सादर अभिवादन
रविवार की छुट्टी का काला सच
क्या है रविवार की छुट्टी का काला सच
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दिग्विजय
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार..
आज छुट्टी है
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं का संकलन
वाह! बहुत सुंदर संकलन आज का!
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस रचनाओं का संकलन। शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
ये संकलन है, मेरे विचार नीचे है दो पंक्तियों मे।
रविवार की छुट्टी के पीछे कई लोगो का बहुत बड़ा संघर्ष रहा है. आज जो हम रविवार के दिन छुट्टी मनाते है उसका पूरा श्रेय नारायण मेघाजी लोखंडे को जाता है. दरअसल जब हमारे भारत पर अंग्रेजो का शासन था. तब मजदूरो को सप्ताह के सातो दिन काम करना पढता था. इससे से कोई भी मजदुर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाता था. और जरुरत के मुताबित अपने शरीर के आराम भी नहीं दे पाता था.
ब्रिटिश शासन के समय मजदूरो के नेता नारायण मेघाजी लोखंडे थे. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने मजदूरो की समस्या को रखा और सप्ताह के एक दिन छुट्टी रखने का निवेदन किया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने नारायण मेघाजी लोखंडे के इस निवेदन को ठुकरा दिया. ब्रिटिश सरकार द्वारा लिया गया ये फैसला नारायण मेघाजी लोखंडे को पसंद नहीं आया और उन्होंने मजदूरो के साथ मिलकर इसका खूब विरोध प्रदर्शन किया.
नारायण मेघाजी लोखंडे और मजदूरो का संघर्ष आखिरकार 7 साल बाद रंग लाया और ब्रिटिश सरकार ने 10 जून 1890 को आदेश जारी किया. इस आदेश के जारी होने के बाद सप्ताह के किसी एक दिन यानी रविवार को छुट्टी होने का निर्णय लिया गया. इसके साथ ही हर दिन दोपहर को आधे घंटे की छुट्टी का आदेश जारी हुआ. दोस्तों नारायण मेघाजी लोखंडे और उन मजदूरो के संघर्ष के कारण ही आज हम हर रविवार का दिन अपने परिवार के साथ खुशी से छुट्टी मना है।
मेरे विचार:
सबसे बड़ी विडंबना कि जिन मजदूरों की छुट्टी के लिये क्रांति हुई वो आज भी स्वतंत्र भारत मे रविवार के दिन पुरजोर खटनी कर रहा है और बुद्धि जीवी रविवार की छुट्टी का आनंद उठा रहा है।
वाह्ह्ह..दी आभार।
हटाएंसादर।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय हलचल। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' की मछलियों को पुन: पेड़ पर चढ़ाने के लिये।
हटाएंवाह!!सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल, हार्दिक बधाई|
जवाब देंहटाएंआज के आनन्द में कैलाश जी निहारिका की रचना ने स्वाद बैठाया है...
जवाब देंहटाएंविशेष टिप्पणी देना चाहता हूँ कि
"आप किसी लेख को कविता बनाकर पेश करते हैं तो वो कविता नही कहलाती..बल्कि आप साहित्य के सृजनात्मक रूप को विकृत कर दे रहे हैं.
हालाँकि कविता के दो रूप प्रचलन में है
एक तुकांत (पुराणिक साहित्य)
दूसरा अतुकांत (आधुनिक साहित्य)
समस्या ये है कि सभी को लगता है कि अतुकांत कविता रचना बहुत आसान है लेकिन ऐसा कतई नहीं है..
शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं का संकलन। आदरणीय कुसुम दी ने रविवार की छुट्टीका इतिहास बताकर ज्ञान में वृद्धि की।
जवाब देंहटाएंआज सुबह मैं सोच रही थी क्या अब गृहणियों को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी के लिए आंदोलन करना पड़ेगा।
ये 24×7 वाली job से कभी तो फुरसत मिले। हमारी महिला साथियो की क्या राय है ..... जो भी हो पर एक छुट्टी पर सबका हक़ है। फिर चाहे sunday हो या monday!!!!!
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
सादर
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन.....
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंसारगर्भित भूमिका के साथ सुंदर रचनाओं का सुगढ़ संयोजन किया है आपने।
बहुत आभारी हूँ सर आपकी आपने मेरी रचना को स्थान दिया। सभी साथी रचनाकारों को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।