|| सादर नमस्कार ||
जहरीली होती हवाओं में हर साँस खतरे में ,
बूँद-बूँद पानी को तरसते लोग,
बेटियों की आबरु के लिए चिंतित माँ,
पत्थरों से घायल मासूमियत,
धर्म और सांप्रदायिकता में झुलसते त्योहारों का उमंग,
आरोप-प्रत्यारोप के विषैले बाणों से आच्छादित अस्मिता,
अपने सहूलियत के हिसाब से पल -पल में बदलते
लोगों के उसूलों के मापदंड,बदहवास जनमानस और भी न जाने क्या-क्या।
अरे भाई सब बुरा ही है क्या?
सब खराब ही है?
इतनी सारी नकारात्मक ऊर्जा ने शायद सारी सकारात्मकता को सोख लिया है।
सोच रही हूँ क्या कहीं कुछ भी अच्छा नहीं है? आपको क्या लगता है?
चलिए पढ़ते है आपके द्वारा लिखी कुछ रचनाएँ-
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आदरणीय विश्वमोहन जी के द्वारा अनोखे अंदाज़ में लिखा गया अद्भुत लेख
व्यक्ति मन के द्वारा चिंतन नहीं करता है) ' वह ' जिसके द्वारा मन स्वयं मनन का विषय बन जाता है, ' उसे ' ही तुम ' ब्रह्म ' जानो न कि इसे जिसकी मनुष्य यहाँ उपासना करते हैं.
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आदरणीया मीना जी की बेहद हृदयस्पर्शी रचना
आधी रात में चौंककर उठती हूँ
कि मेरे चारों ओर फैली
शुभ्र सफेद दुनिया पर
कोई दाग तो नहीं लग गया ?
खरोंच खरोंचकर, रगड़कर मिटाती हूँ,
खुश हो लेती हूँ कि सब ठीक है !
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आदरणीया डॉ. अपर्णा त्रिपाठी जी की कलम से प्रसवित
जिन्दगी को खुश रखने के लिये
मगर क्या चाहिये जिन्दगी को
खामखां ही
बना देते हैं इसे मुश्किल
जिन्दगी जीना
बिल्कुल मुश्किल नही
आदरणीया रेणु जी की सारगर्भित रचना
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आदरणीय लोकेश जी की लिखी शानदार ग़ज़ल
समझदार तो सिर्फ़ सियासत करते हैं
पागल हैं जो लोग, मुहब्बत करते हैं
ये तो सोचा नहीं दोस्ती में हमने
आगे चलकर दोस्त अदावत करते हैं
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कर्मशील बनने का संदेश देती आदरणीया डॉ. इन्दिरा जी की लिखी रचना
नरम बांस की टोकरी
दे रही गुरु ज्ञान
सूखे की बस यही सजा
जाते है शमशान !
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आदरणीय रोहिताश जी घोड़ेला की लिखी रचना
खैर ....
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
फिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?
तुम पुछ रहे हो तो बतला रहा हूँ मैं
जूं तक मगर रेंगने वाली नहीं
मेरे आखिरी वक्त पर
मेरे मृत शरीर पर तुम
थोप ही दोगे तथाकथित धर्म अपना.
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और चलते-चलते उलूक के पन्नों से हमेशा की तरह एक लाज़वाब आदरणीय सुशील सर की कृति
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
आपकी रचनाओं से सजा आज का यह अंक आपको कैसा लगा ?
आप सभी के बहुमूल्य सुझावों की
प्रतीक्षा में
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसब कुछ अच्छा है
सोच बस बुरी है
बदलाव घर से ही की जा सकती है
पठनीय रचनाओं ता चयन
शुभ कामनाएँ
सादर
आधा भरा या आधा खाली... सोच सब सकें तो बहुत कुछ बदल जाये सवाली
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ प्रस्तुतीकरण
समकालीन विसंगतियों पर चिंता जाहिर करती एक अत्यंत सार्थक और सारगर्भित भूमिका से प्रसवित पठनीय रचनाओं की उत्कृष्ट प्रस्तुति!!!! सादर!!!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर शुक्रवारीय हलचल अंक। आभार श्वेता जी 'उलूक' की बिल्लियों और चूहों को भी आज की प्रस्तुति में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंहलचल अंक सच मैं हलचल मचा गया ....इतनी त्रासीत भूमिका और संकलित काव्यों से उथल पुथल सी मचा गया .सत्य है दुनियाँ सहज नहीं है
जवाब देंहटाएंजीवन जीना सरल नहीं है
पर सर पर हाथ धरे क्या होता
आगे बढ़ना कठिन नहीं है !
🙏🙏
रचना "सफेद रंग" ने खासा प्रभावित किया.
जवाब देंहटाएंउलूक जी हमेशा उम्दा लिखते हैं
लोकेश जी की गजल का कोई जवाब नही..
इस "आनन्द" में मेरी रचना शायद किरकिरी सी है फिर भी शामिल करने योग्य समझी गयी
आभार.
मेरे नाम के आगे आदरणीय लिखा देख कर थोडा असहज महसूस होता है
मै बहुत बौना कवि या शायर हूँ थोड़े से लोगों का जो पागल हैं, सिरफिरे हैं का प्रतिनिधित्व करने वाला.
आप हमें सीधा नाम से पुकारा करें क्यूंकि आदरणीय जैसे शब्द बंटवारा कर देते हैं और श्रेणी बना देते हैं जबकि मेरा मानना है कि हम सब एक हैं और एक कर्म हैं.
आभार
आदरणीय जैसे शब्द बंटवारा कर देते हैं और श्रेणी बना देते हैं जबकि मेरा मानना है कि हम सब एक हैं और एक कर्म हैं.
हटाएंसहमत। फिर भी इस कर्म में जो हमसे बहुत वरिष्ठ हैं उनके नाम के आगे आदरणीय /आदरणीया लगाना उचित ही है।
सहमत है हम भी
हटाएंआभार मीना जी
सादर।
जी रोहिताश जी हम ऐसा मानते है सभी मनुष्य अपने में श्रेष्ठ है और उन्हें पूरा सम्मान मिलना चाहिए। आदरणीय शब्द आपके सम्मान में है कृपया स्वीकार करें।
सादर।
सारगर्भित भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति.. सभी रचनाएँ बहुत बढिया।शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
उम्दा प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनायें
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार
पठनीय रचनाओं से सजा अंक... बहुत कुछ अच्छा भी है ,जैसे आप , जैसे हम और जैसे बाकी हर प्राणी। जब तक धरती का अस्तित्व है अच्छाई ज़िंदा रहेगी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअरे अच्छा है ना! ये मोबाइल कितने दुसपरिणाम के साथ छा रहा है दुनिया मे पर फिर भी कितने अच्छे परिणाम, कि कितने अनजान लोग अपने से लगने लगते हैं कितना ज्ञान समेटे, अपने एक डिबिया मे अगर इतना ज्ञान पढना होतो सौ दो सौ पुस्तकें भी कम पडेगी और रखने की अलग समस्या और ढूंढने की उस से बडी तो कुछ तो अप्रतिम सा हो रहा है हर क्षेत्र मे बस सकारात्मक दृष्टि से देखना होगा खैर, पहली पंक्ति पढते ही पता चल जाता है श्वेता जी की प्रस्तुति है और लजवाब है।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ।
दी, कृपया आप तो श्वेता ही रहने दें हमको।
हटाएंआपका स्नेह सदैव विशेष है।
सादर
आभार।
प्रिय श्वेता -- हमेशा की तरह सार्थक प्रस्तुतिकरण |बेहद उत्कृष्ट रचनाएँ | और भूमिका के बारे में क्या लिखूं | नकरात्मक खबरों से सकारात्मकता का विहंगम संसार रचना आज के मीडिया की खूबी बन चुकी है | पर ये भी समाज का दर्पण है क्या करे अखबार और टेलीविज़न | दिन की श्रुँत से ही लाख कोशिश करें अच्छी खबर नसीब ही नहीं होती | इन अराजकताओं से बचने का एक उपाय तो सावधानी ही है | बाकि समाज को खुद जागृत होना होगा ताकि उपद्रवी और वहशी तत्व पराजित हों | सभी सहयोगी रचनाकारों को मेरी शुभकामनाये | मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपकी आभारी हूँ | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि हम जितना नकारात्मक सोचते हैं, लिखते हैं उतनी ही नकारात्मकता बढ़ती जाती है। हम भी मजबूर, वातावरण में जहरीला धुआँ फैला है तो वही साँसों में भी जाएगा ना ! कभी कभी लगता है कि अब से कुछ भी दर्द, पीड़ा, तकलीफ वाला नहीं लिखना है। फिर वही आसपास फैली नकारात्मकता का असर....
जवाब देंहटाएंभूमिका बहुत ही विचारणीय है। मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार। परिवार में एक विवाहकार्य है सो रोज सिर्फ दो तीन ही रचनाएँ पढ़ पा रही हूँ। जल्दी ही इस दायित्व से मुक्त होकर अपने पहले प्यार (वाचन) के पास लौटूँगी।😊