कल मित्रता दिवस था......
शायद अब सच्चे मित्रों के उदाहरण भी नहीं मिलते.....
लगता है...मित्रता काये पावन रिश्ता भी खतरे में है.....
इसी लिये आवश्यक्ता पड़ी होगी.....
इस रिश्ते को बचाने के लिये.....
एक दिवस की.......
आज के सुदामा तो सोच भी नहीं सकते......
अपने बचपन के मित्र कृष्ण से मिलने की भी.....
इसी लिये मुझे अच्छी लगती है.....
ये पौराणिक कहानियां......
....इन में वो सब कुछ है......
...जिस का आज अस्तित्व ही मिट चुका है.....
अब पेश है...मेरी पढ़ी हुई चंद रचनाएं....
भीड़ में थे जब अकेले,तन्हा दोस्तों को साथ अपने खड़ा पाया
कुछ सुनी उनकी कुछ कहा हमने उनसे
जिंदगी का भरपूर हमने लुफ्त उठाया
वो दोस्त ही थें जिनको हरदम साथ खड़े पाया
वरना रिश्तों की तो ठेरो हर साँस हमने दरकते पाया
दोस्ती हमारी
लड़ते थे झगड़ते थे
मान भी झट से जाते थे
वो दोस्त ही थे
जिनके साथ हम बेफिक्र
जिया करते थे
माँ कभी छोड़ के जाती है क्या ?
माँ की स्मृति को
अलमारी में मत सहेजना ।
उनकी एक-एक बात को
अपने आचरण में
जीवित रखना ।
बंदी से
मुक्त होना चाहते हो,
तो साहस करो,
ज़ोर की आवाज़ के साथ
तोड़ दो किवाड़,
निकल जाओ यहां से
सीना तान के,
पहरेदार सोने का
नाटक करते रहेंगे।
जाने कौन है वो - -
इतनी भी
दूरी
ठीक नहीं ये सच है कि मशीन
हैं सभी, किसी बहाने ही
सही ग़लत नहीं
रखनी जान
पहचान।
मित्र
कुछ उजियारा कर जाते हैं,
कुछ खुद में ही जल जाते हैं।
कुछ अंतिम पग तक साथ चलें,
कुछ समय से निकल जाते हैं॥
कुछ ‘भोर’ में साथ निभाते हैं,
कुछ निशा समय ही आते हैं।
धीरे धीरे
नई दरख्त पर
एहसास लिपटें
धीरे धीरे
चल देते साथ गर
शब्द शब्द
तन्हाई खाक होती
धीरे धीरे !
आज बस इतना ही.....
अंत में.....
वह तो मैं ही था कि
बच गया किसी तरह
तुम्हारे प्रेम-पत्रों की नाव बना कर;
वह तो तुम ही थी कि
बच गई किसी तरह
मेरे प्रेम-पत्रों के चप्पू चला कर।
समस्या यह है कि अब हम
अर्घ्य किसे देंगे
प्रतिदिन?
अब अगले सप्ताह का विषय
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम का इक्तीसवाँ क़दम
इस सप्ताह का विषय है
'शहीद'
...उदाहरण...
दरवाजे की चौखट पर
राह तकती, वो दो निगाहें,
अपनी सिलवटों का दर्द बयां कर रही है,
हर लम्हा पदचाप की सुधियां तलाश रही हैं।
कलेजा हथेली पर, सांसे घूमी-फिरी सी,
तारीखें मौन पसराए,आशाओं में झुरझुरी सी।
सूखे आंसू और दिल हाहाकार कर रोता है,
जब तिरगें में लिपटा,
किसी जवान का ज़नाज़ा होता है !!!
-निशा माथुर
उपरोक्त विषय पर आप को एक रचना रचनी है
अंतिम तिथिः शनिवार 11 अगस्त 2018
प्रकाशन तिथि 13 अगस्त 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के
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धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
आभार
सादर
सस्नेहाशीष
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
वाह अनुपम ओर सराहनीय भी ...👍
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति श्रेष्ठ रचनाओं के साथ!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन एवं भावपूर्ण संकलन सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत संकलन । सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंयदि कृष्ण होते तो अवश्य
जवाब देंहटाएंसुदामा उनसे मिल पाते !
कृष्ण तो कृष्ण हैं,
हम सुदामा भी नहीं बन पाते.
कुलदीप जी, आभारी हूँ.
मित्रता भी एक साधना है.
पहले अपने भीतर
सुदामा को खोजना है.
फिर जाकर
कृष्ण को पाना है.
सभी को बधाई !
उम्दा संकलन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति बेहतरीन संकलन , सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुलदीप जी -- आपके द्वारा संयोजित बेहतरीन लिंक बहुत अच्छे लगे | और भूमिका में आपने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही कि दोस्ती जैसा पावन रिश्ता खतरे में है | हालाँकि अच्छेदोस्तों और लोगों की कमी नहीं पर फिर भी भौतिकवाद ने दोस्ती क्या हर रिश्ते की महिमा को पूर्ववत नहीं रहने दिया है | कृष्ण और सुदामा के रिश्ते का कहाँ कोई सानी है ? पर फिर भी दोस्ती जैसा रिश्ता दुनिया में कोई और नहीं जिस में हम अपने मन का सारा बोझ हल्का कर उचित मार्गदर्शन और निस्वार्थ प्रेम की उमीद रख सकते हैं | आपको हार्दिक बधाई और सभी रचनाकारों को भी ढेरों शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन एवं बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय कुलदीप जी की। सभी रचनाकारों को सादर बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन समेटे सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।
मित्र तो जीवन धारा है बिन सखा जीवन एक बेजान सी सूखी नदी की भांति हो जाती हैं जिसमें न कोई उमंग न तरंग होती हैं
जवाब देंहटाएंआज का संकलन लाजवाब है कृष्णा-सुदामा की मित्रता की तरह