उन्होंने आंदोलन और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी,वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया। राय हिन्दी, अँग्रेजी के अलावा फारसी, अरबी, संस्कृत एवं बांग्ला भाषा के भी जानकार थे।
राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वे दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे।
दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे। राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया। बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया।
राजा राममोहन राय एक प्रखर-प्रगतिशील व्यक्तित्व का नाम है। वे भारतीय भाषायी प्रेस के सही अर्थों में संस्थापक थे। जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता राजा राममोहन राय पैनी पैठ के चिंतक थे।
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन' संवाद कौमुदी, मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था।
राजा राममोहन राय के जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।
इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा। लेख में उठाए मुद्दे थे-
1. जूरी प्रथा आरंभ की जाए।
2. न्यायाधीश और दंडाधिकारी के पद अलग किए जाएँ।
3. न्यायालय की कार्रवाई आम जनता के लिए खुली हो।
4. उच्च पदों पर भारतीयों की नियुक्ति हो।
5. पंचायतें कायम की जाएँ।
6. भारतीय जनमानस पर आधारित विधि का निर्माण हो।
राजा राममोहन राय की दूरदर्शिता और वैचारिकता के सैकड़ों उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। वे अँग्रेजी के हिमायती थे लेकिन हिन्दी के प्रति उनका अगाध स्नेह था।
वे रूढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे।
आज उनके पावन दिवस पर इन महापुरुष को मेरा कोटी कोटी नमन......
....अब कुछ पढ़ी हुई रचनाओंं से......
स्वार्थ
भीगे तेरे आँसू में
दामन भी मेरे,
छलनी मेरा हृदय भी
हुआ दर्द से तेरे,
डोर जीवन की मेरी
है साँसों में तेरे,
मेरी डोलती नैया
है हांथों में तेरे,
छांह भी मांगती है पनाह....अश्वनी शर्मा
रेगिस्तान में जेठ की दोपहर
किसी अमावस की रात से भी अधिक
भयावह, सुनसान और सम्मोहक होती है
आंतकवादी सूरज के समक्ष मौन है
आदमी, पेड़, चिड़िया, पशु
नख से शिख तक ज़िंदा रहूँगी
मैं हीर थी,
हूँ
और रहूँगी !
मुझे भी जीने का हक़ है,
कुछ कहने का हक़ है
....
एक पलायन ऐसा भी .......
ये नामालूम सी दूरी है बनाई
सुनो तुम जानते हो न
निगाहों की भी उम्र होती है ..... निवेदिता
मंजिलें और खुशियाँ
पर मंजिल दर मंजिल
बैठूँ कुछ सुकून से
इसके पहले ही
हर बार
मिल जाता है
एक नया पता
अगली मंजिल का
अब तक के सफर में
कई कदम चलने
कई जंग लड़ने
वक्त के पड़ावों को
पार करते करते
आओ फासलों को गुनगुनाएं
नदी वापस नहीं मुड़ा करती
और रूहें आलिंगनबद्ध नहीं हुआ करतीं
इक सोये हुए शहर के आखिरी मकान पर दस्तक
नहीं तोड़ा करती शताब्दियों की नींद
आओ फासलों को गुनगुनाएं
इश्क न जन्मों का मोहताज है न शरीर का ...
मुक्तक
निहारना चांद को भला सा लगता है ।
सौंदर्य का रसपान भी अच्छा सा लगता है ।।
खूबसूरती की कमी तो सूरज में भी नहीं ।
बस नजरे चार करना ही टेढ़ी खीर सा लगता है ।।
देश सबका है :)
मत करो देशका विभाजन
जातिवाद और धरम के नाम पर
क्योकि धरती सबकी है
देश सबका है !!
क्योकि धरती सबकी है
देश सबका है !!
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम बीसवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:: ज्येष्ठ की तपिश (तपन) ::
उदाहरणः
आज भूनने लगी अधर है ,
रेगिस्तानी प्यास।
रोम रोम में लगता जैसे ,
सुलगे कई अलाव ।
मन को , टूक टूक करते,
ठंडक के सुखद छलाव ।
पंख कटा धीरज का पंछी ,
लगता बहुत उदास।
रचना की कुछ पंक्तिया दी गई है
यह रचना गीतकार जानकीप्रसाद 'विवश' की लिखी हुई है
उपरोक्त विषय पर आप सबको अपने ढंग से
पूरी कविता लिखने की आज़ादी है
आप अपनी रचना शनिवार 26 मई 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक
28 मई 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
धन्यवाद।
सुप्रभातम् कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
एक तेजोमय व्यक्तित्व का विस्तृत वर्णन और अत्यंत सराहनीय लिंकों के सुंदर संयोजन से आज अंक संग्रहणीय बन आया है।
शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंएक अविवादित व्यक्तित्व
राजा जी राममोहन राय दी के बारे मेंं जानते अवश्य ते
पर इतना नही...आभार हमें अवगत करवाने हेतु
सुन्दर रचनाएँ ....
आभार
सादर
राजा राम मोहन राय के महान कृतित्व का वर्णन करती ज्ञानवर्धक जानकारी सहित सुन्दर लिंक्स का संयोजन । मेरी रचना को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन
जवाब देंहटाएंआपको सस्नेहाशीष
अनूठा संकलन
बढ़िया अंक।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ,राजाराममोहन राय के बारे में विस्तृत जानकारी देने हेतु आभार ..। सभी लिंक बहुत सुंदर ..।
जवाब देंहटाएंकुलदीप जी शानदार प्रस्तुति, एक महान विभुती का परिचय और उनके उच्च आदर्शों पर सार्थक लेख के साथ सुंदर लिंकों का समायोजन सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार और उम्दा प्रस्तुतिकरण .....
जवाब देंहटाएंराजाराममोहन राय के बारे में विस्तृत जानकारी देने हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बहुत बढिया सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
राजाराममोहनराय जी की बिस्तृत जानकारी के साथ बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएं"निगाहों की भी उम्र होती है"
जवाब देंहटाएंछोटी सी रचना पर भावों से परिपूर्ण...इसे देख कर लगता है साहित्य पैदा करना कोई मजाक नहीं।
इस उत्कृष्ट रचना पढ़वाने का आभारी हूँ।
बाकी रचनाओं ने भी ख़ासा प्रभावित किया।
आदरणीय कुलदीप जी -- राजा राम मोहन राय पर लाजवाब प्रस्तुती के साथ बेहतरीन अंक | राजा राम मोहन राय सचमुच भारत के वो प्रणेता है जिनकी बदौलत आज भारत वश सती- प्रथा जैसी कुप्रथा से मुक्त हो सका | उस दिनों इन कुरीतियों से लड़ना कितना मुश्किल होता होगा जब अंध विशवास और कपोल कल्पित सामाजिक कुरीतियों पर जन मानस का अगाथ विशवास था | कितनी कठिन यात्रा राहिहोगी समाज सुधारकों की फिर भी उन्होंने निर्भीकता से अपनी बात को साबित किया और समाज से शनै -शनै ये कुरीतियाँ विलुप्त हो सकी
जवाब देंहटाएं| इस जननायक को कोटि कोटि नमन | उनका स्मरण बहुत जरूरी है |आज के सही रचनाकारों की रचनाएँ बेहतरीन थी | मेरी शुभकामनाये सभी के लिए |
आओ फासलों को गुनगुनाएं
जवाब देंहटाएंनदी वापस नहीं मुड़ा करती
और रूहें आलिंगनबद्ध नहीं हुआ करतीं
इक सोये हुए शहर के आखिरी मकान पर दस्तक
नहीं तोड़ा करती शताब्दियों की नींद
आओ फासलों को गुनगुनाएं
इश्क न जन्मों का मोहताज है न शरीर का ...लिखने वाली बहन वन्दना जी के ब्लॉग पर टिप्पणी बहुत कोशिश के बाद भी संभव ना हो पायी | उन्हें बहुत बधाई इन सुंदर रूहानी प्रेम से परिपूर्ण पंक्तियों के लिए |
🙏सर्व प्राथना नमन स्वीकार करें भाई कुलदीप जी ...इतने प्रभावी व्यक्तित्व के बारे मैं बताया पुनः नमन
जवाब देंहटाएंपांच लिंक जैसे अति व्यवस्तिथ और संतुलित मंच सदैव लेखकों को आपनी और आकर्षित करते है !
उस पर ये कदमों की रफ्तार .....बेहतरीन बेहतरीन ख्यालात .....सभी को मेरा प्रणाम 🙏
ज्ञानवर्धक जानकारी ... शानदार प्रस्तुति कुलदीप जी :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ हैं सारी, आज ही पढ़ पाई सबको...अभी किसी पर कुछ लिख नहीं पाई। लिखना पुनः पठन के बाद । सुंदर ज्ञानवर्धक अग्रलेख के साथ उम्दा प्रस्तुति आदरणीय कुलदीप भाईसाहब की !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ हैं सारी, आज ही पढ़ पाई सबको...अभी किसी पर कुछ लिख नहीं पाई। लिखना पुनः पठन के बाद । सुंदर ज्ञानवर्धक अग्रलेख के साथ उम्दा प्रस्तुति आदरणीय कुलदीप भाईसाहब की !
जवाब देंहटाएंIndependence day speech