⚫⚫⚫
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
---
फ़ॉलोअर
बुधवार, 23 मई 2018
1041..कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए...
⚫⚫⚫
12 टिप्पणियां:
आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
टिप्पणीकारों से निवेदन
1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।
पाँच लिंक्स की हलचल सुहावनी ख़ुशबू लिए सुंदर संयोजन कर रही है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन रचनाओं का और आपका आभार मेरी रचना को यहाँ परस्तु करने के लिए ...
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंइस बार आपने कलम पकड़कर कमर कसी है
बेहतरीन रचनाएँ...
सादर
सुप्रभातम्,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संदेशात्मक भूमिका लिखी है आपने पम्मी जी।
कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए कुछ करें..
बहुत बढ़िया👌👌
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
सुंदर संकलन पढ़वाने के लिए आभार आपका।
अलग सा मार्ग प्रशस्त करती कुछ मौलिक चिंतन कलम कारों के लिये, सहज और सरस रचनाओं का चयन सशक्त प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
वाह!!खूबसूरत भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात पम्मी जी प्रथम मेरे लेखन को मान देने के लिये आभार ...उम्दा संकलन पढ़ने मैं सुकून का अहसास रहा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका और प्रस्तुति आभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी की!
जवाब देंहटाएं'ये करें और वो करें
ऐसा करें वैसा करें
ज़िंदगी दो दिन की है
दो दिन में हम क्या क्या करें'....
चार पंक्तियों में बहुत कुछ कह गए नज़ीर बनारसी...
सच, यही लगता है बहुत बार....ना जाने क्यों, कितना भी दौड़ो वक्त के साथ, कमबख्त हाथ ही नहीं आता...
पर....हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज हैं !!!
जिसे शौक हो,लगाव हो वह वक्त निकाल ही लेता है।
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंवाह ! खूबसूरत हलचल ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन , आपका आभार मेरी रचना को मान देने के लिये ...
जवाब देंहटाएं