विध्वंस की निशानी विध्वंस से मिटेगी
बहती शोणित दिखलाती नाश जिन्दगी
सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
संसद की सीढ़िया चढ़ते लोग..लिब्राहम रिपोर्ट में इल्जाम सब पर ,मुजरिम कोई नही……
जले पर नमक यह कि इस घटना पर एक श्वेत-पत्र लाने की बात हुई थी….शायद .उन्हे मालूम नहीं….इतिहास के काले पन्नों से श्वेत-पत्र नहीं लिखा जाता..
अयोध्या बाबरी मस्जिद प्रकरण पर हुए दंगे पर उत्पन्न एक सहज आक्रोश…
जिस क्षण असंवेदनशीलता हावी होती है
उसी क्षण संस्कारहीन होते जाते हैं
फिर कैसे हो सृजन !
हाँ किसी भी प्रकार का
सृजन तो होता ही है
सृजन नष्ट करने के लिए
सुनामी लाने के लिए
सृजन विध्वंस संग संग मिस्से
युद्ध
जो युद्ध के पक्ष में नहीं होंगे
उनका पक्ष नहीं सुना जायेगा
बमों और मिसाइलों के धमाकों में
आत्मा की पुकार नहीं सुनी जायेगी
धरती की धड़कन दबा दी जायेगी टैंकों के नीचे
खोई पहचान
भू के कुछ वर्गों के पीछे
हम लड़े सदियों यहाँ ।
मच गया विध्वंस पर
किसको भला है क्या मिला ॥
संघर्ष के इतिहास में
धूमिल है गाथा प्रान्त की ।
पथ-प्रदर्शक थे जो सारे
करते हैं अब भ्रांत ही ॥
मानव
सत्ता लोभ के मद में चूर
उच्च स्तर में मगरूर
निम्न स्तर के साथ
चलेंगे मिलाकर हाथ
हमें सन्देह है
ये ऐसा नहीं करेंगे
अधिकार क्षेत्र की बात
कर रहे सदियों से अत्याचार
लड़ने को होंगे तैयार
कविता क्या कर सकती है
तमाम सारी बाहरी ताकतें जब भाषा पर आक्रमण करती हैं और स्मृतियों का विनाश करने के
अपने राजकर्म या वणिककर्म में संलग्न हो जाती हैं, तो कविता मनुष्य या किसी व्यक्ति की
स्मृतियों को बचाने के प्राणपन संघर्ष में मुब्तिला होती है। विस्मरण के विरुद्ध एक पवित्र और ज़रूरी संग्राम की शुरुआत सबसे पहले कविता ही करती है, अगर वह अपने किसी अन्य हितसाधन
में नहीं उलझ गयी है, और सबसे अंत तक वही उस मोर्चे पर रहती है।
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दुनिया में क्या हो रहा है... आते रहेंगे जब तक हैं
नैराष्य नहीं बल्कि जिजीविषा को प्रकट करना है
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम सत्रहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: इन्तजार ::::
:::: उदाहरण ::::
गर आने वाला हो महबूब...
तो सुहाता है इंतज़ार!!
तन्हाई में भी अक्स उसी का,
दिखलाता है इंतज़ार।
क्या होगा जब मिलेगी नज़र,
सोचवाता है इंतज़ार।
पहला जुमला प्यार का
कहलाता है इंतज़ार।
क्या रंग पहना होगा उसने,
झलक दिखलाता है इंतज़ार।
आप अपनी रचना शनिवार 05 मई 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी
सोमवारीय अंक 07 मई 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
इन्तजार तो है
शान्ति का
पर मुश्किल है
पर असम्भव नहीं
मिलेगी ज़रूर
सादर
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन एक महत्वपूर्ण भूमिका के साथ.
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक।
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं का इतिहास है आज की प्रस्तुति बहुत हृदय स्पर्शी भावों का मंचन सभी रचनाऐं एक से एक जाग्रती का रूप है प्रस्तुति के सम रूप एक रचना जेहन मे आई लिख रही हू।
जवाब देंहटाएंसाहिर लुधियानवी साहब की एक नज्म
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।
सादर धन्यवाद कुसुमजी इस संग्रहणीय कविता को साझा करने हेतु !
हटाएंसादर सखी।
हटाएंयुद्ध तो हमेशा ही विध्वंश का कारण रहा है. "इंतजार" ने बहुत प्रभावित किया
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स चुनिदा थे.
हम-दम का लिंक नहीं मिला जिस पर रचना भेजनी है.
आज की प्रस्तुति बहुत ही विचारणीय है। दिल को सोचने पर विवश करती शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज की सभी रचनाएँ सारगर्भित और विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
आभार।
हमेशा की तरह बेजोड़ और अलग सी प्रस्तुति आदरणीया विभा दी की ! सादर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स .....बधाई,
जवाब देंहटाएंमेरे हिन्दी ब्लॉग "हिन्दी कविता मंच" पर "अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस" के नए पोस्ट "मजदूर - https://hindikavitamanch.blogspot.in/2018/05/world-labor-day.html " पर भी पधारे और अपने विचार प्रकट करें|
शुभसंध्या दी:)
जवाब देंहटाएंआपकी अलग अंदाज़ की सारयुक्त प्रस्तुति सदैव प्रभावित करती है बहुत अच्छी रचनाएँ हैं दी।
आभार
सादर