सादर अभिवादन...
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली
मैं नीर भरी दुख की बदली
------------- महादेवी वर्मा
इन पंक्तियों में छुपा सार संपूर्ण जीवन दर्शन है।
जीवन से मनुष्य का परिचय शिशु के रुप में होता है, उस शिशु का सर्वप्रथम परिचय माँ की गंध से होता है। धीरे-धीरे जीव सासांरिक स्वरुप से गंध और स्पर्श द्वारा,अचेतन से चेतनावस्था में
प्रवेश करते समय परिचित होता है।
बतायी गयी,समझायी गयी और स्वयं की तार्किक बुद्धि द्वारा मन का, किसी जीव के
बाह्य स्वरूप को पहचानना परिचय कहलाता है। किसी व्यक्तित्व के अच्छे-बुरे स्वरूप
को जानना उस जीव के आंतरिक रुप से परिचित होना कहलाता है।
परिचित वह है जिसके अंतर्मन के भावों को आप पहचानते है।
छोड़िये मेरी दार्शनिक परिभाषा को।
साधारण शब्दों में कहूँ तो
चिर-परिचित व्यक्तित्व
परिचित कहलाते हैं।
हमारे इस सप्ताह के विषय
"परिचित"
पर हमारे प्रिय रचनाकारों द्वारा रची गयी
अद्भुत रचनाओं का आप भी आनंद
लीजिए।
★★★
आदरणीया कुसुम कोठारी
जब आंख खोली सब अजनबी थे
न था कोई परिचित ,सभी तो अजनबी थे
पहले पहल एक अद्भुत हल्की
महक लगी परिचित
मां की महक
अंजान हाथ जब छूते
तन को लिये स्नेह अपार
★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान
मैं हूं अपरिचित तेरे रूप से
जानती हूं बस कि इतना
तू है यहीं कण - कण बसा
सृष्टि के हर रूप में
ये चमकते चांद-तारे
उदित दिनकर भुजा पसारे
ये चहकते पंछी सारे
तेरे रूप का विस्तार हैं
★★★
आदरणीया आशा सक्सेना
बस मेरी बनी यही पहचान
श्रीमती हैं घर की शान |
अब मैं भूली अपना नाम
माँ की बिटिया ,गुरु की शान
उनकी अपनी प्यारी पत्नी
अब तो बस इतनी ही है
मेरी अपनी यह पहचान
बनी मेरी अब यही पहचान |
★★★
आदरणीया अनुराधा चौहान
यह जिंदगी ही है
जो कराती सबका परिचय
इस सुंदर दुनिया से
यह जिंदगी मुझे मिली
मेरा मुझ से परिचय हुआ
मुझे एक नाम मिला
इस दुनिया से परिचय हुआ
बड़ी कमाल है जिंदगी
★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान
तीज-त्योहार भी ऐसे आते
मिलकर सब एक घर हो जाते
अब तो सब औपचारिक है बस
सभी बंध गए दायरों में बस
बदल गई हैं सब रीत पुरानी
जिनसे परिचित थी अंजानी
बदल गई अब जीवन शैली
★★★
आदरणीया साधना वैद जी
कर दिया तूने मुझे परिचित
कठिन उस राह से
जिसमें केवल ठोकरें थीं,
कष्ट थे और शूल भी
कर लिए स्वीकार मैंने
जान कर तोहफा तेरा
वरना मेरी राह में
खुशियाँ भी थीं और फूल भी !
★★★
आदरणीया साधना वैद जी
अभी तक समझ नहीं पाई कि
भोर की हर उजली किरन के दर्पण में
मैं तुम्हारे ही चेहरे का
प्रतिबिम्ब क्यों ढूँढने लगती हूँ ?
हवा के हर सहलाते दुलराते
स्नेहिल स्पर्श में
मुझे तुम्हारी उँगलियों की
चिर परिचित सी छुअन
क्यों याद आ जाती है ?
★★★
और चलते -चलते आदरणीया रेणु जी की रचना
पुलकित हो प्रीत - प्रांगण में
हो निर्भय मैं विचरूं,
भर विस्मय में तुम्हे निहारूं
रज बन पथ में बिखरूं ;
हुई खुद से अपरिचित सी मैं -
यूँ तुझमे हुआ विलय मेरा !!!!!!!!
★★
आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।
अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ
-श्वेता सिन्हा
★★
आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।
अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ
-श्वेता सिन्हा
शुभ प्रभात सखी...
जवाब देंहटाएंअपरिचित विषय था
फिर भी लोगों ने लिखा
साधुवाद
सादर
सादर आभार आपका आदरणीया श्वेता जी मेरी
जवाब देंहटाएंरचनाओं को स्थान देने के लिए । बहुब ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
बेहतरीन रचनाएं सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन सुन्दर प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हमकदम अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी परिचित विषयक हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक और नवसृजन और सुंदर प्रस्तुति के लिए श्वेता जी को बधाई.. सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हमकदम की माला में एक और नायाब मोती....अति सुंदर परिचय
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई
महादेवी जी की अमर पंक्तियाँ, जैसे द्वार पर बंधा सुरभित सुमनों का बन्दनवार, बहुत मनभावन भुमिका सुंदर लिंक चयन सभी रचनाकारों को बधाई मेरी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंपरिचय की विस्तृत बहार ...
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी का चिरपरिचित परिचय सोने पे सुहागा ...
आज दिन भर इंटरनेट बाधित रहा ! विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! बहुत ही सुन्दर सार्थक रचनाओं का संकलन आज का यह अंक ! मेरी रचनाओं को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों का हृदय से अभिनन्दन एवं सबको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता -- भूमिका में परिचय पर परिचय का लघु निबंधात्मक परिचय बहुत ही सुंदर है | परिचय या आम भाषा में कहें जान पहचान या किसी को जानना ही परिचय है | ये किसी की पहचान का प्रथम सोपान है और इन्सान के भावनात्मक पक्ष को दर्शाता है | इसको सराहनीय ढंग से परिभाषित किया आपने | वांग्मय की देवी साक्षात् माँ शारदे महादेवी वर्मा की अमर पंक्तियों ने भूमिका की शोभा को चार चाँद लगा दिए हैं |सराहनीय भूमिका के लिए आपको बधाई देती हूँ | सभी रचनाकारों ने परिचय पर बहुत ही मौलिक लेखन का परिचय दिया | मेरी रचना शामिल की गयी मंच के प्रति हार्दिक आभार | सभी सह्ह्योगी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाये | |
जवाब देंहटाएं"परिचित" को परिभाषित करती ज्ञानवर्धक भूमिका. महान कवियत्री महादेवी वर्मा जी की अमर प्रतिनिधि पंक्तियाँ सोने पे सुहागा....चर्चाकार से लेकर सभी प्रतिभागी रचनाकार अपनी विशिष्ट छाप छोड़ते हैं.
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति , सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएं