सादर अभिवादन।
आजकल एक्सप्रेस-वे तेज़ी से बन रहे हैं।
ख़तरे उससे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
कल एक कार आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे की सर्विस
लेन में धसकी हुई ज़मीन से बने गड्ढे में गिर गयी।
शुक्र है कि सभी कार सवार सुरक्षित बच गये।
ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल पर समाचार पढ़ा जहाँ एक अख़बार
15 फीट गहरा गड्ढा बता रहा है वहीँ दूसरा 50 फीट गहरा ......
मीडिया रिपोर्टिंग पर विचार करें या व्यवस्था के भ्रष्टाचार पर.....?
आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलते हैं -
इस गुलसितां से कोई, गुलों को चुरा गया
काँटों का ताज पहन के, सेहरे नहीं लिखती।
इस तल्ख जमाने ने इतनी ठोकरें मारीं,
अब देखकर तेरे कदम, सजदे नहीं लिखती।
रेत के टीले पे जा के देखिये, वो
कल्पना की मृगतृषा रचते रहे हैं।
वो न इन अश्कों से भीगेंगे कभी भी,
जिनके मन पर-पीर से बचते रहे हैं।
गगन में इंद्रधनुष बन जाता
जिसे देखना मन को लुभाता
धरती पर छाई हरियाली
जिसे देख फूला है माली
हरित तृणों पर चमके मोती
जगमग जगमग आभा होती
झूलों की फिर आई है बारी
झूले है वृषभानु की दुलारी
छा रहा है घोर अंधेरा जहाँ पर बादलों का,
डूबता है कर्म का सूरज जहाँ पर जिंदगी का,
हौसला है बस तेरा एक शस्त्र सूरज उदित करना।।
पथ प्रदर्शन ..............
"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द ΜΊΜΗΜΑ; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.
अपने तक सीमित मत रहिये...
जो अन्याय और अत्याचार आज किसी और के साथ हो रहा है, कल को वो आपके साथ भी हो सकता है । हमेशा याद रखिये ! पड़ोसी के घर में आग लगी देखकर भी आज आप निश्चिन्त बैठे है तो लपटे कल को आपके घर भी पहुंच सकती है ...
हम-क़दम के तीसवें क़दम
का विषय...
आज के लिए बस इतना ही।
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार।
कल की चर्चाकार हैं - आदरणीया श्वेता सिन्हा जी।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात भाई रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंअच्छा चयन..
आभार
सादर
मीडिया रिपोर्टिंग पर विचार करें या व्यवस्था के भ्रष्टाचार पर.....?
जवाब देंहटाएंसबका पेट कितना बड़ा कि भरता नहीं
अब तो समुन्दर भी भरने लगा है
सराहनीय संकलन
बढ़िया हलचल प्रस्तुति रवींद्र जी ।
जवाब देंहटाएंरवींद्र जी, आभार, सुन्दर प्रस्तुति,इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक्सप्रेस वे की हड़कम्प हलचल का ब्यौरा देती सार्थक प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार।
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