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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

1161...बताए कोई मेरी मंजिल कहाँ है...

सादर अभिवादन। 

भारत में सरकारी कामकाज का ढंग 

कुछ ऐसा है 

कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का 

दम निकल जाता है

हमारी कार्य संस्कृति का 

अक्सर जुलूस निकल जाता है। 


आइये अब आपको  पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें - 





पकी देग आग से उतरी 

लोग अचम्भौ खाय 

बिरयानी से भरी देग थी 

पुरो लंगर खाय



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हैं फौलादी बाजू उमंगें जवां हैं

दिलों में उमड़ा हुआ तूफ़ां है
ये सफर तो जैसे इक इम्तहाँ है
बताए कोई मेरी मंजिल कहाँ है



शूर वीर... उर्मिला सिंह


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लक्ष्या गृह से तप कर जो निकलतें,शूर वीर वही कहलातें
सच के राही पर रंग दुवाओं के अम्बर से बरसते हैं!


जिंदगी के रंग ….अनुराधा चौहान 



जिंदगी तो जिंदगी है
अपनी रफ्तार भागती
कभी सागर सी उफनती
कभी नदियों सी मचलती
कभी झरने सी झरती
रेत सी फिसले यह जिंदगी

 

किताबें और उनका प्रभाव ------ विजय राजबली माथुर


चलते-चलते चर्चित ब्लॉग"मेरी धरोहर" से एक रचना -   


तुम …मंजू मिश्रा



ढाल दूँ 
गीत के स्वरों में ही 
मगर 
कहाँ हो पाता है 
तुम तो 
समय की तरह 
फिसल जाते हो 
मुट्ठी से...

 

 

हम-क़दम के छत्तीसवाँ क़दम
का विषय...


आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार 
शुक्रवारीय प्रस्तुति - आदरणीया श्वेता सिन्हा जी 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई रवीन्द्र जी
    बेहतरीन
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभप्रभात रवीन्द्र जी बहुत बहुत आभार मेरी रचना को स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं बहुत सुंदर है

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर गुरुवारीय हलचल प्रस्तुति रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन रचनाओं का सुंदर संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. सारगर्भित भूमिका,
    तभी तो एक उदाहरण बनने के कुछ और न हो सका इस व्यवस्था का।
    बहुत अच्छी रचनाओं की सुंदर प्रस्तुति रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं

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