11 एकम 11
11 दूनी 22
बस इसी तरह हमारी उम्र बढ़ती जा रही है
और....कमर का झुकाव बढ़ता जा रहा है
चलिए देखते हैं इसका भी इलाज होगा किसा के पास..
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लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में
दूर रह के गाँव से इतने दिनों तक क्या किया
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में
ये कहानी भी सुनानी है....दिगम्बर नासवा
मन्त्रमुग्ध सब झूल रहे थे
वसुन्धरा से अम्बर की ओर पींगे भर रहे थे “
तभी .......
“अम्बर ने “वसुन्धरा”को जब निहारा
मेघों से घिर गया अम्बर सारा “
मेघों ने सुन्दर - सुन्दर आकृतियाँ बनायीं
सावन के झूले.....ऋतु आसूजा
बेहतरीन संकलन एवं प्रस्तुति यशोदा दी । मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका सादर आभार 🙏 सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल
जवाब देंहटाएंव्याकुल पथिक जी के आलेख से प्रभावित हुआ।
🌹बहुत ही उम्दा संकलन👏👏👏👏👏🌹
जवाब देंहटाएंहमेशा की यह ब्लॉग आज भी सुंदर रचनाओं से सजा हुआ है। मेरे विचारों का स्थान देने के लिये आपका सादर आभार यशोदा जी। साथ ही रोहिताश जी को भी ,जिन्हें मेरे विचार अच्छे लगे हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवआआह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
सुन्दर संकलन ... और जबरदस्त गाना ... अपने समय का मशहूर गीत ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए आज की सुहानी हलचल में ...
सुन्दर संकलन ... और जबरदस्त गाना ... अपने समय का मशहूर गीत ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए आज की सुहानी हलचल में ...
सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन यशोदा दी । सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
आभार।
बहुत सुंदर संकलन बहतीं रचनाएँ व रचनाकार
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति। खूबसूरत रचनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत अच्छी प्रस्तुलि। सभी खूबसूरत रचनाएँ और सुंदर सा मनभावन गीत। सावन के झूले पड़े.... यहाँ शहर में कहाँ झूले पड़ें यशोदा दी, लोकल ट्रेन के झूले पड़ते हैं कामकाजी महिलाओं को। बचपन के झूलों की याद जरूर आती है।
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