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रविवार, 6 मई 2018

1024....आग और मछलियों की मटरगश्ती

दिन रविवार
सादर अभिवादन

चलिए चलते हैं आज की रचनाओँ की ओर...

मैं तो चिरइया बाबुल तोरे आँगन की,
नान्हीं उमर खुरच खुरच दाना निकालू ,
भुखिया सतावे बापू ,होठवा पे संतोष मुस्काये,
अंगना में टुकुर - टुकुर देखे पाखी-
थाली क चउरा ,मनवा विकल होई जाये,


हर शाम सूरज की 
बोझिल फीकी बाहें
स्याह क्षितिज में 
समाने के पहले
छूकर मेरी आँखों को
उदास कर जाती है


मेरी फ़ोटो
एहसानफ़रमोश होते हैं लोग,
धोखेबाज़ भी,
ज़रूरत पड़े,
तो किसी की भी पीठ में 
छुरा भोंक सकते हैं.

My photo
बेहुनर हाथ किसी काबिल बना दूँ तो चलूँ
आस की डोर  हथेली में थमा दूँ तो चलूँ

मोड़ दर मोड़ मिलेंगे राह भूले चेहरे  
एक मुस्कान निगाहों में बसा लूँ तो चलूँ    


My photo
जिंदगी के हालात कुछ ऐसे हुए
शीशे के महल बनाए हमने

दिल नाजुक मोम सा है हमारा
तेज़ रोशनी से छिपाया हमने

मैं बार-बार मुस्कुरा उठता हूँ 
तुम्हारे होंठो के बीच,
बेवज़ह निकल जाता हूँ तुम्हारी आह में,
जब भी उठाती हो कलम
लिख जाता हूँ तुम्हारे हर हर्फ़ में,
कहती हो दूर रहो मुझसे....

अब आप कहेंगे 
नदी में किसने 
आग लगाई 
मछलियाँ पेड़ पर 
किसने चढ़ाई

अरे इतना भी नहीं 
अगर जानते हो 
तो इधर उधर 
लिखे लिखाये को 
छलनी हाथ में 
लेकर क्यों छानते हो 
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

बताइएगा हमें...
क्या है रविवार की छुट्टी का काला सच
आज्ञा दें
दिग्विजय










15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    आभार..
    आज छुट्टी है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    शानदार रचनाओं का संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! बहुत सुंदर संकलन आज का!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत जबरदस रचनाओं का संकलन। शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई
    ये संकलन है, मेरे विचार नीचे है दो पंक्तियों मे।

    रविवार की छुट्टी के पीछे कई लोगो का बहुत बड़ा संघर्ष रहा है. आज जो हम रविवार के दिन छुट्टी मनाते है उसका पूरा श्रेय नारायण मेघाजी लोखंडे को जाता है. दरअसल जब हमारे भारत पर अंग्रेजो का शासन था. तब मजदूरो को सप्ताह के सातो दिन काम करना पढता था. इससे से कोई भी मजदुर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाता था. और जरुरत के मुताबित अपने शरीर के आराम भी नहीं दे पाता था.

    ब्रिटिश शासन के समय मजदूरो के नेता नारायण मेघाजी लोखंडे थे. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने मजदूरो की समस्या को रखा और सप्ताह के एक दिन छुट्टी रखने का निवेदन किया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने नारायण मेघाजी लोखंडे के इस निवेदन को ठुकरा दिया. ब्रिटिश सरकार द्वारा लिया गया ये फैसला नारायण मेघाजी लोखंडे को पसंद नहीं आया और उन्होंने मजदूरो के साथ मिलकर इसका खूब विरोध प्रदर्शन किया.

    नारायण मेघाजी लोखंडे और मजदूरो का संघर्ष आखिरकार 7 साल बाद रंग लाया और ब्रिटिश सरकार ने 10 जून 1890 को आदेश जारी किया. इस आदेश के जारी होने के बाद सप्ताह के किसी एक दिन यानी रविवार को छुट्टी होने का निर्णय लिया गया. इसके साथ ही हर दिन दोपहर को आधे घंटे की छुट्टी का आदेश जारी हुआ. दोस्तों नारायण मेघाजी लोखंडे और उन मजदूरो के संघर्ष के कारण ही आज हम हर रविवार का दिन अपने परिवार के साथ खुशी से छुट्टी मना है।


    मेरे विचार:
    सबसे बड़ी विडंबना कि जिन मजदूरों की छुट्टी के लिये क्रांति हुई वो आज भी स्वतंत्र भारत मे रविवार के दिन पुरजोर खटनी कर रहा है और बुद्धि जीवी रविवार की छुट्टी का आनंद उठा रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर रविवारीय हलचल। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' की मछलियों को पुन: पेड़ पर चढ़ाने के लिये।

      हटाएं
  6. वाह!!सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर हलचल, हार्दिक बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  8. आज के आनन्द में कैलाश जी निहारिका की रचना ने स्वाद बैठाया है...

    विशेष टिप्पणी देना चाहता हूँ कि
    "आप किसी लेख को कविता बनाकर पेश करते हैं तो वो कविता नही कहलाती..बल्कि आप साहित्य के सृजनात्मक रूप को विकृत कर दे रहे हैं.
    हालाँकि कविता के दो रूप प्रचलन में है
    एक तुकांत (पुराणिक साहित्य)
    दूसरा अतुकांत (आधुनिक साहित्य)

    समस्या ये है कि सभी को लगता है कि अतुकांत कविता रचना बहुत आसान है लेकिन ऐसा कतई नहीं है..

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर रचनाओं का संकलन। आदरणीय कुसुम दी ने रविवार की छुट्टीका इतिहास बताकर ज्ञान में वृद्धि की।
    आज सुबह मैं सोच रही थी क्या अब गृहणियों को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी के लिए आंदोलन करना पड़ेगा।
    ये 24×7 वाली job से कभी तो फुरसत मिले। हमारी महिला साथियो की क्या राय है ..... जो भी हो पर एक छुट्टी पर सबका हक़ है। फिर चाहे sunday हो या monday!!!!!

    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन.....

    जवाब देंहटाएं
  13. शुभ संध्या आदरणीय सर,
    सारगर्भित भूमिका के साथ सुंदर रचनाओं का सुगढ़ संयोजन किया है आपने।
    बहुत आभारी हूँ सर आपकी आपने मेरी रचना को स्थान दिया। सभी साथी रचनाकारों को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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