संवेदनशीलता,भावुकता,ईष्या या आक्रोश सभी के
अंतर्मन में निहित स्वाभाविक मानवीय गुण है।
हमारा यह मानवीय रुप हमारे व्यक्तित्व के आध्यात्मिक,
भावनात्मक और मानसिक विकास में सहायक होता है। पर हमारे
मन की संवेदनशीलता अपने परिवार के सदस्यों जैसे माता-पिता,भाई-बहन,पति-पत्नी बच्चे सहित, कुछ अभिन्न मित्रों तथा अन्य सामाजिक बंधनों तक सीमित रहती है। जिन्हें हम अपना मानते है उनके दु:ख, चोट या खरोंच से हम विह्वल हो जाते हैं और उस पीड़ा से उनको मुक्त करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। पर जब बात समाज, देश या दुनिया की आती है तो हम असंवेदनशील बनकर तटस्थ हो जाते हैं।
अपनी तर्कहीन,असंगत मजबूरियाँ गिनाते हैं।
क्यों ना अपनी संवेदनशील चेतना के संकुचन पर विचार कर, स्वयं पर केंद्रित भावों का विस्तार कर, हम उदार हो जाये ताकि समाज और देश के प्रति कुछ सकारात्मक दायित्व का निर्वहन कर सकें।
शायद हमारे आस-पास घट रही चिंतनीय क्रियाओं पर हमारी प्रतिक्रिया दिशाहीन समाज को कोई राह दे पाने में सक्षम हो।
सादर नमस्कार
चलते है आज की रचनाओं की ओर-
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आदरणीया मीना जी की रचना
जब लगे गोली उन्हें, तो जख्म हो मुझे
कुछ इस तरह कर दे मेरे खुदा, लिखूँ !!!
दुश्मन की हरेक चाल से महफूज रहें वो
मन्नत यही माँगूँ, यही दुआ लिखूँ !!!
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आदरणीया रश्मि प्रभा जी की लेखनी से
मैं बढ़ती गई,
अपने भीतर कुछ न कुछ गढ़ती गई,
स्तब्ध होती गई,
कितना कुछ छूटा,
कितना कुछ टूटा,
बेवजह कुछ जुड़ गया,
तार तार हुई मैं,
जार जार रोई,
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आदरणीय दिलबाग जी की क़लम से
दिल में रहने वाले कब भुलाये जाते हैं
आँखें रोती हैं और ज़ख़्म मुसकराते हैं
जाने वाले अक्सर बहुत याद आते हैं।
दिन में हमसफ़र बन जाती हैं तन्हाइयाँ
और रातों को हमें उनके ख़्वाब सताते हैं।
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आदरणीय अरुण साथी जी की कलम से
चलो फिर से आंधियों को हवा देते है,
चलो हर एक चरागों को बुझा देते है!!
ये रौशनी ही फसाद करती है "साथी",
चलो इस गांव में अंधेरे को बसा देते है!!
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आदरणीया शैल जी की रचना
अश्रु की जलधारा में प्रिय
प्रीत की स्याही घोलकर
उर का अंतर्द्वंद लिख रही
पढ़ना मन की आंखें खोलकर
रससिक्त भाव व्यक्त करूं कैसे ,
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और चलते-चलते आदरणीय राकेश "राही' जी की प्रेरक कहानी
यह सुनकर कमल गंभीर स्वर में बोला - “काका सही कह रहे हैं, मैंने अपने बाबू जी को अपाहिज बना दिया और मैं नहीं चाहता कि काका का भी यही हाल हो। रमेश ! हमें समझना होगा कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, जिस काम को करने में हमें ख़ुशी मिले, उसी काम को करना चाहिए।”
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इस सप्ताह हम-क़दम के विषय के लिए
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आज के लिए इतना ही।
कल मिलिए विभा दी से।
-श्वेता
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
मानवीयता व अमानवीयता की
विवेचना अच्छी लगी
सादर
उम्दा चयन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनायें
सुप्रभात सुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति। खूबसूरत रचनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन व भावपूर्ण रचनाओं के साथ
जवाब देंहटाएंआपका आभार श्श्वेता जी। इतनी अच्छी रचनाओं से रूबरू करवाया
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक और अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील विचारों के साथ श्ववेता जी..सुंदर लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को शुभकामनाएँँ
धन्यवाद
सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
श्वेता जी, आभार, विचारोत्तेजक पृष्ठभूमि के साथ सुन्दर प्रस्तुति,इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सारगर्भित भुमिका, संवेदनाएं सच खत्म हो रही है दुसरों की छोडो अपने घर के बूजर्गो के प्रति माता पिता और भाई बहनो के प्रति।
जवाब देंहटाएंऔर जब तक कोमल भावनाएं नही पनपती जीवन स्वार्थ के सिवा कुछ नही।
इन मानवीय भावनाओं को कैसे जिंदा रखें प्रयास जरूरी है।
श्वेता बहुत सुंदर अंक सभी रचनाऐं बहुत अच्छी लगी सभी रचनाकारों को बधाई ।
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सारगर्भित भूमिका प्रिय श्वेता | किसी अन्याय के प्रति चुप्पी भी अन्याय को मौन समर्थन है |संवेदनाओं का जीवित होना ही मनुष्यता के अस्तित्व का बचा रहना है | सभी रचनाएँ पढ़ी बहुत आनन्द आया | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाये और आपके लिए आभार के साथ मेरा प्यार |
जवाब देंहटाएंप्रस्तावना बहुत प्रासंगिक और सारगर्भित! सुंदर रचनाओं का मणि कांचन संयोग!
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