज़्जत करते हैं एक स्त्री की.. पर इन सब घटनाओं से आपके अंतर्मन पर क्या प्रभाव पड़ता है..आपका दिल कितना दुखता है, ये बस आप ही समझते हैं।
कुछ चंद मानसिक रोगियों व वहशियों के कारण पूरे पुरुष समाज को इस दंश को झेलना पड़ता है।
><
फिर मिलेंगे...
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का छत्तीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
क्षितिज
उदाहरण..
आओ
चलो हम भी
क्षितिज के उस पार चले
जहाँ
सारे बन्धन तोड
धरती और गगन मिले
जहाँ
पर हो
खुशी से भरे बादल
और
न हो कोई
दुनियादारी की हलचल
बेफिक्र
जिन्दगी जहाँ
खेले बचपन सी सुहानी
जहाँ
पर नही हो
खोखली बाते जुबानी
खुले
आकाश मे
पतन्ग की भान्ति
उडे
और लाएँ
एक नई क्रान्ति
जो मेहनत
को बनाएँ
सफलता की सीढी
आशा सच
उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है
अंतिम तिथिः शनिवार 15 सितम्बर 2018
प्रकाशन तिथि 17 सितम्बर 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
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सुप्रभातम् दी:)
जवाब देंहटाएंहमेशा अई तरह पर हमेशा से अलग...लेखों का सुंदर संकलन है...सभी एक से बढ़कर एक..बेहतरीन रचनाएँ है।
सादर आभार दी ज्ञानवर्धक संयोजन के लिए।
सुंदर संकलन , खूबसूरत रचनाएँ
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
खुश हुए ...हिन्दी पखवाड़े के समापन पर
आभार
सादर
हिंदी दिवस पखवाड़ा में कोलाहल ,
जवाब देंहटाएंकोलाहल होना स्वाभाविक है
तराज़ू के एक ओर सामान
ओर दूसरी ओर तौल
वज़न बराबर , पर दाम समान नहीं ....
बराबरी का छलावा , यशोदा जी मन का कोलाहाल आज में बख़ूबी नज़र आ रहा है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया विभा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ। मेरे ब्लॉग से भी मेरी रचनाएँ शामिल कीजिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का सुंदर संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
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