आदरणीय भाई कुलदीप जी का संदेशा सुबह से ही आ गया
समय है...प्रस्तुति बन जाएगी समय से पहले...
आज एक नयापन...अगले सप्ताह का विषय पहले
यानि की प्रस्तुति नीचे से शुरु.....
अंतिम तिथिः शनिवार 22 सितम्बर 2018
प्रकाशन तिथि 24 सितम्बर 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के
सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
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अब आपको ले चलते हैं रचनाओं की ओर....
"कब तक”.......मीना भारद्वाज
नैन हमारे तकते राहें ,जाने तुम आओगे कब तक ।
जाओ तुम से बात करें क्यों , साथ हमारा दोगे कब तक ।।
ना फरमानी फितरत पर हम , बोलो क्योंकर गौर करेंगे ।
तुम ही कह दो जो कहना है , हम से और लड़ोगे कब तक ।।
संध्या वंदन...नूपुर
सांझ की लौटती धूप
धीरे-धीरे आती है,
सोच में डूबी हौले-हौले
भोले बच्चों जैसी
फूल-पत्तियों को..
सरल सलोने स्वप्नों को
दुलारती है ।
हल्की-सी बयार से
पीठ थपथपाती है ।
बह जाते हैं नीर....पुरुषोत्तम सिन्हा
असह्य हुई, जब भी पीड़,
बंध तोड़ दे, जब मन का धीर,
नैनों से बह जाते हैं नीर,
बिन बोले, सब कुछ कह जाते हैं नीर...
मौसम बदलने लगा.....नीना पॉल
मिले हादसे मुझको हर मोड़ पर
सम्भलने से पहले फिसलने लगा
तेरी याद में खो गया इस क़दर
उम्मीदों का इक दीप जलने लगा
मिलने से पहले जुदाइयों का ग़म
पल-पल दिलों में ही पलने लगा
फिज़ूल टाईम्स.......डॉ. राजीव जोशी
मेरी आँखों ने ऐसे मंजर देखे हैं
भीख माँगते छोटे कोमल कर देखे हैं।
खून पसीने से तन उनके तर देखे हैं।
हवादार बिन दीवारों के घर देखे हैं
पिता सुधा स्रोत....कुसुम कोठरी
देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरुवर
अब छांव कहां से पाऊं
देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हे नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं ।
शीर्षक कथा
उलूक उवाच....डॉ. सुशील जोशी
लिखने लिखाने के
विषयों पर क्या
कहा जा सकता है
कुछ भी कभी भी
खाली दिमाग को
फ्यूज होते बल्ब के
जैसे चमका सकता है
कभी घर की एक
बात उठ सकती हैं
कभी पड़ोसी का
पड़ोसी से पंगा
एक मसालेदार
मीनू बना सकता है
इज़ाज़त दें
दिग्विजय
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंएक खासियत है आपमें
आफत मे सक्रियता
सादर
सहमती
हटाएंA very rare quality.
हटाएंउम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तावना...., बहुत उम्दा प्रस्तुति । मेरी रचना को संकलन में मान देने हेतु तहेदिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाये प्रस्तुतीकरण भी शानदार हूं।आभार
एक लेखक बदलाव का भी बदलाव चाहता है क्यूंकि वो हर वक्त बेहतर से बेहतर करना चाहता है.
जवाब देंहटाएंइस के लिए वो अपने आप को हमेशा अपडेटेड रखता है. ताकि हर परिस्थिति का आलोचनात्मक परीक्षण कर सके.
बेहतरीन हलचल.
सुप्रभातम् आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विचारणीय भूमिका के साथ बहुत अच्छी रचनाओं का संगम है आज के अंक में।
सुंदर प्रस्तुति और हमक़दम के लिए नवीन रोचक विषय..वाहह।
सादर
सुन्दर समसामायिक कविताओं के बीच 'उलूक'की एक बासी बकवास भी ले आये आप। सुन्दर हलचल प्र्स्तुति के बीच जगह देने के लिये आभार दिग्विजय जी।
जवाब देंहटाएंसृजनशीलता कभी भी व्यर्थ नहीं हो सकती,
जवाब देंहटाएंफर्क पड़ता है हमारे दृष्टिकोण से।... अक्षरशः सत्य। सृजन स्वयं ही पीड़ा लेकर सुख उत्पन्न करती है। ...
मेरी रचना को संकलन में मान देने हेतु तहेदिल से आभार
सच है ।
हटाएंबहुत ही खूबसूरत प्रस्तावना के साथ लिंकों का संयोजन।
जवाब देंहटाएंआभार।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् धन्यवाद।
कविता का बड़प्पन
जवाब देंहटाएं-------------------------
"कविता का यह एक लक्षण है कि हर कवि अपने आप को बड़ा कवि मानता है । मैं भी अपवाद नहीं हूँ । दरअसल यह कविता के ही बड़प्पन की बात है । मैं कविता को सबसे बड़ी विधा इसलिए मानता हूँ कि वह लिखने वाले को अपने-आप बड़ा बना देती है ।"
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- भालचंद्र नेमाड़े
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श्री सुधीर ओखदे ने यह विचार साझा किया ।
अच्छा लगा ।
आप सबसे साझा करने का मन हुआ ।
सुंदर संकलन और प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहलचल लाने वाले सभी रचनाकारों को..दिग्विजयजी को बधाई !
सुंदर प्रस्तुति और रोचक विषय
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी -- सुंदर गीत के साथ आज के सुंदर , सराहनीय संकलन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाये |उलूक दर्शन और एक अन्य पोस्ट पर लिखना संभव ना हो क्षमा प्रार्थी हूँ - पर सब रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनायें | हमकदम का नया विषय रोचक है | सादर --
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक संकलन लाजवाब प्रस्तुतिकरण...
जवाब देंहटाएंसुंदर और स्तरीय रचनाओं के बीच फ़िज़ूल टाइम्स जी फ़िज़ूल हरकत को भी स्थान देने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपके प्रति कृतकृत्य हूँ!
पुनः आभार।