जय मां हाटेशवरी......
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं.....
स्वागत है आप सभी का.....
पेश है मेरी पसंद के कुछ चुने हुए लिंक.....
भूख ने रुप बदल लिया
चांद को वे समझाने में लगे
कि रोटी गोल है
इस तरह कुछ
सुबहें , भी थकी मिली
कही हाथ, तो कही पैर
न जाने कितनों के घरों में
बिखरा पडा था 'मैं॑॑॑ '!!!
ये मौसम क्यों नही बदल जाता ...!!!
दूर से ही सही कोई साथ होता ,
रगों मैं खुश एहसास होता .
डरी -डरी अंगुलिया हिम्मत जुटाती ,
जुबा कहते कहते लड़खड़ाती .
गर्म साँसे फिर भारी हो जाती .
हाय फिर कोई दामन बचाता,
ये मौसम क्यों नही बदल जाता .......
बहन का धागा भाई का विश्वास
भाई सरहद पर लड़े ,रख कर देश की आन।
बहिना की राखी मिली ,बांध कलाई शान।
सूना सूना सा लगे ,बिन बहना के पर्व।
काश बहिन होती यदि ,मैं भी करता गर्व।
एक वसीयत मेरी भी ....... निवेदिता
फूलों के अथाह रंग हों
खुशबू से मदहोश हो जाऊँ
किताबों से घिरे इस घने से
जंगल में बस गुम हो जाऊँ
एक वसीयत मेरी भी .......
हुजूम ...
मेरे बाप की जागीर है, पैसा है
अब, मैं उससे ..
आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ
तुम्हें क्या ?
आशाएँँ " (लघु कविताएँ)
डाल से विलग पत्ती
ब्याह के बाद बेटी
अपनों से बिछड़
गैर सी आंगन में खड़ी
दिल में कसक
लबों पे मुस्कुराहट
दृगों में नमी और
गुम वजूद की चाहत
दलित एक्ट, आरक्षण, वोटबैंक और संवैधानिक शोषण
वोट बैंक की राजनीति देखिए कि जब सुप्रीम कोर्ट अपने अनुभव से कहता है कि दलित एक्ट का 95% दुरुपयोग हो रहा है और निर्दोष क्यों लोग सताए जा रहे हैं और इस में जांच कर गिरफ्तारी हो तो वोट के लिए सत्ताधीश विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल देते हैं! अब जब सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है कि आखिर यह आरक्षण कब तक रहेगा और एक IAS के बेटे और पोते को आरक्षण क्यों दिया जाना चाहिए तब इस पर भी वोट बैंक की राजनीति शुरु हो गई है!
तब इस गैर बराबरी का परिणाम अंबेडकर की जताई आशंका के अनुरूप एक दिन क्यों उत्पन्न नहीं होगा? एक दिन ऐसा आएगा जब इस गैर बराबरी की वजह से भारत का लोकतंत्र खतरे में पड़ेगा...?
इंसान
उदासी को समेट कर
रख दो ऐसी जगह
जहां से वो दिखे ही न
और आंसुओं को
खुशी से वाश्प
बना उड़ा दो
और लग जाओ
जीवन को जीने में
अब बारी है हम-क़दम की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का चौंतीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
'बैरी'
...उदाहरण...
बह गया
रिम-झिम, रिम-झिम,
गहन घन-संताप
सजल हुआ बैरी उर फिर
सुनकर क्यूँ मेघ मल्हार ?
-दीपा जोशी
उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है
अंतिम तिथिः शनिवार 01 सितम्बर 2018
प्रकाशन तिथि 03 सितम्बर 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
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धन्यवाद।
शुभ प्रभात भाई
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति मे जान है
आभार
सादर
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुतीकरण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी लिंक्स बेहद खूबसूरत । मेरी रचना को संकलन में स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपका ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुलदीप जी बहुत ही जानदार रचनाओं से सजा आज का संकलन बेहद उम्दा है।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत ही सुंदर संकलन ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन, सुंदर भुमिका, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचनाओं का आनंददायी संकलन प्रस्तुत करने के लिये कुलदीप जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनायें.
सुप्रभात कुलदीप जी।इतनी सुंदर रचनाओ से अवगत कराने के लिए धन्यवाद।सभी links बहुत ही मनमोहक हैं और काबिले तारीफ हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
नमस्कार