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मंगलवार, 29 मई 2018

1047.....कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.

कोमा चला गया है
हिमाचल का नेट
प्रयास जारी है
कतिपय दवाएँ चाहिए सो हम लोग
इकट्ठा कर रहे हैं....
कुछ इन्जेक्शन सखी श्वेता
ला रही है
कुछ कोशिश हम भी कर रहे हैं...

देखिए पहली खेप आ गई है.....

बावरी बयार बाँचे
आगी लागी बगिया.
जोहे जोहे  बाट जे
बिलम गयी अँखिया .
सुरज धनक गये
झुलस गयी भुँइया.
दुबकी दुपहरी
बरगद के छैंया 

होठ दांतों में दबाना तो नहीं
यूँ ही कुछ कहना सुनाना तो नहीं

आप जो मसरूफ दिखते हो मुझे
गम छुपाने का बहाना तो नहीं

एक टक देखा हँसे फिर चल दिए
सच कहो, ये दिल लगाना तो नहीं

बनते हैं महल 
सुन्दर सपनों के 
चुनकर 
उम्मीदों के 
नाज़ुक तिनके 
लाता है वक़्त 
बेरहम तूफ़ान 
जाते हैं बिखर 
तिनके-तिनके। 

ये खटपट वाले रिश्ते भी 
जब मौन होते हैं 
तो मन को छटपटाहट होती है 
जाने क्या  हुआ 
इनका लड़ना-झगड़ना ही 
साबित करता है 
जिंदगी में बाकी है
अभी बहुत कुछ करना


इक धुंधलाती सी परछाईं,
मद्धम सी गूंजती कोई मधुर आवाज,
छुन-छुन पायलों की धुन,
चूड़ियों की चनकती खनखनाहट,
करीब से छूकर गुजरती कोई पवन,
मदहोश करती वही खुश्बू...
है ये कोई वहम या फिर कोई जादू!
या है बस इक ख्वाब ये?

बात - राहुल मिश्रा

चुप हूँ मैं कि दर्द देना नहीं और तुम्हे, 
सन्नाटों नें कैसे जकड़ा मुझको पूछो ना। 

जुगनू सितारे सब अपने घरों में सोए, 
यूं अकेली रात में किसीको खोजो ना।

ये कैसा संगीत रहा है....ललित कुमार

पता नहीं खुशी का अंकुर
कब झाँकेगा बाहर इससे
विश्वास का माली बरसों से
मन-भूमि को सींच रहा है

उठे दर्द की तरंगो-सा
गिरे ज्यों आँसू की हो बूँद
मेरे जीवन-वाद्य पर बजता
ये कैसा संगीत रहा है!

-0-0-

हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम इक्कीसवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
दो पंक्तियाँ है
यानी एक दोहा है

अँधा बेचे आईना, विधवा करे श्रृंगार
कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.

और इसका कोई उदाहरण मौजूद नही है
रेखांकित शब्द ही विषय है
उपरोक्त विषयों पर आप सबको अपने ढंग से 
पूरी कविता लिखने की आज़ादी है

आप अपनी रचना शनिवार 02 जून 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 04 जून 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
रचनाएँ  पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के 

सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें

आज्ञा दें
यशोदा









16 टिप्‍पणियां:

  1. इंस्टेंट पकी भी लाज़बाब
    मुझे तो सोचने में इससे ज्यादा समय लग जाता है कैसे बनाऊं

    जवाब देंहटाएं
  2. अब तो ज़माने के साथ मुहावरे भी बदलते का रहे है।आज आइना बेचने वाला आंख वाला है, लेकिन शहर अंधो का है।
    अच्छी प्रस्तुति। बधाई और आभार!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. हिमाचल का नेट जल्दी नियमित हो ...
    अच्छी प्रस्तुति है ... भीनी भीनी हलचल आनंद से रही है ...
    आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की प्रस्तुति में खुद को भी पाकर अच्छा लगा।
    उठे दर्द की तरंगो-सा
    गिरे ज्यों आँसू की हो बूँद
    मेरे जीवन-वाद्य पर बजता
    ये कैसा संगीत रहा है!
    यह रचना प्रभावित कर गई। आदरणीय ललित जी को शुभकामनाएं।
    अन्य सभी रचनाएं प्रभावशाली है।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर प्रस्तुति मनमोहक वार्ता , सुंदर लिंकों का समायोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति .सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर ...सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाआआह बेहतरीन लिंक्स सदा की तरह ..... आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संयोजन....

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छी रचनाएँ पढ़वाने हेतु सादर आभार आदरणीया यशोदा दीदी....इस बार हमकदम का विषय भूलभुलैया है....'लिलार' को 'आईने' में देखकर 'श्रृंगार'करो और 'बहुरुपिया' बनकर तरह तरह के रूप धरो....बहुत नाइंसाफी है यशोदा दी ये तो....सच में !!!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय यशोदा दीदी -- बहुत ही प्रेरक रचनाएँ है आज के अंकआदरणीय पुरुषोत्तम जी की तरह मुझे भी ललित जी की रचना बहुत अच्छी लगी |मैंने दो रचनाये और पढी उनकी | बहुत ही भा गया उनका लेखन | प्रभावशाली लिंक सजाने के लिए हार्दिक आभार आपको | सभी रचनाकारों की रचनाये प्रभावित करती हैं | हिमाचल का नेट बहाल हो---- हर हाल में दुआ है |सादर --

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह लाजवाब प्रस्तुति
    उम्दा संकलन
    सभी रचनाएँ उत्क्रष्ट हैं

    जवाब देंहटाएं
  14. हलचल यथा वाम तथा हलचल सा सरस और चंचल ...🙏हर रचना बेहतरीन कहती सुनती हलचल करती सी .
    नमन सखी यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं

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