सादर नमस्कार
आज के विशेषांक के मूल विषय पर बातें करना अति आवश्यक है।
मानव प्रकृति पुत्र कहलाता है। जीवन-यापन के लिए मनुष्य प्रकृति
पर निर्भर है। सभ्यता के विकास की अंधी दौड़ में शहरीकरण
के दवाब,बढ़ती जनसंख्या और तीव्र उन्नति की लालसा ने सबसे
ज्यादा अत्याचार पेड़ों पर ही किया है।
पर निर्भर है। सभ्यता के विकास की अंधी दौड़ में शहरीकरण
के दवाब,बढ़ती जनसंख्या और तीव्र उन्नति की लालसा ने सबसे
ज्यादा अत्याचार पेड़ों पर ही किया है।
पेड़ काटते कंक्रीट बोते हम आने वाले विनाश की दस्तक को
अनसुना कर अपने अस्तित्व पर छाये खतरे से आँख फेर रहे है।
इतना समझना तो होगा न कि आँख बंद कर लेने से
सच्चाई नहीं बदल सकती है।
अनसुना कर अपने अस्तित्व पर छाये खतरे से आँख फेर रहे है।
इतना समझना तो होगा न कि आँख बंद कर लेने से
सच्चाई नहीं बदल सकती है।
फ्लैट संस्कृति में बालकनी में बोनसाई लगाकर हम हरियाली
और पर्यावरण के संतुलन के सुखद परिणाम का भ्रम पालने लगे हैं।
और पर्यावरण के संतुलन के सुखद परिणाम का भ्रम पालने लगे हैं।
जरुरत है प्रकृति के प्रति अपनी बोनसाई सोच को बदलने की।
आप ने कभी कोई पेड़ लगाया है? या किसी पेड़ को कटने से रोकने
की कवायद की है? या फिर मेरी तरह बस कलम चलाकर
बदलाव का सुखद स्वप्न देखते हैं?
की कवायद की है? या फिर मेरी तरह बस कलम चलाकर
बदलाव का सुखद स्वप्न देखते हैं?
हमक़दम के दिए गये विषय पर सभी रचनाकारों की जागरूक रचनात्मकता को नमन है। सभी रचनाकारों की विविधता पूर्ण
वैचारिकी प्रवाह से निसृत रचनाओं के गर्भ में एक ही संदेश
निहित है लोककल्याण के निहितार्थ पेड़ो को नष्ट न करें।
वैचारिकी प्रवाह से निसृत रचनाओं के गर्भ में एक ही संदेश
निहित है लोककल्याण के निहितार्थ पेड़ो को नष्ट न करें।
आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करते हुये आपके लिखे
रचनाओं का आस्वादन करते हैं।
रचनाओं का आस्वादन करते हैं।
विशेष सूचना
रचनाएँ क्रमानुसार नहीं सुविधानुसार लगायीं गयीं हैं-
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आदरणीया साधना वैद जी
आओ ना !
ठिठक क्यों गए ?
चलाओ कुल्हाड़ी !
करो प्रहार !
सनातन काल से ही तो
झेलती आई हूँ मैं
अपने तन मन पर
तुम्हारे सैकड़ों वार !
भय नहीं है मुझे तुम्हारा
तुम्हारे इस आतंक के साये में ही तो
गुज़ारा है मैंने अपना जीवन सारा !
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आदरणीया आशा सक्सेना जी
मनुष्य अपने स्वार्थ में
इतना अंधा हो गया कि यह तक भूला
द्रुत गति से पेड़ काटे तो जा सकते है
पर एक पेड़ लगाना
उसे बड़ा करना है कितना मुश्किल
दूर से एक लकड़हारा आया
हाथ में लिए कुल्हाड़ी पेड़ काटने के लिए
प्रकृति नटी ने देख उसे भय से
वृक्ष की ऊंचाई पर पनाह पाई
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आदरणीया कुसुम कोठारी जी की कलम से दो रचनाएँ
ठंडी बयार का झोंका
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मै अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुं
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूं
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हे मूरख नर
महा अज्ञानी
क्या कर रहा
तूं अभिमानी
अपने नाश का
बीज बो रहा
क्यों कहते
तूझे सुज्ञानी
आज तक विज्ञान
खोज मे
एक बात तो साफ हुई
कितने ग्रह उपग्रह है
लेकिन
इस धरा को छोड,
ना है मानव कहीं
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आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता की लिखी दो रचनाएँ
क्यूँ पाँव कुल्हाड़ी मार रहा
जो तेरा जीवन सरसाता
क्यों वार उसी पर कर रहा !
आँख के अंधे नाम नयन सुख
करते हो वैसा भरते हो
दूषित श्वास तुम्हें मारेगी
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मत बैठो उस ढहती कगार पर
ना पतन की राह निकालो
मेरा क्या मैं काष्ठ निर्जीव
तुम अपना तो भला विचारों !
एक कटे और दस उगे
फिर पांच से पचास
पीढ़ी दर पीढ़ी यही सुमारग
दिखलाओ इंसान !
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याद रहे सामने तुम्हारे चुनौती बड़ी है.
अब मेरी निस्वार्थ सेवा का फल देने की घड़ी है
अपनी भावी पीढ़ी के शत्रु तुम न बनो.
उनके अच्छे भविष्य की नीव धरो.
कम से कम अपने जन्मदिन
पर ही वृक्षारोपण करो.
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आदरणीया मीना शर्मा जी
ठहरो, कुल्हाड़ी ना चलाओ !
इसकी बलि लेकर पाप ना कमाओ !
एक साधारण सा पेड़ है ये तुम्हारे लिए !
पर क्या जानते हो,
पेड़ कभी साधारण नहीं होता !!!!!
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आदरणीया आँचल पाण्डेय जी की रचना
ताप मौसम का बढ़ चुका है
तर बतर तन गर्मी से
ना कटता तरु अब कुल्हाड़ी से
अब थोड़ा सा विश्राम करूँगा
पेड़ के नीचे एक नींद भरूँगा
ज्यों बैठा मै छाँव तले
आँखों में गहरी थकान भरे
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आदरणीया सुधा देवरानी जी
अबकी तो अपनी बारी है
हम पेड़ भले ही अचल,अबुलन
हम बिन ये सृष्टि अधूरी है
वन-उपवन मिटाकर,बंगले सजा
सुख शान्ति कहाँ से लायेगा
साँसों में तेरे प्राण निहित तो
प्राणवायु कहाँ से पायेगा...
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आप के द्वारा सृजित हमक़दम का यह अंक
आपको कैसा लगा कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के
द्वारा अवश्य अवगत करवाइयेगा।
आपको कैसा लगा कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के
द्वारा अवश्य अवगत करवाइयेगा।
हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक देखना न भूले।
अगले सोमवार फिर मिलेंगे नये विषय पर
आपके द्वारा सृजित रचनाओं के साथ।
आपके द्वारा सृजित रचनाओं के साथ।
आज के लिए बस इतना ही
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआज पहला बार विशेषांक की महिमा बताई गई है हमारे द्वारा
अन्यथा, विशेषांक मे रचना कुछ रहती थी और
भूमिका कुछ अलग सा ही कहती थी
आखिर उन्नीस का होगया...दिमाग को आना पड़ेगा न
इसबार रचनाए कम लिखी गई..वजह जो भी हो
पर धारदार लिखी गई....
आभार सखी...
सादर
खुद से भी पेड़ लगाई हूँ तथा कई लोगों के साथ भी वृक्षारोपण में सहयोगी रही हूँ...
जवाब देंहटाएंसंग्रहनीय संकलन
पर्यावरण संरक्षण हेतु बहुत ही सार्थक कदम उठाया आपने श्वेता जी यह विषय देकर ! सारी रचनाएं सशक्त एवं महत्वपूर्ण सन्देश देती हुई ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका , लाजवाब संकलन !!!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढकर एक ..।
बहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएं🙏सादर नमन सखी यशोदा जी आपका ये अनूठा संदेश देने का तरीका कवियों को शब्द देकर लिखवाना ...कामयाबी के सोपान चढ़ रहा है ! अति प्रसन्नता हो रही है ...बात बात मैं काव्य धारा सहिष्णुता बो रही है !
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाओं को स्थान दिया आभारी हूँ .मैं विविधा के माध्यम से एक संदेश प्रेषित करना चाह्त्ती हूँ जो मैं और मेरे मित्रगण करते है ....हम अपने .बच्चों के .परिजनों के जन्म दिवस पर एक पेड़ लगाने का संकल्प ले और उसकी देख भाल करें ! बस हरीतिमा मन और बाहर सब जगह लहलहा उठेगी ! हम इसे स्मृति वन के नाम से उड्बोधित करते है !
कोई एक सदस्य भीजिस दिन स्मृति वृक्ष लगायेगा
इन्दिरा का आव्हन उस दिन सार्थकता को पायेगा !
जागरूकता का कदम, शुरुआत कहीं से हो बस होनी चहिए ये सारी मानव जाति के पतन की और जाते कदमों मे ठिठकाव लाये ऐसी शुभ भावना है,प्रबुद्ध बुद्धि जीवी अगर जन मानस को तैयार करे सक्रिय सहयोग से तो मानवता के हित मे होगा ।
जवाब देंहटाएंश्वेता आपने संवेदनशील विषय पर व्यात्मक भाव रखे साधुवाद ।
सभी रचनाऐं पढ नही पाई पर जितनी पढी सब शानदार है विषय वस्तु ऐसी है तो काफी एकरूपता देखने को मिली रचनाओं मे पर सभी का रचनात्मक खाका भिन्न है सभी रचनाकारों को बधाई ।
मेरी दो रचनाओं को सम्मलित करने हेतू सादर आभार।
आज की सुंदर भूमिका के लिए साधुवाद एवं मेरी रचना को स्वीकार कर इन सुंदर रचनाओं के बीच स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार !
जवाब देंहटाएंएक संवेदनशील विषय पर सभी रचनाकारों की विवधता से परिपूर्ण रचना बहुत सुंंदर ..उस पर श्वेता जी की प्रभावपूर्ण भूमिका उत्तम है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हलचल में हमक़दम की बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहलचल के उन्नीसवें सफल और सुव्यवस्थित कदम की बधाई पहले शब्द फिर पंक्तियाँ और इस बार चित्र रचनाकारों के लिए हर स्तर पर निपुण होने अवसर सभी रचनाएँ विषयपरक और समाज को नया संदेश देती हुई सभी रचनाकारों और हलचल टीम को शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंपर्यावरण संरक्षण में पेड़ो के महत्व पर दमदार भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक्स...मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर.....ाआभार आप का......
जवाब देंहटाएंपेड़ का महत्त्व बतातीं उम्दा रचनाओं का संकलन अच्छा लगा |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंविलंबित टिप्पणी के लिए क्षमा
जवाब देंहटाएंपर्यावरण संरक्षण का संदेश लिए हलचल का ये कदम बेहद खास रहा
लाजवाब प्रस्तुति श्वेता दीदी
सभी रचनाएँ उत्क्रष्टता को प्राप्त हैं
मेरी रचना को भी मान देने के लिए हार्दिक आभार
सुप्रभात शुभ दिवस सादर नमन 🙇