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बुधवार, 30 मई 2018

1048..चलों इसी बहाने अब दोपहर भी शाम होगी..

।।मांगल्यम् सुप्रभात।।

पारंपरिक खेलों की जिक्र हुई है
चलों इसी बहाने अब दोपहर भी शाम होगी
कईयों की बचपन की गर्मी की छुट्टियाँ 
 इन खेलों के बिना अधूरी   लगती होगी ।
गिल्ली-डंडा, कंचे ,खो -खो,
पिठ्ठू जैसे खेल हमें अपनी मिट्टी से जोड़े रखते थे और गलियों और छते तो गुलज़ार ही गुलज़ार।

इसी बहाने छूटे चीजों को फिर पकड़ ले..
अब बढते हैं शब्दों के हुनरमंदों की ओर..✍


♦♦

पहली प्रस्तुत में लिंक की गई है ब्लॉग 
अंदाज़े ग़ाफिल से ..



दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो

नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो

♦♦

मुलाकात हुई कुछ अपने जैसे
कलम से सपने उकेरने वाले
लेखकों से
उन्हें  लाइब्रेरी के
हर कोने में देखा मैंने
जो खुशनसीब थे
वो पुस्तक प्रेमियों के हाथ में
सजे मिले
कुछ ऐसे भी थे..

♦♦

सोनिआ हंस भी सकतीं हैं 
मुग्धा भाव लिए इससे ये तो पता चलता है वह मनुष्य योनि में ही
सोनिआ हंस भी  सकतीं हैं मुग्धा भाव लिए इससे ये तो पता चलता है वह मनुष्य योनि में ही हैं। कांग्रेस हाईकमान इतना बढ़िया अभिनय और विरोधी ..

♦♦

फिर भी नरेंद्र मोदी ने अपनी 
ताक़त और क्षमता भर देश की दिशा तो 
बदली ही है
आज भाजपा के नरेंद्र मोदी सरकार की 
चौथी सालगिरह है। सालगिरह बधाई देने का दिन होता है। मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति
 नहीं हूं , न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित , न किसी गिरोह का सदस्य कि आरोप 
प्रत्यारोप और पूर्वाग्रह की बात करूं। 

♦♦

मैं समझ सकता हूँ
तुम्हारी विवशता को
लेकिन बस कुछ हद तक
किसी का दर्द, किसी की विवशता
कोई दूसरा कहाँ आंक सकता है
लोग लगा सकते हैं बस अनुमान

♦♦
हम-क़दम के इक्कीसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........

♦♦


।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह..✍

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    बेहतरीन प्रस्तुति
    साधुवाद
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग शुभ दिवस
    बहुत बढ़ियाँ प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. बचपन को आंखों के सामने ला खडा किया जब कहा इतनी गर्मी लगती थी बस मां दादी के डर से झूठ मूठ दोपहरी मे सोने का बहाना होता या उनके सोते ही खिसक जाना बाद की डाड़ाट की भी कहां परवाह वो बिन दास दिन वो प्यारे से खेल वो प्यारा बचपन।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी ।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।
    सुंदर रचनाओं का चयन।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह पम्मी जी वाह ....बेहतरीन msg संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आज यशोदा दी की सखी के सरोकार कुछ राजनीतिक भी रहे। सही बात, साहित्य समाज से अक्षुण्ण नहीं रह सकता। डगमगाते नेहरू को थमते दिनकर ने कहा था कि राजनीति जब लड़खड़ाती है तो साहित्य उसे थाम लेता है। ऐसा तभी जब साहित्य पूर्वाग्रहों से परे और दुराग्रहों से तटस्थ हो। आज देश में उच्च शिक्षा की स्थिति बहुत दयनीय है। पूंजीवाद सर चढ़ कर बोल रहा है। किसान बदहाल है। गरीब को अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं।
    बहुत सारे काम बाकी है।विकास के लिए प्रतिबद्ध सरकार यदि प्रशंसा की हकदार है तो उसकी अक्षमता निंदनीय भी उतनी ही। स्वस्थ लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की अपरिहार्य उपस्थिति को भी उतनी ही मजबूती से स्वीकारना अपेक्षित है।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी। गर्मी की छुट्टी की छुपन छुपाई और गिल्ली डंडा याद दिलाने के लिए विशेष आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!बहुत ही खूबसूरत संकलन ...बचपन की ओर ले जाने के लिए शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति
    उत्क्रष्ट रचनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  9. चढ़ते सियासी पारे के बीच एक समसामयिक प्रस्तुति लेकर आयी हैं आदरणीया पम्मी जी. विमर्श के लिये ज्वलंत मुद्दों की भरमार है अब. इस अंक में चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  10. बचपन की यादों में फिर से डुबकी लगा ली आज हम ने
    अतिसुन्दर प्रस्तुति पम्मी जी

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण सुन्दर लिंक संयोजन..

    जवाब देंहटाएं

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