देवताओं के वास्तुकार और धरती के प्रथम शिल्पकार माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयन्ती हर वर्ष 17 सितम्बर को बड़ी धूम-धाम से मुख्यतः कर्नाटक,असम,पश्चिमी बंगार,बिहार,झारखंड, ओड़िसा और त्रिपुरा में मनायी जाती है।
कल-कारखानों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष रुप से की जाती है।
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अंबरांत,अंबरांरभ,आकाश-रेखा,उफ़ुक,दिशा-मंडल,शफ़क या क्षितिज।
धरा,गगन के मिलन की भूल-भूलैय्या में दृग को उलझाता है।
भ्रमित मन का वह आभासी संगम "क्षितिज" कहलाता है।
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हमक़दम के विषय "क्षितिज" पर उकेरी गयी क़लम की कूची से रचनाकार चित्रकारों की अनुपम इंद्रधनुषी कलाकृतियाँ सच में सराहनीय है। आपकी कलाकारी को हृदय से प्रणाम करती हूँ। किसी भी विषय पर सहजता से लिख जाना आपकी व्यापक दृष्टिकोण और रचनात्मक क्षमता का अपूर्व सुखद आभास करवाता है।
आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है।
आइये आज की रचनाओं का आस्वादन करते हैं-
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आदरणीया मीना जी
जुल्म न झूठ का कोई स्थान होगा
हरेक जाति धर्म एक सामान होगा
मनुष्य बस मानव धर्म निभायेगा
नैतिकता ही नीति का आधार होगा
तेरे मेरे मन का नगर क्षितिज के पार होगा
आदरणीया सुधा जी की क़लम से
खुशबू महकी फ़िज़ा में मिली।
फ़िज़ा में महकी खुशबू से ही
कुछ खुशियाँ चुराया करता था।
वह दूर कहीं क्षितिज में खड़ा
बस प्रेम निभाया करता था ......
एक दृष्टि सीमा तक जा रुकता नभ
धुमिल उच्छवास उठ सारंग तक
महि का हृदय आडोलित हतप्रभः
बन क्षितिज लुभाता सदा हमे
तुम्हारे कदमों के निशानों पर
तुम तक पहुँचना चाहती हूँ !
सारी आवाजें गुम हो जायें,
जहाँ मेरी जाने के ख्वाहिश हैं
वहां न ख्वाहिशों की बेड़ियाँ हैं
और न ही रिश्तों का दोहरापन
और न ही किसी प्रकार का सूनापन
मन मेरे मन की बातें सुनता,
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की तीन रचना
आदरणीया अनुराधा चौहान जी की दो रचना
क्षितिज के पार देखो , चांदनी आंसू बहाती है
तेरा साया जहाँ पड़ता , सिसकती भोर आती है
ये टूटे आशियाँ आँखों में , बिखरे ख्वाब बाकी हैं
दिए सौगात में आंसू , बता तू कैसा साकी है
वहीं हमारा घर होगा |
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आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।
अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ
बहुत सुंदर संकलन है श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंआप सहित सभी रचनाकारों को विश्वकर्मा जयंती की शुभकामना
शुभ प्रभात ....
जवाब देंहटाएंक्षितिज को परिभाषित भी कर सकते हैं...
हम धरातल पर ही तो खड़े हैं..
सीधे चलते रहें तो वापस अपनी जगह पर आ ही जाएँगे...वाकई भ्रम है क्षितिज..
सादर...
वाह...
जवाब देंहटाएंबढ़िया
सादर
भगवान विश्वकर्मा के वास्तु शिल्प में प्रकल्पित प्रस्तावना से परिपूर्ण विचार और भाव के क्षितिज को स्पर्श करता सुंदर संकलन। साधुवाद, आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं भावप्रवण है मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका आभार प्रिय श्वेता संकलन एवं प्रस्तुति सदा की तरह बेहतरीन है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन सभी रचनायें मनभावन अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं पढवाने के लिए धन्यवाद |बढ़िया संकलन |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी अच्छी रचनाये पड़ने को मिली बहुत बहुत धन्यवाद आपको ।आपने सबको ये मंच उपलब्ध करवाया।सच कह तो इतने अच्छे रचनाकारों के आगे अपने आपको बहुत छोटा पाता हूं।और गौरवान्वित भी महशुस करता हूँ।
सदर आभार आपका जो इस क्षितिज पर हम सबका एक पेज हैं।
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसुन्दर सोमवारीय स्पेशियल।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई सभी रचनाएं बहुत ही बेहतरीन हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
हमकदम का ३६ वां कदम निश्चित रूप से आगे चल कर ६३ वां हो जाएगा; शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचनाएं आज की हलचल में ! सभी चयनित रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन एवं सभी को हार्दिक बधाइयाँँ ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंआप सभी को विश्वकर्मा दिवस की शुभकामनाएं
मेरी रणना को मंच पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार।....
एक विनती मान लेना,
जवाब देंहटाएंसंग चलना उस क्षितिज तक,
देख लूँ नयनों से अपने,
मैं धरा से गगन मिलते...
क्षितिज को अपनी उत्तंग परिकल्पनाओं से मुट्ठी में समेट लेने को आतुर कवियों-कवियत्रियों की अनुपम रचनाओं मुग्ध कर देने वाली हैं। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया श्वेता जी।
उम्दा संकलन एक ही विषय पर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए |
अत्यंत सुंदर रचनाएँ....सृजन के इस क्षितिज पर मिलते रहें हम सब,यही दुआ करती हूँ। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर धन्यवाद। देर से उपस्थित होने के लिए क्षमाप्रार्थी।
जवाब देंहटाएंबहुर ही लाजवाब रचनाओं के साथ सुंदर भूमिका से सजा ये अंक बहुत ही अविस्मरनीय है प्रिय श्वेता | क्षितिज की इतनी परिभाषाओं को पढ़ मन आहलादित है | सभी रचनाकारों की कल्पना को नमन | सभी को बधाई | देर से आने के लिए क्षमा पार्थी हूँ | पर पढ़ उसी समय लेती हूँ | सस्नेह --
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