में होता और मस्तिष्क सक्रिय होता है, तब कुछ ऐसे विचारों का
ताना-बाना बुनना जो यथार्थ और कल्पना के मिश्रण से उकेरा
गया हो यही ख़्वाब,स्वप्न, या सपना कहलाता है।
पर सच तो ये है कि यथार्थ में होने वाले असंतोष या भय से मन की
कुछ आकांक्षाएँ पूर्ण नहीं हो पाती हैं ,कुछ इच्छाएँ जो वास्तविक परिस्थितियों की वजह से मन के भीतर ही आकार तो लेती हैं पर
पनप नहीं पाती है इन्हीं छवियों का काल्पनिक संसार ख़्वाब कहलाता है।
जिसे खुली आँखों का ख़्वाब कहा जाता है।
सबको देखना ही चाहिए और उसे पूरा करने का सफल
प्रयत्न भी करना चाहिए।
ख़्वाब की ओर चलते है।
आदरणीय डॉ. सुशील सर की पसंद
रंगी को नारंगी कहे, बने दूध को खोया
चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया…
दो रचना भी है..
उलूक टाईम्स से
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ऎ चांद अपनी
चाँदनी और सितारों
के साथ कभी तो
मेरे ख्वाबों में भी आ
भंवरों की तरह
मुझ से भी कभी
फूलों के ऊपर
चक्कर लगवा
खुश्बू से तरबतर कर
धूऎं धूल धक्कड़
सीवर की बदबू से
कुछ देर की सही
राहत मुझे दिला
-*-*-*
हमारा मान रखा आदरणीय डॉ. सुशील सर ने
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लिख और
बस थोड़ी सी देर रुक
फिर उस लिखे से
मिलने वाले अजाब पर लिख
किसी ने
नहीं कहा है
फिर से सोच ले
‘उलूक’
एक बार और
ख्वाब पर
लिखने के बहाने भी
अपनी रोजमर्रा की
किसी भड़ास पर लिख ।
-*-*-*-
एक ग़ज़ल आदरणीय दिग्विजय सर की पसंद की
चेहरा है जैसे झील में हँसता हुआ कँवल
या ज़िन्दगी के साज पे छेड़ी हुई ग़ज़ल
जान-ए-बहार तुम किसी शायर का ख़्वाब हो
चौदहवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम लाजवाब हो
चौदहवीं का चाँद हो
तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती, तस्वीर नहीं बनती
एक ख्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती, तस्वीर नहीं बनती
तस्वीर बनाता हूँ ...
आदरणीय कुसुम कोठारी जी
क्या है जिंदगी का फलसफा
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कभी नर्म परदों से झांकती
खुशी सी जिंदगी
कभी तुषार कण सी
फिसलती सी जिंदगी
कभी ख्वाबों के निशां
ढूंढती जिंदगी
कभी खुद ख्वाब
बनती सी जिंदगी
-*-*-*-
आदरणीया सुप्रिया पाण्डेय जी का पसंदीदा गीत
ख्वाब बनकर कोई आएगा तो,नींद आएगी
अब वही आकर सुलायेगा तो नींद आएगी,
नरम जुल्फों की महक ,गरम बदन की खुश्बू
चुपके चुपके वो चुराएगा तो नींद आएगी
-*-*-*-*-
आदरणीय अनुराधा चौहान जी
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कुछ ख्वाब बुनती हूं
कुछ ख्वाब लिखती
कुछ ख्वाब अधूरे
आज भी जिंदा है
स्मृति पटल पर
खलल डालते रहते
-*-*-*-*-
आदरणीया अनुराधा चौहान जी
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ख्वाब कभी मरते नहीं
दब जाते हैं बोझ से
कभी जिम्मेदारी
तो कभी दूसरों के ख्वाब तले
बहुत भाग्यशाली होते हैं
-*-*-*-*-
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी की लेखनी से
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हूं ख्वाब मैं,
तू मेरी ही पुकार,
नींद मैं,
तू सपन साकार!
ठहरा ताल मैं,
तू नभ की बौछार,
वृक्ष मैं,
तू बहती बयार!
-*-*-*-*-
आदरणीय साधना दीदी
दो रचनाएँ
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अब तक जिन ख़्वाबों के किस्से तहरीरों में ज़िंदा थे ,
क़ासिद के हाथों में पड़ कर पुर्ज़ा-पुर्ज़ा हो गये !
अब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है ,
जो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !
आदरणीया साधना जी की लेखनी से
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कल रात ख्वाब में
मैं तुम्हारे घर के कितने पास
पहुँच गयी थी !
तुम्हारी नींद ना टूटे इसलिये
मैंने दूर से ही तुम्हारे घर के
बंद दरवाज़े को
अपनी नज़रों से सहलाया था
और चुपके से
अपनी भीगी पलकों की नोक से
उस पर अपना नाम उकेर दिया था !
-*-*-*-*-
आदरणीया रेणु जी का पसंदीदा गीत
कहीं बेख्याल हो के यूँ ही छू लिया किसी ने -
कई ख़ाब देख डाले यहाँ मेरी बेखुदी ने -
मेरे दिल में कौन है तू के हुआ जहाँ अन्धेरा
वहीँ सौ दिए जलाए -तेरे रुख की चांदनी ने -
-*-*-*-*-
आदरणीय सुप्रिया रानू जी की रचना
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एक पहल करनी है बस ऐसे सारे दबे
अधमरे ख्वाबों को मौको का ऑक्सीजन देना है,
और उन्हें जीवित करना है आज़ाद करना है
हमेशा के लिए खुले
आसमान में उड़ने को
और तब बन जाएंगे जीवन
ये महज़ ख्वाब हमारे...
-*-*-*-*-
आदरणीय आशा सक्सेना
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थकी हारी रात को
जब नयन बंद करती
पड़ जाती निढाल शैया पर
जब नींद का होता आगमन
स्वप्न चले आते बेझिझक !
यूँ तो याद नहीं रहते
पर यदि रह जाते भूले से
मन को दुविधा से भर देते
-*-*-*-*-
आदरणीया यशोदा दीदी का पसंदीदा नगमा
देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए
दूर तक निगाहों में हैं गुल खिले हुए
ये ग़िला है आप की निगाहों में
फूल भी हों दर्मियां तो फ़ासले हुए
देखा एक ...
-*-*-*-*-
आदरणीया मीना शर्मा जी कीी लेखनी से
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कभी कभी एक गीत
मेरे ख्वाबों में आता है
बिखेरता है गुलाबों की खुशबू,
मन के हर कोने में !
बाँसुरी की मीठी तान सा
कानों में शहद घोल जाता है !
-*-*-*-*-
आदरणीय अपर्णा वाजपेई जी
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बस एक ख़्वाब था छू ले कोई ,
सहला दे ज़रा इन ज़ख्मों को
इक लम्हा अपना दे जाये और
बाँट ले मेरे अफ़सानों को।
*-*-*-*-*
आदरणीय विश्वमोहन जी की पसंद का गीत
ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
-*-*-*-*-
और चलते-चलते एक गीत मेरी पसंद का सुनिये
ऐ दिल मुझे बता दे, तू किस पे आ गया है
वो कौन है जो आकर, ख्वाबों पे छा गया है
मस्ती भरा तराना, क्यों रात गा रही है
आंखों में नींद आकर, क्यों दूर जा रही है
दिल में कोई सितमगर, अरमां जगा गया है
*-*-*-*
अलग रंग से सजा आज का यह अंक आपको कैसा लगा
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा
अवश्य हमारा मनोबल बढ़ाए।
अगले सोमवार फिर से हाज़िर होंगे एक नये विषय के
साथ आप सभी की रचनात्मक कृतियों को लेकर।
-श्वेता
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंआप सभी के श्रम को नमन
ब्लॉग जगत में पहले भी ऐसे प्रयास हुए हैं
आभार
सादर
वाह वाह और बस वाह ही वाह। आज की इस संगीतमय और भावपूर्ण प्रस्तुति है असीम बधाईयां । मुझे गौरव है आज की इस प्रस्तुति का एक हिस्सा मैं भी बन सका। धन्यवाद आदरणीय पम्मी जी और आदरणीय श्वेता जी। धन्यवाद समस्त हलचल टीम।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात,अद्भभुत संकलन,मन झूम उठा,इस रचनात्मक संकलन के लिए हलचल की पूरी मंडली को आभार शुभकामनाएं,मन तरो ताजा हो गया, मेरी पसंद और मेरी कोशिश को एक कोना देने के लिए हृदय से आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंशानदार हलचल प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंगज़ब
जवाब देंहटाएंतस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती, तस्वीर नहीं बनती
जवाब देंहटाएंएक ख्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती, तस्वीर नहीं बनती
आज तो इतनी सुंदर रचनाएं हैंं कि पहले किसे पढ़ा या सुना जाए, इस सोच में पड़ गया मैं।
सच मे, गज़ब! और भूमिका तो 'सोने में सुहागा' से भी ज्यादा ' सोने में सपना'!
जवाब देंहटाएंकाफी मेहनत की गयी है दिख रहा है और समय भी दिया है। साधुवाद श्वेता जी। आज हमकदम की सोमवारीय इंद्रधनुषी पेशकश में 'उलूक' की दो दो कतरने और मुकेश के लाजवाब गीत को भी जगह दी है आभार आपका दिल से।
जवाब देंहटाएंवाह!!!!श्वेता, ,्खू्बसूरत सुरों से सजी प्रस्तुति ...!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब भूमिका!!
आभार...
जवाब देंहटाएंपसंदीदा ग़ज़ल सुनवाने के लिए...
रचनाएँ जबरदस्त...
अब श्रमबिन्दु पोंछ लीजिए....
सादर..
वाह!!बहुत बढिया..संगीतमय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब संकलन श्वेता जी
धन्यवाद
अरे वाह ! अत्यंत अद्भुत एवं अनूठी प्रस्तुति ! मेरी दोनों रचनाओं को स्थान देने के लिए हृदय से धन्यवाद एवं आभार ! यह तो मालूम ही नहीं था कि अपनी पसंद का गीत भी बता सकते हैं वरना हम भी पीछे नहीं रहते ! चलिए शामिल चाहे न हो सके लेकिन बता तो दें ही ! "मैं तो एक ख्वाब हूँ इस ख्वाब से तू प्यार न कर !" इतनी सुरमयी साहित्यिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्वेता जी ! आपको भी और आपकी पूरी टीम को भी ! दिल से धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल-सह दिलकश फ़िल्मी नज़्मों की शानदार प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआज की इस संगीतमय शानदार प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआज की हलचल बिल्कुल अलहदा सी ...👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंशानदार हलचल प्रस्तुति सभी रचनाकारों की शानदार रचनाएं :(
जवाब देंहटाएंसबसे पहले इस प्रस्तुति पर दिख रही अथक मेहनत पर साधुवाद, ख्वाब का विस्तृत वर्णन देती अप्रतिम भुमिका पर बहुत सा आभार, और जानदार शानदार नगमे और गजल का तोहफा भूली बिसरी यादेंं सब फिर ताजा हो गई।।
जवाब देंहटाएंसबसे आश्चर्य का विषय की पिछले 3 दसक का कोई गीत नही हालाकि काफी नगमे ख्वाब पर हैं खैर… बहुत सुंदर रचनाओं का सजता संवरता ख्वाब मेरी रचना का चयन करने के लिये सादर आभार सभी रचनाकारों को बधाई ।
सार्थक पृष्ठभूमि के साथ गुनगुनाती प्रस्तुति . बेहतरीन .
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संकलन। साहित्य और संगीत को जोड़ने की इस बेजोड़ कल्पना को कार्यरूप देना अत्यंत श्रमसाध्य एवं समय लेनेवाला कार्य रहा होगा ये तो दिख ही रहा है। इस अंक के लिए सभी चर्चाकारों को एवं श्वेताजी को विशेष बधाई। मेरे ख्वाब को भी अपने ख्वाबों में शामिल करने के लिए हृदयतल से आभार। बेहद अनूठी प्रस्तुति रही आज की। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंख़्वाब पर प्रभावशाली रसमय प्रस्तुति. बधाई आदरणीया श्वेता जी. एक ही विषय पर अलग-अलग दृष्टिकोण रचनाधर्मिता के नये आयाम प्रदान करते हैं. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंभूमिका में बिषय को परिभाषित करते हुए नवीनता का एहसास पाठक को आनन्द से भर देता है.
प्रिय श्वेता -- आजकी इस सुरों और शब्दों से सजी प्रस्तुति के लिए जितनी सराहना करूं उतनी कम है | आज सारा दिन सहयोगियों की पसंद के गीत सुने जिन्हें सुनकर अपार आनन्द और अपनेपन की अनुभूति हुई | हैरत हई कि इनमे से एक भी गीत ऐसा नहीं था जो मुझे पसंद ना हो | प्रिय कुसुम बहन की पसंद के माध्यम से अपने पंसदीदा तलत महमूद के मधुर गीत को एक अरसे बाद सुन बहुत अच्छा लगा | और मैं भी पहले आदरणीय सुशील जी द्वारा भेजा गया गीत ही भेजने वाली थी पर एन मौके पर मेरा इरादा बदल गया और तीन देवियाँ का अपना ये प्रिय गाना भेज दिया | आदरणीय विश्वमोहन जी ने भी उसी फिल्म का दूसरा गाना भेजा तो आज देख कर सुखद आश्चर्य हुआ | कुल मिलाकर बहुत ही आनन्दमयी और कौतूहलपूर्ण प्रस्तुती रही | बहन साधना जी की तरह जिन को ये मलाल रहा कि किसी कारण उनकी पसंद शामिल नहीं हुई मेरा विनम्र आग्रह है कि उनके लिए ऐसे अंक बार बार आयें | एक दो अंक अपनी कविता वाचन का भी किया जाये जिससे रचनाकारों के मुखारविंद से उनकी रचनाएँ सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो | ख़्वाब पर रचनाएँ भे बहुत अच्छी रही | सभी सहयोगी रचनाकारों को हार्दिक बधाई | और इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बस आप को मेरा बहुत- बहुत प्यार |
जवाब देंहटाएंवाह , वाह , गज़ब प्रस्तुति प्रिय श्वेता जी , सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएं