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मंगलवार, 21 अगस्त 2018

1131"अब नहीं लौट के आने वाला घर खुला छोड़ के जाने वाला"


जय मां हाटेशवरी.....
"अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला"

खून का रिश्ता ही सब कुछ नहीं होता.....
कुछ रिश्ते धरती पर ही बनते हैं......
जो खून के रिश्तों से कई गुणा मजबूत होते हैं.....
हमारे परिवार में श्री  रामप्रसाद नेपाल से......
मेरे जन्म से 1 वर्ष पूर्व यानी 1983 में   आये थे......
आये तो नौकरी करने थे.....
पर हमारे  परिवार के एक सदस्य ही हो गये......
हम उन्हे काका [पहाड़ी भाषा में चाचा} कहते थे.....
न उन्हे अपने घर का पता......
न परिवार का.....
पर आज वो हमारे परिवार का हिस्सा थे....
घर के बजुर्गों की तरह हमारे परिवार में उनका स्थान था.....
वो इतने चरित्रवान थे की 35 वर्षों तक हमें उनमें एक भी अवगुण नजर नहीं आया.....
शनिवार यानी 18 अगस्त को जब हम पूजनीय अटल जी के कारण शोकाकुल थे.......
उसी दिन हमारे परिवार के ये अटल भी......
इस दुनिया और हमारे परिवार को अलविदा कह गये.....
 जिस कारण हमारा परिवार शोक में डूबा हुआ है.....
"हे ईश्वर इस पुण्यात्मा को अपने चरणों में स्थान देना...."
नम आंखों से पेश है....आज की प्रस्तुति.....

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अधूरे अल्फ़ाज़
बिछड़ गयी थी चाँदनी
अधूरे रह गए थे अरमान
जैसे ही ली रंगों ने करवट
बदल गए थे सारे अंदाज़
इस बेखुदी में ख़ामोशी से
बस हम तकते रह गए आसमान



सिद्धान्त गुजरे जमाने की बात है
प्रिमियम मतलब कि घूस...मौका देखो और निगेटिव डिस्काउन्ट से समझौता करो.
आज का वक्त डिस्काउन्ट का है. फिक्स प्राईज़ की दुकान अब नहीं चलती.
सिद्धान्त गुजरे जमाने की बात है और समझौता आज के ज़ज्बात हैं.  
इसे समझना होगा...



क्या लिखूं तुमसे परिचय मेरा ?-- कविता
पुलकित    सी  इस प्रीत - प्रांगण  में 
हो कर  निर्भय   मैं विचरूं,
भर  विस्मय  में  तुम्हे निहारूं -
रज बन पथ में  बिखरूं ;
हुई खुद से  अपरिचित सी   मैं -



भागती ज़िन्दगी
ये चाँद और सूरज
शहर को जगाते और
भगाते हैं
उम्र से लम्बी सड़कों पर
भागने वाला मन
आँखों के सपने
एक दिन खुली हथेली से
फिसल कर
दूर कहीं टूट कर
बिखर जाते हैं


मन्नत
मंदिर तो मन की शांति खोजने का तो साधन है फिर यहाँ क्यों अशांति फैलाई जाये।एक बार मुस्कराती मूरत को मन में बसा ले तो शायद कोई हल मिल भी जाये। अरे ! जब प्रभु सारे ब्रह्माण्ड का दुःख हँस कर झेल रहे हैं तो इंसान ऐसा क्यों नहीं करता ! " जोर से बजे घण्टे ने दादी की तन्द्रा भंग की तो उनको लगा कि अब उनकी बरी आ जाएगी।
बारी आने पर दादी ने भी पूजा की और बोली , " हे प्रभु तेरे द्वार आने वाले हर एक की इच्छा पूर्ण करना। "
और फिर दादी अपने घर लौट गई।


सवाल (लघु कथा )
अपने लिए तो कभी कुछ सोच ही नहीं पाती कमला, उसका भी मन करता कभी अपने लिए कुछ साड़ी ले ले , पर आजकल कपड़े गहने के दाम मे मिलने लगे हैं। बच्चों के साथ बाजार जाती, काफी चीज़ों पर मन चलता पर फिर लगता बच्चों को ज्यादा ज़रुरी है सामान दिलवाना, वो तो कैसे भी चला लेगी, मन मसोस कर रह जाती। सारे महीने बस दूसरे महीने के हिसाब में निकल जाते।
आज यही सब उसके दिमाग मे घूम रहा था की अचानक हँस पड़ी, इस बात पर की "लोग कहते हैं ४० के बाद जिम्मेदारी कम हो जाती है, अपनी ज़िन्दगी एन्जॉय कर सकते हैं,
अपने मन की कर सकते हैं, पर क्या आम मिडिल क्लास गृहणी ऐसा कर सकती है  ???


निराशाओं के दौर में जीना कर्तव्य बन जाता है
जिस दम न थमती हो नयन सावन झड़ी
उस दम हंसी ले लो किसी तस्वीर से
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है।
............*.............*..........*...
 हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का तैंतीसवाँ क़दम 
इस सप्ताह का विषय है
'आँखें'
...उदाहरण...
लो आसमान सी फैल उठीं नीली आँखें
लो उमड़ पड़ीं सागर सी वे भीगी आँखें
मेघश्याम सी घनी घनी कारी आँखें
मधुशाला सी भरी भरी भारी आँखें
एक भरे पैमाने सी छलकीं आँखें 
-दिव्या माथुर


उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है

अंतिम तिथिः शनिवार 25 अगस्त 2018  
प्रकाशन तिथि 27 अगस्त 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 

रचनाएँ  पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के 
सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें



धन्यवाद।

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई
    बढ़िया प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. भावपूर्ण भूमिका लिखी है आपने आदरणीय कुलदीप जी।
    काका को भावभीनी श्रद्धांजलि।🙏
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
    बहुत बढ़िया अंक।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा प्रस्तुति कुलदीप जी

    जवाब देंहटाएं
  5. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें💐💐💐
    .
    उम्दा रचनाओं का संकलन

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति श्रेष्ठ रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय कुलदीप जी -- गद्य और पद्य के अनुपम योग से बना ये लिंक संयोजन उसी दिन देख लिया था पर मंच पर उपस्थित ना हो पायी - अतः क्षमा प्रार्थी हूँ देर से उपस्थित होने के लिए | इन सुंदर लिंकों के सभी रचनाकारों को बधाई | और आपको विशेषाभार मेरी रचना को लिंकों का हिस्सा बनाने के लिए | सादर , सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं

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