इस युग में भी होता है युद्ध.....
कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है.
दोनों ओर शकुनि का फैला कूटजाल है..
धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है.
हर पंचायत में आज भी पांचाली अपमानित है..
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,
कोई राजा बने, रंक को तो रोना ही रोना है..
चलिए चलें रचनाओं की ओर...
ये जो उलझनें हैं जीवन की
मुझे इनके पार जाना है
कुछ पाने की चाहत है
कही दूर खो जाना है,
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
मेरा मन भारी था,
पर कोई चारा नहीं था,
दोनों जूते एक दूसरे पर
इतने निर्भर थे
कि एक के बिना दूसरे का
कोई अस्तित्व ही नहीं था.
सम्पाती समुद्र तट पर आ पसरने वाले जिस समूह को अपना प्रभू-प्रदत्त भोजन समझ कर लपक रहा था, वह कोई मामूली वानर दल नहीं था ! यह रावण द्वारा सीता हरण के पश्चात उनकी खोज में जामवंत, हनुमान तथा अंगद जैसे महावीरों के नेतृत्व में निकली वह वानर सेना की टुकड़ी थी, जो हफ़्तों पहाड़ों, बियाबानों की ख़ाक छानने के बाद भी सीता माता का कोई सुराग न मिल पाने के कारण हताश-निराश, हारी-थकी यहां पहुंची थी..........!
परेशां ज़िन्दगी किस कदर हो गयी
जुबा तुम्हारी जबसे नश्तर हो गयी,
वक़्त की दौड़ ने चेहरे मेरे सुखा दिया
उम्र 30 में जाने कैसे सत्तर हो गयी,
मन्नत....उपासना सियाग
दादी रोज मंदिर जाती और अपने परिवार की खुशियाँ , सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना कर आती। और सोचती कि प्रभु से माँगना क्या ! उसको तो सब पता ही है। लेकिन कल से सोच में डूबी है। कल जब वे रोज़ की तरह दोपहर में धार्मिक चैनल पर प्रसारित होती भागवत कथा सुन रही थी तो उसमें , कथा वाचक बोल रहे थे , " एक गृहस्थ को ईश्वर की पूजा सकाम भाव से करनी चाहिए।
उलूक टाईम्स के पन्नें में
मुंगौड़ी बाँध कर लाया, मुंगौड़ी खाने के बाद पन्ने को
सीधा कर के पढ़ा....
तो ये खबर छपी हुई थी
जय
जय होगी
बस
जय होगी
‘उलूक’
बिना दिमाग
झूठ देख कर
सच है
सच है
यही सच है
यही सच है
आदेश दें...
देवी जी के दांत में दर्द है...
दवा के बाद आराम से है
.....
आज्ञा दें..
दिग्विजय ..
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
लाज़वाब।
जवाब देंहटाएंसभी link शानदार हैं।
मुझे भी स्थान देने के लिए।आभार
अमरूद के पत्तों को उबालकर ठंडा करलें फिर कुल्ला करें दांत दर्द कम हो जायेगा। अब उल्लू अखबार निकालेंगे तो ऐसा ही कुछ नजर आयेगा कोई अखबार मोड़ कर उसमें मुंगौड़ी खायेगा कोई पकौड़े बेच ले जायेगा। कोई नहीं अब जब रोजगार करना ही है तो अखबार की कुर्बानी ही सही। :) :) :)
जवाब देंहटाएंआज की सुन्दर हलचल में 'उलूक' के अखबार के पुराने पन्ने को मुंगौड़ी की दुकान से लाकर चर्चा में लगाने के लिये आभार दिग्विजय जी ।
सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सुंदर रचनाओं का संकलन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुंदर संकलन सुंदर प्रस्तुति अच्छी भुमिका के साथ ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।
धन्यवाद।
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