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शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

1113....गुलामी आज़ाद कर रहे हैं, ये तो मनमानी है

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।


मैथिली शरण गुप्त के नाम से 3 अगस्त  1886 को 
उदित हुआ जाज्वल्यमान सितारा साहित्य का 
सूर्य बन जायेगा ऐसा किसे ज्ञात था।

  माता कौशिल्या बाई और पिता रामचरण किनकिने की तीसरी संतान के रुप में उत्तरप्रदेश के झाँसी के पास चिरगाँव में अवतरित "दद्दा जी" ने बारह वर्ष की आयु मेंं "कनकलता" नाम से ब्रज भाषा में  कविता लेखन शुरु किया। फिर  आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आये और खड़ी भाषा में कविताएँ रचनी आरंभ की।
साकेत,उर्मिला, पंचवटी, जयद्रथ वध जैसे प्रसिद्ध काव्य-खंड रचकर उन्होंने साहित्यिक समृद्धि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया। अनेक नाटकों की रचना करने वाले गुप्त जी ने दूसरी भाषा में लिखी 
रचनाओं को अनूदित भी किया।
गुप्त जी की रचना  राष्ट्रीयता ,गाँधीवादी विचारों की प्रधानता के साथ-साथ,देश की संस्कृति की गौरव-गाथा, समृद्ध इतिहास का गुणगान और सामाजिक विशेषताओं से परिपूर्ण है।

राज्यसभा के सदस्य रहे गुप्त जी के द्वारा 1912 में लिखी रचना
"भारत-भारती" स्वतंत्रता संग्राम के समय बेहद प्रभावशाली साबित हुई थी इसी कारण महात्मा गाँधी ने उनको "राष्ट्र-कवि" की 
पदवी से सम्मानित किया।
12 दिसंबर1964 में इनका निधन हो गया।
इनका जन्मदिवस 3 अगस्त कवि दिवस के रुप में मनाया जाता है।
उनकी लिखी रचनाओं में एक रचना-

निरख सखी ये खंजन आए
फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए
फैला उनके तन का आतप मन से सर सरसाए
घूमे वे इस ओर वहाँ ये हंस यहाँ उड़ छाए
करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुसकाए
फूल उठे हैं कमल अधर से यह बन्धूक सुहाए
स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाए
नभ ने मोती वारे लो ये अश्रु अर्घ्य भर लाए।
सादर नमस्कार
चलते है अब आज की रचनाओं की ओर-
आदरणीय अमित निश्छल जी की कविता 

पूछ बैठा बादलों के छाँव से

बहती चली जाती नाव से,

मस्ती सी चढ़ती उमंग में

नागों के तीखे विषदंत में।
ढूंढा हर जगह हर मांद में
सिंह गर्जन के आवाज में,
ऐ कविता तेरी विधा क्या है?
◆★◆★◆
आदरणीया कुसुम कोठारी जी की लेखनी से निसृत 


मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद मे

महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर मे



वो देखो हेमांगी  पताका  लहराई क्षितिज मे
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन मे

◆★◆★◆
आदरणीया सुप्रिया रानू जी की रचना
कितनी सीमाएँ, कितने नियम

और न जाने कितनी विडम्बनाएं,

कितनी सोच कितने विचार 

न जाने मेरे एक कदम 
पर टिकी कितनी टिप्पणियां,
मैं चलूं भी न तो कदम 

◆★◆★◆
आदरणीय शशि गुप्ता जी की 
लेखनी से पढ़िए
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये पुरपेच गलियाँ, ये बदनाम बाज़ार

ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार

ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
◆★◆★◆


और चलते-चलते उलूक के पन्नोंं से आदरणीय सुशील सर की अभिव्यक्ति


खोने का डर 

निकालें दिल से 



आओ 
निडर होकर 

किसी गिरोह 
को जोड़ने की 
एक डोर हो जायें 


आज का यह अंक आपको कैसा लगा कृपया अपनी 
बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें।

हमक़दम के इस सप्ताह के विषय के संबंध में



13 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    कालजयी कवि को
    शानदार आलेख...
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर
    शुभ प्रभात...

    जवाब देंहटाएं
  2. "राष्ट्र-कवि" को शत-शत नमन

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. राष्ट्र-कवि को नमन करने के साथ ही , विद्यालय के वे दिन भी याद आ गये, जब कविताएँ याद न करनी पड़े,इसके लिये मैं बहाने बनाया करता था। पर नियति का खेल भी विचित्र है, उसने बता दिया कि जीवन गणित का खेल नहीं, यह रचनाओं का मेल है।
    मेरे जैसे कनिष्ठ लेखक को अपने इस व्यापक विस्तार वाले ब्लॉग में महत्व देने हृदय से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर उन्हे नमन। आभार श्वेता जी आज की सुन्दर हलचल में 'उलूक' की ढोर को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. 'अबला जीवन हाय!तुम्हारी यही कहानी।
    आँचल में है दूध और आंखों में पानी।।'इस कालजयी वाक्य के रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी को शत शत नमन!
    उनकी स्मृतियों से सिक्त करने हेतु आभार ! सुंदर संकलन!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुति राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर उन्हे नमन सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. मैथिलीशरण गुप्त जी को शत शत नमन एवं श्रद्धा भाव। निस्संदेह राष्ट्र कवि की संज्ञा भी इनके नाम के साथ जुड़कर इठलाती होगी।
    .
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण सारी रचनाएँ बेहद खूबसूरत है...

    जवाब देंहटाएं
  8. राष्ट्र कवि ..
    देदीप्यमान दिनकर है कवि गुप्त जी
    कभी अस्त ना होय ऐसा सूरज
    खुद दमके जंग को प्रकाश दे
    शत शत उनको आज नमन !
    बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. मैथिलीशरण गुप्त जी को शत शत नमन..
    बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी, सभी रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार प्रस्तुति, राष्ट्रीय कवि श्री की लाजवाब पंक्तियों से सजी जीवंत भुमिका सुंदर लिंक चयन मेरी रचना को चुनने के लिये तहेदिल से शुक्रिया।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. राष्ट्रकवि को नमन सुंदर संकलन श्वेता जी मेरी रचना को एक कोना देने के लिए सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर संकलन , बेजोड़ प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं

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