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मंगलवार, 1 मई 2018

1019....हर पल अहसास होता है आप यहाँ ही हों जैसे,


जय मां हाटेशवरी.....

यू तो दुनिया में सदा रहने कोई नहीं आता है!
आप जैसे गए  इस तरह कोई नहीं जाता है!
हर पल अहसास होता है
आप यहाँ ही हों जैसे,
काश ये हो जाये मुमकिन
मगर ये मुमकिन हो कैसे?
कल 30 अप्रैल था.....
पूजनीय पिताजी के बिना......
ये एक वर्ष कई वर्षों से भी लंबा लगा.....
उनके बिना....माताजी का स्वास्थय भी ठीक नहीं रहता......
इस कारण बीते मंगलवार प्रस्तुति नहीं दे सका.....
अब पेश है....कुछ पुराने लिंक.....

राह तुम्हारी  तकते  - तकते ----------  कविता --
राह तुम्हारी तकते - तकते----------------कविता --
दुनिया को बिसरा कर दिल ने-
सिर्फ तुम्हे ही याद किया ,
हो चली  दूभर जब तन्हाई
तुमसे मन ने संवाद किया ;
 पल भर को  भी मन की नम आँखों से
ना हो पाये तुम ओझल साथी ! !

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मानस की प्रस्तावना
किसी भी ग्रंथ के प्रारम्भ की पंक्तियाँ उसमें अंतर्निहित सम्भावनाओं एवं उसके उद्देश्यों को इंगित करती हैं . कोई यज्ञ सम्पन्न करने निकले पथिक के माथे पर माँ के हाथों लगा यह दही अक्षत का टीका है जो उस यज्ञ में छिपी सम्भाव्यताओं की मंगल कामना तथा उसके लक्ष्यों की प्रथम प्रतिश्रुति है . दुनिया के महानतम ग्रंथों
में शुमार महाकवि तुलसीदास विरचित रामचरितमानस एक लोक महाकाव्य है जो जन जन के  होठों पर अपनी पवित्र मीठास लिये चिरकाल से गुंजित है और अनंत पीढियों तक श्रद्धा और विश्वास की अमर रागीनियाँ बिखेरता रहेगा .

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मुक्तक
न दिल में ज़ख्म न आँखों में ख्वाब की किरचें ,
फिर किस गुमान पर इतने दीवान लिख डाले ,
तमाम उम्र जब इस दर्द को जिया मैंने ,
तब कहीं जाके यह छोटी सी ग़ज़ल लिखी है ।


ढ़हती मर्यादाएँ
ढहती रही उच्च मर्यादाओं की स्थापित दीवार!
करते रहे वो मानदण्डों का उल्लंघन,
भूल गए है छोटे-बड़ों का अन्तर,
न रिश्तों की है गरिमा, न रहा लोकलाज,
मर्यादा का आँचल होता रहा शर्मसार!


मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो.....नीतू ठाकुर
मेरी कविता,मेरी रचना तू मेरा संसार है,
तूने मेरा चयन किया है ये तेरा उपकार है,
 
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ? 


देखते देखते
होते हैं रोज़ मोज़िजा कैसे कैसे प्यार में
खुशियाँ बनने लगी हैं अलम देखते देखते
इक बार जो आई नदीश लब पे तबस्सुम
बढ़ते गए ज़िन्दगी के सितम देखते देखते
-0-0-0-0-0
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम  सत्रहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: इन्तजार ::::
:::: उदाहरण ::::
गर आने वाला हो महबूब...
तो सुहाता है इंतज़ार!!

तन्हाई में भी अक्स उसी का,
दिखलाता है इंतज़ार।

क्या होगा जब मिलेगी नज़र,
सोचवाता है इंतज़ार।

पहला जुमला प्यार का
कहलाता है इंतज़ार।

क्या रंग पहना होगा उसने,
झलक दिखलाता है इंतज़ार।

आप अपनी रचना शनिवार 05  मई 2018 
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी
सोमवारीय अंक 07 मई 2018  को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें

धन्यवाद।








16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन
    ईश्वर सदा आपकी मदद करे
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमन ....,🙏 बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर भजन के साथ प्रस्तुत सुन्दर हलचल।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय कुलदीप जी,पिताजी को श्रद्धा सुमन,और आप सब परिवारजनों को खासकर माताजी को ईश्वर असीम धैर्य प्रदान करें इस वियोग को सहने के लिए,यही जीवन का सत्य है,सब अवगत हैं इस सत्य से परन्तु इस सत्य को जीने में जो धैर्य चाहिए वो इससे गुजरकर ही समझा जा सकता है,
    सूंदर प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  5. सादर नमन 🙏 बस यादें शेष यह जाती है ,कभी कभी बडा सताती हैं ।
    सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. पिताजी की पुनीत स्मृतियों को विनम्र नमन एवं उन्हें सादर श्रद्धांजलि ! जीवन चलने का नाम ! सृष्टि का कारोबार यूँँ ही चलता रहता है ! हार्दिक संवेदनाएं स्वीकार कीजिये कुलदीप भाई ! पुराने लिंक्स में अपने मुक्तक को यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय कुलदीप जी,
    पिताजी को श्रद्धा सुमन आप सब को ईश्वर धैर्य प्रदान करें.
    सूंदर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  8. पुण्यात्मा को सादर श्रद्धांजली एवं नमन!!! शोक संतप्त कुल को हार्दिक संवेदना!!! आत्मा की शांति हेतु ईश्वर की विनम्र प्रार्थना!!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय कुलदीप जी,
    पिताजी को श्रद्धा सुमन सहित सादर नमन ....

    जवाब देंहटाएं
  10. पुजनीय पिताजी को सादर श्रृद्धानजली, आज की प्रस्तुति अश्रु पुरित और विशेष, सभी रचनाकारों को साधुवाद।

    पिताजी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ मेरी नही है एक संकलन है पर बहुत अंतर छूती है...


    मायावी सरोवर की तरह
    अदृश्‍य हो गए पिता
    रह गए हम
    पानी की खोज में भटकते पक्षी

    ओ मेरे आकाश पिता
    टूट गए हम
    तुम्‍हारी नीलिमा में टँके
    झिलमिल तारे

    ओ मेरे जंगल पिता
    सूख गए हम
    तुम्‍हारी हरियाली में बहते
    कलकल झरने

    ओ मेरे काल पिता
    बीत गए तुम
    रह गए हम
    तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की
    उदास तारीखें

    हम झेलेंगे दुःख
    पोंछेंगे आँसू
    और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर
    बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
    ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।

    जवाब देंहटाएं
  11. पिता जी को सादर नमन. भाई कुलदीप जी पिता जी का जाना जीवन की अपूर्णीय क्षति होता है. परिवार के लिये विशेष दिन पर भी आप एक विचारणीय प्रस्तुति लेकर आये. आपका आभार.
    इस अंक में चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय कुलदीप जी -- सबसे पहले मन छुते हृदयस्पर्शी गीत से शुरू हुई हलचल के बारे में कहना चाहूंगी कि आपकी पिताजी के प्रति भावनाए मन को भिगो गई | एक पिता का पुण्य स्मरण मर्मस्पर्शी है | एक संतान के लिए पिता का साया अनमोल है | उसकी पूर्ति किसी भी चीज से संभव नहीं | पिताजी की पुण्य स्मृति को सादर नमन | और माँ के लिए आज अनेक हाथ दुआ के लिए उठे होंगे | ईश्वर उन्हें शीघ्र उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करेंगे | आप आश्वस्त रहिये | प्रार्थनाओं में बहुत बल होता है |आज के संकलन के सभी सहभागियों को शुभकामनाये | मेरी पुरानी रचना आपने चुनी | बहुत ख़ुशी हुई कि रचना से बहुत से नये पाठक जुड़े |आपकी आभारी रहूंगी | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं


  13. मैंने भी २००३ में कैंसर से अपने पिताजी को खो दिया था |
    स्मृति शेष पिताजी को समर्पित मेरी रचना जो शब्द नगरी पर बहुत पढ़ी गयी

    कल थे पिता - पर आज नहीं है -

    माँ का अब वो राज नहीं है !

    दुनिया के लिए इंसान थे वो ,

    पर माँ के भगवान् थे वो ;

    बिन कहे उसके दिल तक जाती थी

    खो गई अब वो आवाज नहीं है ! !

    माँ के सोलह सिंगार थे वो ,

    माँ का पूरा संसार थे वो ;

    वो राजा थे - माँ रानी थी --

    छिन गया अब वो ताज नहीं है ! !

    वो थे हम पर इतराने वाले ,

    प्यार से सर सहलाने वाले ;

    उठा है जब से उनका साया -

    किसी को हम पर नाज नहीं है

    कल थे पिया पर आज नहीं है -

    माँ का अब वो राज नहीं है


    |

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही हृदयस्पर्शी गीत के साथ आदरणीय पिताजी की पुण्य स्मृति पर प्रवाहित भावनायें दिल को छू गयी । मैं व्यस्तता के कारण समय पर इस प्रस्तुति का आनन्द न ले पायी....चलो देर से ही सही....
    बहुत ही शानदार प्रस्तुति एवं लाजवाब लिंको का संकलन....

    जवाब देंहटाएं

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