कि आसपास उसे कोई राहतभरा नज़ारा नज़र नहीं आता। ज्येष्ठ मास
में लू के झुलसाते थपेड़े झेलने में इंसान ने कभी हार नहीं मानी।
ऐसे मौसम में दिन में यात्रा करते समय छिला हुआ प्याज़ क़मीज़ की
जेब में रखकर चलते थे। कुछ लोग इसे अन्धविश्वास मानते हैं लेकिन
यह बुज़ुर्गों का दिया हुआ नुस्ख़ा कारगर है। प्याज़ में निहित पानी
वाष्पोत्सर्जन के ज़रिये ऊपर की ओर उठता है और नाक के आसपास की
अपेक्षाकृत गर्म हवा को ठंडा करता है और साँस में ठंडक भरी हवा फेफड़ों
में जाती है जिससे लू लगने का ख़तरा टालता है।
पसीना निकलता है जिसके साथ महत्वपूर्ण इलेक्ट्रोलाइट (सोडियम ,पोटेशियम,
क्लोराइड आदि ) शरीर से बाहर निकल जाते हैं। पसीना निकलने के बाद शरीर
पर जो नमक जैसा खारा पदार्थ जमा होता है, दरअसल ये इलेक्ट्रोलाइट होते हैं।
इलेक्ट्रोलाइट के शरीर से बाहर निकलने से Dehydration (पानी की कमी ) की
अवस्था आ जाती है।
राहत की बात है कि ककड़ी में ये सारे इलेक्ट्रोलाइट पाए
जाते हैं। ककड़ी खाकर तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए अन्यथा इलेक्ट्रोलाइट
बेअसर हो जायेंगे। क़ुदरत ने अगर शरीर से पानी पसीना बनकर बाहर जाने के
लिए गर्मी का मौसम दिया है तो उसकी भरपाई के लिए रसभरे फल ककड़ी,खीरा,
तरबूज़ ,ख़रबूज़ा, आम, नींबू आदि भी दिए हैं। हमें इन फलों का इस्तेमाल
सावधानी पूर्वक करना चाहिए अर्थात इस्तेमाल के वक़्त ये ठंडे हों और साफ़ हों।
बाज़ार से लाये गए फल-सब्ज़ियाँ नमक के पानी से धोने से उनमें चिपके हानिकारक
जीवाणु निष्प्रभावी हो जाते हैं।
आपकी ओर से सुन्दर व प्रभावशाली रचनाओं के रूप में उत्साहवर्धक असर
परिलक्षित हुआ है। एक ही बिषय पर पाठकों के अलग-अलग दृष्टिकोण पढ़ने और
समझने को मिलें तो इससे रचनात्मकता के नये आयाम विकसित होते हैं।
हम आशावान हैं कि आप इस उत्साह को हम-क़दम के रूप में बरक़रार रखेंगे।
जानकी प्रसाद "विवश" जी ग्वालियर के वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं।
फेसबुक पर सवा लाख से अधिक पाठकों ने उनकी रचनाओं को like किया है।
इसकी तपन के साथ खूबियाँ भी साथ साथ याद आ गई | यूँ तो आजकल तरबूज , खरबूजे ,
आम इत्यादि फल पूरा साल मिलते हैं पर इन रसीले मधुर फलों के सेवन का आनंद जो इस
भीषण गर्मी के मौसम में आता है वो किसी और मौसम में नहीं आता | सड़कों और तपते
रास्तों के किनारे इन फलों का ढेर लगाये ग्राहकों की बाट जोहती आशावान आँखें किसी और
मौसम में कहाँ नजर आती हैं ? हम लोग इस गर्मी से जहाँ घरों में दुबक जाते हैं ये लोग
तपती झुलसाती लू में भी रास्तों पर डेरा जमाये रहते हैं | नदियों के किनारे इस फलों के
उपजाने वाले किसान ज्यादातर छोटे किसान होते हैं जिनकी साल भर आजीविका इन
फलों पर निर्भर होती है | वे महीनों पहले इन फलों को उपजाने में उत्साह से जुट जाते हैं |
इन रसीले फलों के पीछे उन की अनथक मेहनत को ना भुलाया जाये , जिसकी बदौलत
हमे बहुत ही कम दामों पर इतने रसीले फल उपलब्ध होते हैं | आज के सभी अंक देखे
बहुत ही शानदार हैं सभी | सभी पर लिखा केवल रश्मि शर्मा जी के सुंदर चित्र श्रृंखला से
सजे लेख पर लिखना संभव ना हो पाया , हालाँकि मैंने बहुत कोशिश की | उन्हें इसी
मंच से मेरी हार्दिक बधाई सुंदर यात्रा संस्मरण के लिए | मेरे लेख के साथ मेरे नए
ब्लॉग को भी पञ्च लिंकों में पहली बार स्थान मिला जिससे बहुत ख़ुशी हुई |
आपका सादर आभार और हार्दिक बधाई सुंदर लिंक संयोजन के लिए |सभी
सहयोगी रचनकारों को सस्नेह शुभकामनाये | सादर ------
की तपिश....सुबह दस से शाम चार बजे तक घर से बाहर ना निकलें, गर्मी और लू से कैसे
बचें, आदि चेतावनियाँ आ रही हैं किंतु कितने लोग ऐसे हैं जो इन पर अमल कर पाते हैं ?
कहीं एक कहानी पढ़ी थी - सास ने तीन बहुओं से पूछा,'कौनसा मौसम सबसे अच्छा है ?'
पहली बहू ने कहा - जाड़े का।
सबसे अच्छा है। गरीबों के लिए तो हर मौसम एक नए संघर्ष का मौसम है।
आवाजें पहले की अपेक्षा कुछ तेज हो गईं, बाबूजी की आवाज़ आ रही थी। शायद कोई मेहमान
आया है, अम्मा बाबूजी और दादी की मिली-जुली आवाजें सुनकर मैंने अंदाजा लगाया। फिर
क्या था मैं भूल गई अम्मा की डाँट और उठकर बरामदे में आ गई तो देखा एक महिला.. नहीं
लड़की सिर झुकाए बैठी है, उसके गाल आँसुओं और पसीने से भीगे हुए हैं और हमारे घर की
सभी स्त्रियाँ उसे घेरकर बैठी हैं, मंझली काकी पंखा झल रही थीं। बाबूजी बोले-"हमने तो जब
ये छोटी थी तब देखा था इसीलिए पहचाने नहीं, हमें लगा इतनी दुपहरी में कौन आ सकता
है भला, वो भी ऐसी हालत में!"
ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया....सुधा देवराणी
झुलसी है धरती सारी
झुलसा सारा आसमां
जेठ की तपन में देख,
झुलसा ये सारा जहां।
आग के शोले बरस रहे
बूंद बूँद लोग तरस रहे
धरती कैसी धधक रही
शोलों सा ये दहक रही।
सावन बोला जेठ से...मीना शर्मा
सावन बोला जेठ से
तुम क्यों तपते हो इतना ?
दया नहीं आती तुमको,
धरती का देख झुलसना ?
त्राहि त्राहि करते हैं प्राणी
वृक्षों को झुलसाए हो,
शीतल पवन झकोरों को
तुम कैद कहाँ कर आए हो ?
फिर मिलेंगे अगले अंक में।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंविलक्षण जानकारी
समझ गए गर्मी का औचित्य
सृजनकर्ताओं को आभार
सादर
संग्रहनीय संकलन
जवाब देंहटाएंहमकदम का बीसवा कदम देख कर बहुत प्रसन्नता हो रही है |बढ़िया संकलन |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्।
बेहद ज्ञानवर्धक, प्रभावशाली ऋतु का बखान करती सुंदर भूमिका आदरणीया रेणु दी और मीना दी की सुंदर प्रतिक्रिया प्रस्तुति में चार चाँद लगा रही है।
प्रकृति हमेंं सिखाती है यह संदेश देती है कि मौसम जीवन की परिस्थितियों की तरह बदलता रहता है बस जरुरत है हमें हर परिस्थिति में अडिग और अचल रहकर अपने सार्थक कर्म करते रहने की फिर क्योंकि जितनी तेज धूप होगी बारिश उतनी ज्यादा सुहावनी लगेगी।
सारी रचनाएँ बेहद सुंदर और संदेशात्मक है।
सभी रचनाकारों की.लेखनी को सादर नमन।
रवीन्द्र जी को सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
विस्तृत ज्ञान वर्धक जानकारी के साथ सार्थक प्रस्तुति आदरणीय,
जवाब देंहटाएंहां ये सही है कि प्रकृति की हर क्रिया मे संतुलन का सुंदर सिद्धांत छुपा होता है जो प्राणी और पर्यावरण के लिये वरदान होता है हम मानव बस अपनी तकलीफों को सर्वोपरी मान बस हाय हाय करते हैं बहुत प्रेरक प्रस्तुति ।
सभी रचना एक विषय पर विविधता लिये हुवे शानदार, मेरी दो रचनाओं को सामिल करने हेतू सादर आभार सभी सह रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसर्व प्रथम आभार ...मेरी दोनों रचनाओं को स्थान दिया ...संग्रहीत हर रचना अपने आप मैं मील का पत्थर .विविधता लिये हुए साथ मैं विस्तृत गर्मियों की भोजन सम्बंधित लाभकारी जानकारी ! साधुवाद ....नमन
जवाब देंहटाएंवाह!!रविन्द्र जी,भूमिका लाजवाब ...हर मोसम की अपनी अहमियत होती है ...और प्रकृति मौसमानुसार फल ,सब्जियां उप्लब्ध कराती थी ,पर अब तो हर मौसम में हर वस्तु उप्लब्ध.... पर सभी बेस्वाद सी ....।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
वाह!विस्तृत जानकारी के साथ बहुत सुंंदर प्रस्तुति,आदरणीया रेणु जी और मीना जी की सुंदर प्रतिक्रिया और भी खूबसूरत..
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ।
ज्येष्ठ की तपिश के विविध रंगों को समेटे बहुत ही बेहतरीन संकलन ! मेरी रचना ने भी स्थान पाया आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार ! सभी चयनित रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन एवं बधाई !
जवाब देंहटाएंसादर आभार हमकदम के चर्चाकारों का,समय से रचना न भेज पाने पर भी आपने मेरी रचना को शामिल किया। ज्येष्ठ की गर्मी भला किसे अच्छी लगती है ? सभी मन मारकर इसे सह लेते हैं क्योंकि इस राह से गुजरे बिना वर्षा का सुखद दृश्य कैसे दिखेगा ? मूक प्राणियों एवं पंछियों की और भी बुरी हालत होती है। बचपन में हमारे मुहल्ले में दो तीन छोटे छोटे पत्थर के हौज थे जिनमें कोई भी पानी भर देता था। गाएँ, कुत्ते उनमें से पानी पीते थे। पंछियों के लिए छज्जे पर मिट्टी के सकोरे में पानी भरकर रोज रखते थे। लोग जगह जगह प्याऊ लगवाते थे। कोई प्यासा ना रहे। मम्मी इसी माह में मिट्टी का घड़ा, हाथ का पंखा,ककड़ी,तरबूज,नींबू किसी जरूरतमंद को देती थीं। अब भी देती हैं। ग्रीष्म के दुष्प्रभावों से बचने के लिए उचित आहार विहार अति आवश्यक है। इसमें भी भोर का वायुसेवन एवं दिनभर मिट्टी के पात्र का जलसेवन विशेष लाभकारी है। आज की सभी रचनाएँ पढ़ ली हैं। एक विशेष बात उनमें नजर आई कि अधिकतर रचनाओं में आशावाद की झलक है। तपिश के बाद वर्षा की फुहारों की पदचाप सुनाई दे रही है किंतु अभी भी मंजिल दूर तो है। ऋतुएँ आती जाती रहती हैं,मानव जीवन तो चलता रहता है। वर्षा आने तक हमें स्वयं को ज्येष्ठ की तपिश का सामना करने के लिए सक्षम बनाना होगा। यही एकमात्र उपाय है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति एवं मेरी टिप्पणी को तवज्जो देने हेतु आदरणीय रवींद्र जी का अत्यंत आभार !!!
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी --- आज के लिंक हलचल में अपनी टिप्पणी को देखकर आश्चर्य भी हुआ और ख़ुशी भी | आपने मेरे और मीना बहन के चिंतन को महत्व दिया उसके लिए हार्दिक आभार | जेठ की तपन के बीच साहित्यिक भाईचारे का ये उत्सव बहुत ही शीतलता भरा और आह्लादित करने वाला है | सभी रचनाये देख तो ली हैं पर एक पर भी लिखना अभी संभव नही हो पाया | सभी ने बहुत ही बढ़िया सृजन किया है | एक रचना दूसरी का विस्तार प्रतीत होती है | बहन साधना जी और बहन सुधा देवरानी ने जहाँ प्यासे पंछी और प्यासी चिड़िया की अनंत प्यास को शब्द दिए तो बहन मालती जी की जेठ की भरी दोपहर में घर मे घटित हुए मर्मान्तक अनुभव की दास्तान मन को छू गई |इंदिरा बहन की प्रखर लेखनी ने नारी जीवन की अदृश्य तपन को कुशलता से शब्दों में बांध दिया साथ में भारत की बहादुर बेटी के जीवन संघर्ष की गाथा इसी बहाने लिख दी | | | बहन शुभा, बहन मीना जी , बहन सुप्रिया और प्रिय आँचल के साथ पंकज प्रियंम और आशा बहन की रचनाये अपनी - अपनी जगह मह्र्व्पूर्ण रही | जेठ की रात रह गयी थी उसे कुसुम बहन ने लिख दिया | सच कहूं तो एक विषय पर अनेक रचनाओं का सृजन एक उत्सुकता जगाता है साथ में चिंतन को विस्तार भी देता है | जेठ मास में गर्मी का चरम होता है पर मीना बहन ने कितनी सुंदर बात लिखी - जिसके पास सुविधाएँ हैं उसके लिए क्या गर्मी और क्या सर्दी ? जो इन्सान AC वाले घर से निकल AC गाडी में बैठ AC वाले ऑफिस जाएगा उसके लिए कैसी गर्मी ? मैं अपने घर के आसपास बन रहे मकानों में काम करते मजदूरों को पास से निकलते देखती हूँ तो उनकी सहन शक्ति और काम के प्रति निष्ठा और समर्पण पर उन्हें नमन करते आगे बढ़ जाती हूँ | उनको हजारों सलाम जिनके चेहरे पर मौसम के प्रति शिकायत नही अपितु श्रम का उल्लास होता है | उन किसानों को नमन जो इस जेठ में तपकर अपनी मेहनत से सूखी धरती के सीने पर लहलहाती फसलें उगातें हैं | उन वीर जवानों को सलाम जो इस तपन में भी सरहदों की सुरक्षा के लिए अडिग खड़े हैं |और मीना बहन ने अपनी आज की टिप्पणी में बहुत सी बाते स्मरण करवाई | हमारी सनातन संस्कृति में प्रकृति की उपासना से उसके प्रति नत होने का प्रावधान किया गया है | अनेक वृक्षों को देवताओं का मूर्त रूप स्वीकारा गया है तो जीव जंतुओं , पक्षियों को देवताओं ने अपने वाहन बना सम्मान दिया | जेठ की तपन सहते वृक्ष -- सावन में झूम कर हरियाली का उत्सव मनाते हैं | ये सब संस्कार हमारी संकृति की अक्षुण पहचान हैं | इस अविस्मरनीय अंक के लिए आपको हार्दिक बाधाई और सभी रचनाकारों को शुभकामनायें | सादर --
जवाब देंहटाएंज्येष्ठ की तपिश से बचने उपाय और ज्ञान वर्धक जानकारी के साथ लाजवाब प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंको का संकलन... मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइतनी विलंबित टिप्पणी के लिए क्षमा
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक और सुंदर प्रस्तुति
लाजवाब संकलन
उत्क्रष्ट रचनाएँ
रचनाकारों को खूब बधाई
मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सादर नमन शुभ दिवस