बहुएं आपके परिवार का हिस्सा है कामवाली नहीं: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट के इस बयान के बाद देश के कई हिस्सों से महिलाओं ने इसका मजबूती के साथ सर्मथन किया है। कई महिलाओं ने कहा कि इस बयान से उन्हें काफी खुशी हुई क्योंकि इस बार भी हमेशा की तरह सुप्रीम कोर्ट उनके साथ खड़ा नजर आया।
प्रभा पर वज्र-सा गिर पड़ा—उसके हृदय के टुकड़े हो गये—सारी आशाओं पर पानी फिर गय। उसका निर्बल शरीर इस आघात का सहन न कर सका। उसे ज्वर आने लगा। और किसी को उसके जीवन की आशा न रही। वह स्वयं मृत्यु की अभिलाषिणी थी और मालूम भी होता था कि मौत किसी सर्प की भांति उसकी देह से लिपट गई है। लेकिन बुलने से मौत भी नही आती। ज्वर शान्त हो गया और प्रभा फिर वही आशाविह विहीन जीवन व्यतीत करने लगी
><
फिर मिलेंगे....
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम अट्ठारहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
उपरोक्त दो पंक्तियों
को आधार मान कर रचना लिखनी है
सबको अपने ढंग से पूरी कविता लिखने की आज़ादी है
रचनाकारः रोहिताश घोड़ेला
आप अपनी रचना शनिवार 12 मई 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी
सोमवारीय अंक 14 मई 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
सुप्रभातम् दी:) वाह्ह्ह...वाह्ह्ह...बहुत-बहुत सुंदर रचनाएँ है दी सारी। बहुएँ.. क्या बढ़िया अंक लायीं है दी..लाज़वाब👌👌 बहुत ही लाज़वाब प्रस्तुति है। आभार दी सादर।
हमेशा की तरह अपने अलग अंदाज में प्रस्तुति लाई हैं आदरणीया विभा दी ! सबसे पहले तो विशेष आभार, मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी के लिए....पूजा उपाध्याय की कविताएँ, डॉ चेतना उपाध्याय का लेख,दीपशिखा पुंज द्वारा साझा किया गया राहत भरा समाचार, सिमी भाटिया की लघुकथा,साथ में खूबसूरत वीडियो क्लिप....कुल मिलाकर एक परिपूर्ण अंक। बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद इस सुंदर प्रस्तुति के लिए !
सभी को प्रणाम, आजकल हमारे समाज मे स्त्री सम्मान को व्यवहारिक रूप मिलने लगा है। मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि एक स्त्री; दूसरी स्त्री का सम्मान करना बखूबी सीख गयीं हैं । पांचों लिंक्स अद्भुत हैं।
ये कैसी दुविदा है कि मेरी ही रचना पर रचनाएं रची जा रही हैं और मैं ब्लॉगिंग के लिए समय नहीं निकाल पा रहा हूँ। मंगलवार के बाद आराम की संभावना है। इसके बाद जी भर कर ब्लॉगिंग कर पाऊंगा।
आदरनीय विभा दीदी -- सादर प्रणाम | देरी के लिए क्षमा प्रार्थी | आपके पिछले अंक में भी बिजली की वजह से अनुपस्थित रह जाना पड़ा | बहुओं को समर्पित ये खास दिन बहुत मुबारक है | अच्छा लगा कि बहुओं के लिए भी कोई आयोहन संभव है | इस अभिनव प्रस्तुति के लीये हार्दिक बधाई | और हृदयस्पर्शी वीडियो ने मन मोह लिया मैं भी शादी के बाईस साल से मेरे सास - ससुर के साथ रह रही हूँ | मेरा भी ऐसा ही अनुभव है कि मेरी माँ ने मुझे काम सिखाया पर सासु माँ ने मुझे सुदक्ष गृहणी बनाया | आज हमारा रिश्ता माँ बेटी जैसा है | बेहतरीन अंक की हार्दिक शुभकामनाये | सादर --
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शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
वआआह...
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
सुप्रभातम् दी:)
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह...वाह्ह्ह...बहुत-बहुत सुंदर रचनाएँ है दी सारी।
बहुएँ.. क्या बढ़िया अंक लायीं है दी..लाज़वाब👌👌
बहुत ही लाज़वाब प्रस्तुति है।
आभार दी
सादर।
सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती,
आभार|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। विशेषकर वीडियो। हर घर इसी तरह महके।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अपने अलग अंदाज में प्रस्तुति लाई हैं आदरणीया विभा दी ! सबसे पहले तो विशेष आभार, मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी के लिए....पूजा उपाध्याय की कविताएँ, डॉ चेतना उपाध्याय का लेख,दीपशिखा पुंज द्वारा साझा किया गया राहत भरा समाचार, सिमी भाटिया की लघुकथा,साथ में खूबसूरत वीडियो क्लिप....कुल मिलाकर एक परिपूर्ण अंक। बहुत बहुत बधाई व धन्यवाद इस सुंदर प्रस्तुति के लिए !
जवाब देंहटाएंसही में न पांच लिंक कुछ ख़ास है! अद्भुत प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत विडियों के साथ।
आभार
आपकी प्रस्तुति का अंदाज हर बार की तरह निराला और हृदय तक पैठता विषय वाह लाजवाब अद्भुत।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाऐं बहुत गहरी और रिश्तों मे सुंदर रंग भर्ती।
सभी को प्रणाम,
जवाब देंहटाएंआजकल हमारे समाज मे स्त्री सम्मान को व्यवहारिक रूप मिलने लगा है।
मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि एक स्त्री; दूसरी स्त्री का सम्मान करना बखूबी सीख गयीं हैं ।
पांचों लिंक्स अद्भुत हैं।
ये कैसी दुविदा है कि मेरी ही रचना पर रचनाएं रची जा रही हैं और मैं ब्लॉगिंग के लिए समय नहीं निकाल पा रहा हूँ।
मंगलवार के बाद आराम की संभावना है। इसके बाद जी भर कर ब्लॉगिंग कर पाऊंगा।
आदरनीय विभा दीदी -- सादर प्रणाम | देरी के लिए क्षमा प्रार्थी | आपके पिछले अंक में भी बिजली की वजह से अनुपस्थित रह जाना पड़ा | बहुओं को समर्पित ये खास दिन बहुत मुबारक है | अच्छा लगा कि बहुओं के लिए भी कोई आयोहन संभव है | इस अभिनव प्रस्तुति के लीये हार्दिक बधाई | और हृदयस्पर्शी वीडियो ने मन मोह लिया मैं भी शादी के बाईस साल से मेरे सास - ससुर के साथ रह रही हूँ | मेरा भी ऐसा ही अनुभव है कि मेरी माँ ने मुझे काम सिखाया पर सासु माँ ने मुझे सुदक्ष गृहणी बनाया | आज हमारा रिश्ता माँ बेटी जैसा है | बेहतरीन अंक की हार्दिक शुभकामनाये | सादर --
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