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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

1141....गाँधी तेरे बन्दर अब भी, अन्धे-गूँगे-बहरे हैं

एक साहित्यकार की क़लम में युगचेतना का ओज भरा होता है। 
साहित्य के बिना समाज की सांस्कृतिक और देश की सभ्यता मात्र 
एक भ्रम के सिवा कुछ नहीं। राष्ट्र का सर्वांगीण विकास साहित्य 
के साथ के बिना सार्थक नहीं हो सकती।

साहित्यिक संवेदना, अनुभूति, प्रेरणा समाज को चिंतनशीलता 
प्रदान करती है। साहित्य विचारों की सूक्ष्मता और व्यापकता 
को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है।

मैं इस मंच के माध्यम से नियमित प्रस्तुति के साथ साहित्य के दैदीप्यमान, कालजयी, सितारोंं  की कुछ रचनाओं को 
आप से साझा करने का प्रयास करुँगी।  इस कड़ी में 
आज पढ़िए आदरणीय हरिवंश राय बच्चन की रचनाएँ-

रचता मुख जिससे निकली हो
वेद-उपनिषद की वर वाणी,
काव्य-माधुरी, राग-रागिनी
जग-जीवन के हित कल्याणी,

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो

कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

बाल कविता
उजला-उजला हंस एक दिन
उड़ते-उड़ते आया,
हंस देखकर काला कौआ
मन ही मन शरमाया।

मधुशाला/भाग-१
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।
सादर नमस्कार

अब चलिए आज की  नियमित रचनाओं के संसार


"अपनी हिन्दी"..... आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अंग्रेजी भाषा के हम तो, 
खाने लगे निवाले हैं

खान-पान-परिधान विदेशी, 
फिर भी हिन्दी वाले हैं

अपनी गठरी कभी न खोली, 
उनके थाल खँगाल रहे

आदरणीया कुसुम जी की लिखी वर्ण पिरामिड


ये
स्वर्ण
आलोक
चोटी पर
बिखर गया
पर्वतों के पीछे
भास्कर मुसकाया।
★★★★★
आदरणीय अमित निश्छल की लेखनी से


मानवता का मोल नहीं है

अन्यायों का आधार नहीं?

पिघल रहा हिमगिरि भी देखो

तप्त, उनके अश्रु प्रवाहों से,
धरती पानी में डूबी है
किंचित अनिष्ट आगाहों से।
★★★★★


आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी की लिखी प्रभावी ग़ज़ल

किसी को पूजने की ग़लती न करो लोगो 
जिसको भी पूजा गया, वही ख़ुदा हो गया। 

तमन्ना रखे है कि मिले इसे कुछ क़ीमत 
हैरां हूँ, मेरी वफ़ा को ये क्या हो गया।
 ★★★★★
आदरणीया प्रतिभा जी की
ओजपूर्ण लेखनी से
खेल


कुछ सड़क पर उतरकर खेल रहे हैं

कुछ न्यूज़ रूम में बैठकर

कुछ चौराहों पर,

कुछ चाय की गुमटियों पर
कुछ कौन बनेगा करोड़पति देखते हुए खेल रहे हैं
कुछ दांत भींचते हुए खेल रहे हैं स्मार्ट फोन के स्क्रीन पर
फेसबुक पर भी हैं बहुत से खिलाड़ी

★★★★★
और चलते-चलते पढ़िए
आदरणीय रवींद्र जी की समसामयिक सारगर्भित रचना
संघर्ष


हमारी क़लम तेरे लिये
 चमचमाती शमशीर है 
जिगर फ़ौलादी हो गया है 
हालात से लड़ते-लड़ते 
नहीं जीना हमें गवारा 
अब मौत से डरते-डरते 
★★★★★
आज  की प्रस्तुति आपको कैसी लगी?
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य 
दीजिएगा।

इस सप्ताह के हमक़दम का विषय
जानने के लिए


कल आ रही अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ
आदरणीय विभा दी

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया
    मनभाया नया प्रयोग
    सादर शुभ प्रभात

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी लिंक्स बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  4. मनमोहक संकलन के साथ सुंदर प्रस्तुति..
    सभी रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुरुचिपूर्ण, सार्थक मनभावन प्रयोग !!!
    महत्वपूर्ण सशक्त भुमिका सभ्यता और संस्कृति यहां तक जनमानस और राजनीति सभी पर साहित्य और साहित्यकारों का सदा प्रभाव रहा है रहेगा।
    मनभावन संकलन के साथ विहंगम प्रस्तुति मेरी रचना को सामिल करने के लिये तहेदिल से शुक्रिया। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. अति सुन्दर .
    सभी कृतियाँ कबीले तारीफ हैं.
    धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर प्रस्तुति 👌👌👌
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  9. हम सबके प्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन जी की रचनाओं के साथ आज की प्रस्तुति का अंदाज़ ख़ास बन पड़ा है. विचारणीय रचनाओं का संकलन.
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय श्वेता -- आज फिर आपने अपनी मौलिक कल्पना से लिंक संयोजन में नया रंग भरा | आदरणीय कवि बच्चन जी की रचनाओं को पढ़ना मन को असीम आनन्द से भर गया | बाकि सभी रचनाकारों के बेहतरीन सृजन से मन को बहुत ख़ुशी मिली | अमित निश्चल की रचना ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया |अभी सब पर लिखना ना ओ पाया | आदरणीय हरिवंशराय जी बच्चन की एक और कविता के कुछ शब्द मुझे भी याद आये |

    मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
    फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
    कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
    मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!
    मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
    मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
    जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
    मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
    मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
    शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
    हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
    मैं उस खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ!

    साहित्य विशेषकर सरल काव्य के पुरोधा को शत शत नमन | आज के सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और आपको मेरा पयार भरा आभार |

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर संकलन , बेजोड़ प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  12. अनुपम रचनाओं का संकलन है आज के इस अंक में ! हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बुकमार्क कर सेव कर लिया है !

    जवाब देंहटाएं

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