चिंतन व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। चिंतन
ही व्यक्ति के चरित्र और स्वभाव को प्रखरता प्रदान करता है।
उत्थान के लिए नारे लगा रहे हैं। पर फिर भी हिंदी की परिस्थिति
में कोई विशेष अंतर नहीं हुआ है,उसके पीछे एक कारण हमारे
विचारों में मौलिक चिंतन का अभाव है। दूसरों के विचारों और
रचनाओं से प्रभावित हिंदी की रचनाएँ वर्तमान दौर में अपना
प्रभाव खोती जा रही है। मौलिक चिंतन का अभाव होता जा रहा है जो कि हिंदी के जीवन के लिए घातक रोग है।
जीने के लिए मनमाना ढंग और मापदंड स्थापित करता है तो
फिर लेखन के संबंध में ऐसे मौलिक मापदंड क्यूँ स्थापित
नहीं किये जा सकते?
लिखी एक विचारणीय रचना
विहग-विहंगम नीड़ों में डेरा,
चुपके से चातक आए लुटेरा,
लूट चले मन को उड़ता कहीं,
चित्त में ख़्वाबों का बड़ा एक ढेला...
हरे पत्तों पर ओस की बूँदे चमक रहीं थीं
शीतल सुगंधित बयार मन लुभा रही थी
पक्षियों का कलरव सौंदर्य बढ़ा रहा था
उनकी कतार गगन की ओर जा रही थी
प्रतिभाशालीलेखनी से पढ़िए बेहद लाज़वाब
एक इसी में वह सुख पाता
कांति पुंज का है वह रक्षक
ऐ ! सखि दीपक, ना सखि शिक्षक
जाति पाँत सब वही बनाये
झूठ साँच के जाल बिछाये
एक वही जो लेता देता
ऐ सखि ईश्वर ? नहि सखि नेता
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है
चेलों
का रेला
वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से
★★★★★
श्वेता जी
जवाब देंहटाएंलेखन के सम्बंध में मौलिक मापदंड का यह मुद्दा
उठाना अच्छा लगा, साथ ही इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिये आभार
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार संकलन हैं।
हिन्दी में मौलिकता बनाये रखने के लिए ऐसे ही हम सबको प्रयास करते रहना हैं।
आभार
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंहमारा अनुमान सत्य होता दृष्टिगोचर हो रहा है
आप गद्य लेखन में रुचि ले रही हैं
एक श्रमसाध्य प्रस्तुति
आभार सखी...
सादर
सटीक सवाल
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
सटीक विश्लेषण। सुन्दर शुक्रवारीय हलचल में 'उलूक' के गुड़ और शक्कर को भी जगह देने के लिये आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंमौलिक विचार न होने पर भी लोगों को कुछ न कुछ तो करना ही होता है तो वो लीक पीटते हैं।
जवाब देंहटाएं"लेकिन मौलिक विचार भी किसी एक विषय को लेकर अनेक लोगों के एक जैसे हो सकते हैं।"
ये ध्यान रखने योग्य बात है।
हिंदी के विस्तार में हम लोग भी काफी बार बाधा बन जाते हैं जैसे कि कोई व्यक्ति अपनी मातृबोली के शब्द हिंदी की रचना में प्रयोग करता है तो हम ही लोग उसको रोकते टोकते रहते हैं।
हम लोग इस चीज को हिंदी के लिए खतरा मान लेते हैं जबकि वास्तविकता में वो हिंदी का विस्तार है।हिंदी ऊंचे मालों से उतर कर जमीनी सतह पर जड़े फैला रही है।
लिंक्स शानदार हैं आज की हलचल के।
,🙏
आदरणीय रोहित जी सहमत हूँ आपके मत से -- हिंदी भषा में नये शब्दों के मिलने से वह और समृद्ध होगी |
हटाएंसुंदर लिंकों के साथ विचारणीय भूमिका के साथ आज की प्रस्तुति विशेष बन गई है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया श्ववेता जी,आभार।
विचारणीय भूमिका.....उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता ,सुंदर प्रस्तुति एक विचारणीय भूमिका के साथ ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअतिउत्तम सराहनीय हलचल
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा
आज की रचना कल की विरासत होगी, इस ख़याल के साथ मौलिकता पर आपकी भूमिका अत्यंत सार्थक और सराहनीय है. इस सुन्दर संकलन का शुक्रिया!!!
जवाब देंहटाएंअतिउत्तम सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा
प्रिय श्वेता --आजके लिंक संयोजन की धीर -गम्भीर भूमिका बहुत सार्थक है ,पर फिर भी ना जाने क्यों मुझे अधूरी सी लगी | आदरणीय विश्वमोहन जी के अपनी रचना के माध्यम से उठाये गये अत्यंत विचारणीय मुद्दे को भी यदि इस भूमिका से जोड़ा जाता तो विषय को विस्तार तो मिलता ही वह भी अधूरा ना रहता | जैसा कि रोहितास जी ने लिखा मौलिक चिंतन भी कई लोगों का एक जैसा हो सकता है -- यह कोई मुद्दा नही | मुद्दा है विषय पर चिंतन एक जैसा हो सकता है पूरी की पूरी रचना नहीं | मौलिक चिंतन के अभाव के साथ कथित '' साहित्यिक डाकजनी अथवा डकैती एक बहुत ही चिंतनीय बात है | जितनी चिंतनीय उतनी ही निंदनीय है | लोग ना जाने क्यों क्षणिक वाही - वाही के लिए इस तरह का दुस्साहस करने से बाज नहीं आते और मौलिक रचना उड़ा ले जाते हैं | त्योहारों पर तो उड़ाई गयी रचनाओं की बाढ़ सी आ जाती है| ये लोग असल रचियता के प्रति आभार प्रकट हुए यदि रचना डालेगें तो उन्हें उससे ज्यादा सम्मान मिलने का अवसर मिलता है | पर ऐसा देखने में नहीं आता | आशा है आप और अन्य चर्चाकार इस ज्वलंत मुद्दे को आगे बढाते हुए इस बहस में अपना अतुलनीय योगदान देंगे और एक जागृति अभियान चलाएंगे | हिन्दी पखवाड़े पर अपनी मातृभाषा के लिए इससे बढ़कर कोई सेवा नहीं हो सकती | सबसे बड़ी बात आप लोगों के पास सशक्त मंच है |विश्वमोहन जी की रचना के साथ मीना जी , अमित निश्चल और प्रशांत जी की बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना पढ़ी | अनूठे उलूक - दर्शन की महिमा अवर्णनीय है | नवीन जी का साहित्य की विस्मृत सी विधा '' कह्मुकरी '' में लिखने का प्रयास वन्दनीय है | इस तरह के प्रयास इन विधाओं के लिए प्राणवायु हैं | सभी रचनाकारों को अपनी शुभकामनायें देती हूँ | और आपको इस सार्थक अंक के लिए बहुत - बहुत बधाई | सस्नेह --
हटाएंहिन्दी पखवाड़े में एक विचारणीय बहस का मुद्दा सामने रखती प्रस्तावना. उत्कृष्ट रचनाओं का बेहतरीन संकलन. बधाई आदरणीया श्वेता जी.
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
सशक्त भुमिका विचारणीय मुद्दा, श्वेता आपने ज्वलंत प्रश्न उठाया है आज साहित्य के हर क्षेत्र में मौलिकता लुट रही है हर भाषा में ऐसा हो रहा है।
जवाब देंहटाएंहिंदी पखवारा और हिंदी सप्ताह मनाने भर से हिंदी का उद्धार हो जाना एक खुशफहमी के सिवा और क्या है, हिंदी के प्रति प्रतिबद्धता हर समय कम से कम हर हिंदी साहित्यकार को रखनी होगी। अच्छे लिखने वालों के साथ अच्छे समालोचकों की बहुत आवश्यकता है, और पब्लिशिंग से पहले कड़ाई से खोज बीन हो और मौलिकता का पुरा विश्वास हो तभी पब्लिश हो तो काफी शुभ्रता आ सकती है।
पुरा संकलन नही पढ पाई,
सभी रचनाकारों को बधाई।