सारे अनमोल नारे धरे के धरे रह गये जब भीड़ भरे
बनारस के व्यस्तम इलाक़े में लापरवाही से रखा निर्माणाधीन
पुल का गार्डर(बड़ा बीम) भरभरा कर गिर पड़ा। चंद पलों में
ज़िदगी के सफ़र के राही मौत की आगोश में समा गये। ऐसे हादसे
पहली बार नहींं हुये हैं। आख़िर क्यों हर बार सात्वंना, मुआवजा
और संवेदना के जुमलों के साथ हम नये हादसों का पुल तैयार करते हैंं ? सबक लेकर सतर्कता का, सुरक्षा के सही मानकों का कड़ाई से पालन कर कोई और हादसा न हो क्यों नहीं सुनिश्चित करते हैं?
धन या पद से संबंधी भ्रष्टाचार तो फिर भी समझ में आता है पर मानव जीवन के मूल्य पर यह लापरवाही? इस संबंध में बेहद गंभीरतापूर्वक विचार होना आवश्यक है। जब तक इस हादसे पर जाँच कमेटियां अपने रिपोर्ट देगी तब तक कोई नया हादसा तैयार मिलेगा। हमें आदत हो गयी है अब तो ऐसे समाचारों की, तभी तो दैनिक क्रियाकलापों की तरह संवेदना प्रकट कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।
आप भी आनंद लिजिए-
न हो मुमकिन ये मगर,
पर किसी एक की खातिर,
ये दुनियां रुके,
ये भी जरूरी तो नहीं.
आदरणीया पुरुषोत्तम जी की लिखी मर्मस्पर्शी रचना
कोलाहल
खामोश रहा वो, सागर की तट पर,
चुप्पी तोड़ती, उन लहरों की दस्तक पर,
हाहाकार मचाती, उनकी आहट पर,
सहज-सौम्य, सागर की अकुलाहट पर!
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आदरणीय मीना भारद्वाज की रचना
"गूफ्तगू"(ताकाँ)
छुपाने हेतु,
अपने उम्र की नज़ाकत !
मरते थे दुनियावाले जिसपर।
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पशुता मानवता को छलने लगी
हमक़दम के इस सप्ताह का
विषय जानने के लिए देखिए
आज के लिए इतना ही
आप सभी की बहुमूल्य प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा में
श्वेता सिन्हा
सस्नेहाशीष संग शुभ दिवस
जवाब देंहटाएंबढ़ियाँ संकलन
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंहादसा तो हादसा ही कहलाता है
कभी भी कहीं भी हो जाता है
हाँ, असावधानी के चलते ये हादसा हुआ है
दुर्भाग्यपूर्ण है
अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
शुभ कामनाएँ...
सादर
दुःखद हादसा। सावधानी रखी जा सकती है और हादसों को टाला जा सकता है किंतु जिंदगी का मोल समझें, तब ना !!! विदेशों में ऐसी दुर्घटनाओं की संख्या क्यों ना के बराबर होती है ? हमारे देश के लोगों में 'सब चलता है'की प्रवृत्ति कूट कूटकर भर चुकी है। जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक कुछ नहीं होगा। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का संकलन।
सामायिक गतिविधियों पर गहन दृष्टि
अपने स्वार्थ मे अंधे लोग भूल जाते हैं कि
उनकी लिप्सा का शिकार उनके अपने भी हो सकते हैं
दूसरे के खून को तो कोई खून ही नही समझता।
सुन्दर संकलन बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंहम हादसों के देश में रहते हैं जंहा हर पल हादसे होते रहते हैं,
जब ढांचागत विकास में लगे लोग अपने घर की तिजोरियां भर रहे हों तो बालू और सीमेंट का अनुपात कौन देखता है...
अब तो लोग डरते भी नहीं कि गड़बड़ होने से पकडे जायेंगे , वो तो पहले ही गड़बड़ी करने का लाइसेंस नोटों के बंडल के बदले ले लेते है।
इस तरह की घटनाओं को हादसा नहीं कहना चाहिए ये जानबूझकर किये गए कृत्य हैं।
कभी गोरखपुर कभी बनारस तो कभी कोई और शहर....
मौत का तांडव तो होता ही रहेगा,भृष्टाचार की हवा में सब जायज है।
और फ़िर मौत के बदले मुआवजा तो है ही सरकार के पास। भले ही उसका सच भुक्तभोगी के खाते से खुद उसके पैसों का निकल जाना भले ही हो।
सादर
सुन्दर रचनाओं का संकलन । इस संकलन में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंसामायिक घटनाओं पर गहन दृष्टि ..
जवाब देंहटाएंदुखद घटना
सुंंदर रचनाओं का संकलन
धन्यवाद
वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । सभी रचनाएँ सुंदर ।
जवाब देंहटाएंरही बात हादसे की ....ये हमारे यहाँ रोज की बात हो गई है ..सावधानी रखने की खाली बातें की जाती है ,हर जगह करप्शन....... बेचारे ...सीधे साधे लोग इन हादसों की चपेट में आ जाते हैं.।
जिम्मेदारी सुनिश्चित न होने से एक दूजे पर थोपने का जो चलन है उसी के चलते ऐसे दुःखद हादसे फिर-फिर होते चले जाते हैं जिन्हे जल्दी भुला लिया जाता है। आम जनता से साथ हुआ हादसा आम होता है खास कभी चपेटे में आएं तो फिर देखो?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
302,145 (10:06 PM) ख़ुशी की बात है हमारा ब्लॉग अब 3 लाख पृष्ठ दृश्य का कीर्तिमान स्थापित कर चुका है. अब सबके सतत सहयोगस्नेह और आशीर्वाद ने हमें यह ख़ुशी साझा करने का अवसर दिया . अब सबको बधाई एवं धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति में ख़ास है अग्रलेख का सम्पादकीय स्वरूप. बेहतरीन रचनाओं का कुशलतापूर्वक चयन प्रस्तुति को विशेष बना देता है. बधाई श्वेता जी.
इस अंक में चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
श्वेता जी,
जवाब देंहटाएंये संकलन गहन विचारों का संकलन रहा है...
सुधा जी, पुरुषोत्तम जी और ध्रुव जी की रचनाओं ने खासा प्रभावित किया।
टूटते पुल ओर बिखरते समाज को देख कर लगता है
इंजीनियरिंग और शिक्षण के क्षेत्र से आरक्षण हटा देने का समय आ गया है।
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंये दुखद हादसे चिन्ता के विषय हैं...
सुंदर....
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